नई दिल्लीः पर्व-त्योहार जीवन में खुशियां बिखेरने का काम करते हैं। बिते साल कोरोना की वजह से आये तकलीफों के बाद नये साल की शुरुआत में आज देशभर में पहला त्यौहार लोहड़ी मनाया जा रहा है। पर्व त्योहार के आते ही एक अजब सी खुशी छा जाती है। आज लोहड़ी का पर्व है। उत्तर भारत में मनाया जाने वाला त्यौहार है सिख समुदाय के लिए बहुत ही खास माना जाता है। इस दिन किसान आग जलाकर नाचते गाते हैं और अग्नि को भी फसल से निकले दाने भेंट करते हैं। भारतीय कैलेंडर के अनुसार, लोहड़ी पौष माह में आती है। लोहड़ी पर्व सर्दियों के जाने और बसंत के आने का संकेत है।
लोहड़ी का इतिहास:
माना जाता है कि अकबर के शासनकाल में पंजाब में दुल्ला भाटी नाम का एक व्यक्ति रहता था। वो समाज की भलाई के लिए कार्य करता था। पंजाब में उसे रॉबिन हुड नाम से जाना जाता था। वह गरीबों की मदद करता था, लोगों की तकलीफें दूर करते था, अगवा की गई लड़कियों को छुड़ाने आदि जैसा काम करता था। और तो और छुड़ाई गई लड़कियों की शादी वह गांव के लड़कों से करा कर पुण्य कमाता था। पंजाब प्रांत में यह माना जाता है कि बिना दुल्ला भाटी को याद किए और सुंदर मुंदरिए गाए यह त्यौहार अधूरा होता है।
कैसे मनाते हैं लोहड़ी:
सुबह से शुरू होकर शाम तक चलने वाले इस त्योहार में पूजा के दौरान आग में मूंगफली रेवड़ी, पॉपकॉर्न और गुड़ चढ़ाते हैं। आग में ये फसल दान करते समय ‘आधार आए दिलाथेर जाए’ बोला जाता है। जिसका मतलब होता है कि घर में सम्मान आए और गरीबी जाए। इस दिन किसान सूर्य देवता को भी धन्यवाद देते हैं और खेतों में आग जलाकर अग्नि देव से प्रार्थना करते हैं कि उनके घर में समृद्धि बनी रहे। मूंगफली, रेवड़ी, पॉपकॉर्न और गुड़ प्रसाद के रूप में बांटा जाता हैं। लोहड़ी के दिन पकवान के तौर पर मीठे गुड के तिल के चावल, सरसों का साग, मक्के की रोटी खास तौर पर बनाई जाती है। पूजा के बाद लोग भांगड़ा और गिद्दा कर खुशियां मनाते हैं।
क्यों मनाते हैं लोहड़ी
कई लोग लोहड़ी को साल का सबसे छोटा दिन और सबसे लंबी रात के तौर पर मनाते हैं। लोहड़ी को लेकर एक मान्यता ये भी है कि इस दिन लोहड़ी का जन्म होलिका की बहन के रूप में हुआ था।