बकरीद या ईद-उल-जुहा का त्योहार पूरे देश में कल 21 जुलाई को मनाया जा रहा है। इस्लाम में इस दिन का खासा महत्त्व है। इसे पर्व को त्याग और कुर्बानी से जोड़ कर देखा जाता है। माना जाता है कि आज के दिन मुसलमान आपनी सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी देते हैं। इस दिन को मनाने के पीछे एक धार्मिक मान्यता है, आइए जानते हैं बकरीद की शुरूआत और इस पर दी जाने वाली कुर्बीनी के पीछे की कहानी।
हजरत इब्राहिम 80 साल की उम्र में पिता बने थे। उनके बेटे का नाम इस्माइल था. हजरत इब्राहिम अपने बेटे इस्माइल को बहुत प्यार करते थे। एक दिन हजरत इब्राहिम को ख्वाब आया कि अपनी सबसे प्यारी चीज को कुर्बान कीजिए। इस्लामिक जानकार बताते हैं कि ये अल्लाह का हुक्म था और हजरत इब्राहिम ने अपने प्यारे बेटे को कुर्बान करने का फैसला किया।
लेकिन बेटे की कुर्बानी उनके लिए असहनीय होगी इसलिए उन्होंने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली और अपने बेटे की कुर्बानी दे दी। कुर्बानी के बाद जब उन्होंने अपनी आंखों से पट्टी हटाई तो देखा कि उनका बेटा जिंदा है। दरअसल अल्लाह तो इम्तिहान ले रहे थे और कुर्बानी के समय नेकदिल इंसान इब्राहिम के सामने बेटे की जगह बकरा रख दिया था। तभी से ही इस्लाम धर्म में कुर्बानी की परंपरा शुरू हुई। लोग बकरीद पर बकरे की कुर्बानी देते हैं।