कृषि बिल कल राज्यसभा में भारी हंगामा के बाद ध्वनि मत से पारित हो गया। जल्दबाजी में बिल पारित करने के सरकार के कदम को लेकर और राज्यसभा के हुए विरोध व हंगामे की वजह से संसद सत्र के बाकि दिन हंगामे होने के पूरे आसार हैं। यह माना जा रहा है कि कांग्रेस और कृषि बिल के विरोध में उतरी पार्टियां एकजुट होकर आगे की रूपरेखा पर विचार-विमर्श करेंगे। साथ ही विपक्ष संसद परिसर में सरकार और कृषि विधेयकों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर सकता है।
कृषि विधेयकों को पास करवाने के दौरान राज्यसभा में हंगामें का माहौल देखा गया। विपक्षी सांसदों ने सदन में उपसभापति के आसन तक जाकर रूल बुक फाड़ने लगे और माइक तोड़ डाला। स्थिति ऐसी बेकाबू हो गई कि उन्हें नियंत्रित करने के लिए मार्शल का सहारा लेना पड़ा। पहले से ही विरोध में उतरे 12 विपक्षी दलों ने उपसभापति हरिवंश के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया साथ ही सत्ता पक्ष ने सदन की कार्यवाही के दौरान ‘अराजकता फैलाने वाले’ सांसदों पर कार्रवाई की मांग की है।
विधेयकों को पारित किए जाने के दौरान क्या हुआ और कौन से सांसद कथित हिंसा में शामिल रहे? इसका पता लगाने के लिए राज्यसभा टेलीविजन की फुटेज को देखा जा रहा है।
भाजपा और अकाली दल के रिश्ते बिगड़े
मामला चाहे जो भी हो सतारूढ़ पक्ष के लिए हालात ठीक नहीं दिख रहे। एक तरफ किसानों का पक्ष रखते हुए कृषि विधेयकों के विरोध में शिरोमणि अकाली दल की इकलौती केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने पहले ही इस्तीफा दे दिया था। लेकिन इससे दोनों पार्टियों के बीच के राजनीतिक संबध आहत नहीं हुए हैं। शिरोमणी अकाली दल अब भी एनडीए का हिस्सा बनी हुई है। हालांकि अभी कुछ कहा नहीं जा सकता लेकिन इतना तो तय है कि शिरोमणी अकाली दल किसान विरोधी कदम नहीं उठाएगी। पार्टी ने पहले भी कई बार कहा है कि शिरोमणी अकाली दल मतलब किसान और किसान मतलब शिरोमणी अकाली दल। चुंकि 2022 में पंजाब विधानसभा चुनाव होने हैं ऐसे में बीजेपी से गठजोड़ भाजपा के लिए मंहगा सौदा साबित हो सकता है। सूत्रों की मानें तो पार्टी बीजेपी सरकार से रिश्ते को लेकर विचाक कर रही है।
इसका अर्थ है कि भाजपा के रिश्ते शिरोमणी अकाली दल के साथ खराब हो सकते हैं। तो क्या शिवसेना की तरह भाजपा अपना एक और पुराना साथी खो सकता है।
कृषि विधेयकों को लेकर शिरोमणि अकाली दल के बीजेपी से गहरे मतभेद की चर्चा हो रही है। अनुमान तो यही लगाया जा रहा है कि दोनों के बीच का गठबंधन टूटना लगभग तय है।
तो क्या यह मान लें कि शिवसेना की तरह एक और भरोसेमंद साथी अकाली दल भी बीजेपी का साथ छोड़ने को तैयार है।
अगर आपको याद हो तो मई 1996 के संसदीय चुनावों में जब भाजपा सबसे बड़ी पार्टी के रूप में सामने आयी तो अकाली दल ने समर्थन दे कर एक भरोसेमंद साथी के रूप में, सरकार बनाने में भाजपा का साथ दिया था। पंजाब में भाजपा और अकाली दल 2007 से 2017 के बीच सरकार में रही।
अब जब मसला किसानों का है तो शिरोमणी अकाली दल के लिए यह मुश्किल घड़ी है। जाहिर है सत्तापक्ष के साथ बने रहना शिरोमणी अकाली दल के लिए मुश्किल फैसला होगा। पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने तो अकाली दल को ललकारा भी है कि अगर उसकी नीयत में कोई खोट नहीं है एनडीए से बाहर आकर दिखाए।
अगर अकाली दल किसानों का साथ नहीं देगी तो पंजाब में अकाली दल को अपनी खोई जमीन हासिल करने में मुश्किल हो सकती है। अगर एनडीए का हिस्सा बने रहे तो कांग्रेस आसानी से पंजाब में बाज़ी मार ले जाएगी।