नई दिल्ली
कोरोना महामारी के बाद दुनियाभर के लोगों में मानसिक रोगों को लेकर जागरूकता देखी जा रही है। जहां तक भारत की बात है, मानसिक स्वास्थ्य बीमारियों की संख्या 10 प्रतिशत से अधिक हैं, लेकिन स्थिति पाश्चात्य देशों की तुलना में फिर भी बेहतर है। इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन बिहेवियर एंड एलाइड साइंस (Institute of Human Behaviour and allied Science ) के पूर्व निदेशक और मनोचिकित्सक डॉ. एनजी देसाई ने इंडियन वुमेन प्रेस कॉप (Indian Women Press Corp) में आयोजित एक प्रेस वार्ता में इस बात पर जोर देते हुए कहा कि आपदा के बाद भारतीयों ने अधिक मजबूत स्थिति के साथ वापसी की है। मानसिक विकार से जुड़े कई मामले हैं जो सामने नहीं आते उन्हें सामने आने की जरुरत है। डॉ देसाई ने कहा, “मानसिक विकार को लेकर लोगों की सोच काफी बदली है लेकिन अभी इसपर और बात किए जाने की आवश्यकता है”। कार्यक्रम का संचालन आईडब्लूपीसी की अध्यक्ष शोभना जैन और उपाध्यक्ष सिमरन सोढ़ी ने किया।
डॉ देसाई ने आगाह करते हुए यह कहा कि हमें लोगों के बीच जागरूकता पैदा करने की जरूरत तो है लेकिन यह भी समझना होगा कि कहीं हम अमेरिका और यूरोपीय देशों की तरह दवाओं पर अपनी निर्भरता न बढ़ा लें। उन्होंने कहा, “कुछ विशेष तरह के मानसिक रोग में ही मरीजों को अस्पताल में भर्ती करने या दवा लेने की जरूरत होती है। जबकि एक मजबूत सामाजिक और पारिवारिक ढांचा मानसिक रोग की गंभीर अवस्था से बचा सकता है। हमें शर्मिंदगी छोड़ कर आगे आना होगा लेकिन उस गलती से बचना होगा जो अमेरिका ने की”।
मानसिक परेशानी होने पर तीन सपोर्ट सिस्टम
भारत में कोविड महामारी की दूसरी लहर के दौरान हालात बेकाबू होते दिखे। अपनों की खोने का भय और दुख ने मानसिक रुप से लोगों को बेहद प्रभावित किया लेकिन भारतीयों ने मुश्किल हालात का डट कर सामना किया। डॉ. देसाई ने कहा कि मानसिक रूप से परेशान लोगों के लिए तीन तरह के सपोर्ट सिस्टम को देखा जा सकता है। पहला तो व्यक्ति के परिवार के सदस्य होते हैं दूसरा कोई पड़ोसी या रिश्तेदार हो सकता है और तीसरा सपोर्ट ऑफियल सपोर्ट होता है। इसके तहत पुलिस, हेल्पलाइन सेंटर या फिर काउंसलर (Counsellor ) आते हैं। उन्होंने कहा, “सबसे पहले तो जरुरत है कि प्राथमिक सपोर्ट या फिर पीयर ग्रुप के सहयोग को मजबूत किया जाए। इसके लिए जरूरी है कि पारिवारिक तौर पर लोगों में जुड़ाव हो। परिवार के सदस्यों को सजग रहना होगा कि वो एक दूसरे की आदतों और व्यवहार में बदलाव पर नजर रखें।
सोशल मीडिया भी तनाव की वजह
तकनीक के फायदे हैं तो नुकसान भी कम नहीं हैं। प्रेस वार्ता में डॉ देसाई ने यह भी कहा कि आजकल सोशल मीडिया पर मौजूद नकारात्मक सामग्रियों के भंडार ने भी तनाव को बढ़ा दिया है। मानसिक रूप से परेशान व्यक्ति के लिए जरूरी है कि कुछ दिनों के लिए सोशल मीडिया से दूरी बना ले। हालांकि हर चीज के दो पहलू हैं, तकनीक के भी यह इस्तेमाल करने वाले के ऊपर है कि वह नकारात्मक चीजों को ग्रहण कर रहा है या फिर सकारात्मक।