स्मिथा सिंह, नई दिल्ली
देशप्रेमियों और वीरों की जन्मभूमि है भारत भूमि, इस मिट्टी में कई ऐसे वीर सपूतों ने जन्म लिया जिनका नाम देश के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है। भारत माता के ऐसे ही एक वीर सपूत थे शे-ए-पंजाब, पंजाब केसरी, गरम दल के नेता लाला लाजपत राय। भारतीय स्वतंत्रा संग्राम के एक ऐसे महान योद्धा और वीर स्वतंत्रता सेनानी, जिन्होंने वतन के लिए अपनी जान का बलिदान दिया। उनके इस बलिदान औऱ वीरता के लिए भारत सदैव उनका ऋणी रहेगा। आज लाला लाजपत राय की जन्म जयंती के मौके पर आईये इस लेख के माध्यम से इस महान शख्सियत के प्रेरणा से भरे जीवन के कुछ अहम पहलूओं को जानते हैं।
28 जनवरी 1865 को पंजाब के फिरोजपुर में अध्यापक व उर्दू के प्रसिद्ध लेखक लाला राधाकृष्ण और गुलाब देवी के घर में एक महान संतान ने जन्म लिया, जिसे नाम मिला लाला लाजपत राधाकृष्ण राय। उनके पिता रेवाड़ी के जिस स्कूल में टीचर थे लाजपत राय ने अपनी प्राथमिक शिक्षा भी उसी स्कूल से पूरी की। साल 1880 में कानून की पढ़ाई के लिए उन्होंने लाहौर के सरकारी कॉलेज में एडमिशन लिया। लॉ की प्रैक्टिस उन्होंने हिसार में की फिर हाईकोर्ट में वकालत के लिए 1892 में वे लाहौर चले गए।
शुरु से ही उन्हें लेखन और भाषण में काफी दिलचस्पी थी। स्वराज उनका सपना था और समस्याओं से लड़ना उनका शौक। जीवन की हर कठिनाई पर फतह पाने की उनकी लगन उन्हें एक ऐसी शख्सियत बनाया कि उन्हें शेर-ए-पंजाब कहकर संबोधित किया जाता था। लाला लाजपत राय कहा करते थे कि अतीत को ताकते रहना बेकार है, जबतक उस अतीत पर गर्व करने योग्य भविष्य के निर्माण के लिए काम न किया जाए। लाला लाजपत राय का मन बचपन से ही देश सेवा के लिए लालायित रहता था और उन्होंने भारत को अंग्रेजों से आजादी दिलाने का प्रण लिया।
कॉलेज के दिनों में ही वे लाल हंसराज और पंडित गुरु दत्त जैसे देश भक्तों और स्वतंत्रता सेनानियों के संपर्क में आए, हिसार में वकालत करते हुए वे स्वामी दयानंद के संपर्क में आए, स्वामी जी की बातों से वे इतने प्रभावित हुए कि आर्य समाज के प्रबल समर्थक बन गए, यहीं से उनमें उग्र राष्ट्रीय भावना जागी और वे वकालत छोड़ आजादी की लड़ाई में जुट गए। इस दौरान उन्हें ये आभास हो गया था कि देश को आजादी दिलाने की इस लड़ाई में दूसरे देशों के सहयोग के लिए ब्रिटिश शासन के अत्याचार से दुनिया को रूबरू कराना होगा, और इसी उद्देश्य से 1914 में वे ब्रिटेन और 1917 में यूएसए गए। अक्टूबर 1917 में उन्होंने न्यूयॉर्क में इंडियन होम रूल लीग की स्थापना की और 1917 से 1920 तक अमेरिका में ही रहे।
परतंत्रता मे जीने का मतलब है खुद का विनाश
1920 में जब लाला लाजपत राय अमेरिका से लौटे तो जलियावाला बाग हत्य़ाकांड के खिलाफ उन्होंने पंजाब में ब्रिटिश शासन के खिलाफ आंदोलन किया। असहयोग आंदोलन हुआ तो उन्होंने आंदोलन में पंजाब का नेतृत्व किया। फिर जब चौरीचौरा घटना के बाद आंदोलन को वापस लेने का निर्णय हुआ तब लाला लाजपत राय ने इस फैसले का विरोध किया और फिर उन्होंने कांग्रेस इंडिपेंडेंस पार्टी बनाई।
संवैधानिक सुधारों पर चर्चा के लिए 3 फरवरी 1928 को साइमन कमीशन भारत पहुंचा, कमिशन में कोई भारतीय प्रतिनिधि नहीं होने के कारण भारतीय नागरिकों का गुस्सा भड़का और देश भर में इसका तीखा विरोध हुआ। इस विरोध प्रदर्शन में लाला लाजपत राय आगे-आगे थे। लाहौर में साइमन कमिशन के आने का विरोध करने के लिए 30 अक्टूबर, 1928 को लाजपत राय एक शांतिपूर्ण जुलूस का नेतृत्व कर रहे थे। उनके नेतृत्व में हाथों में काले झंडे लेकर हजारों की संख्या में युवाओं ने ‘साइमन कमीशन गो बैक’ के नारे लगाते हुए प्रदर्शन किया। इस दौरान पुलिस अधीक्षक जेम्स ए.स्कॉट ने प्रदर्शन को रोकने के लिए लाठी चार्ज का आदेश दे दिया। अंग्रेजों ने लाठीचार्ज कर दिया। इस लाठीचार्ज में पुलिस ने खासतौर पर लाजपत राय को निशाना बनाया और लाजपत राय गंभीर रूप से घायल हो गए लेकिन बावजूद इसके एक वीर सेनापति की तरह वह साइमन कमीशन के खिलाफ डटे रहे।
भले आजादी हमें प्यारी हो लेकिन इसे पाने का मार्ग बहुत लंबा औऱ कठिन है
शाम को एक जनसभा को संबोधित करते हुए लाला लाजपत राय ने अपने अंतिम भाषण में कहा, “मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक लाठी अंग्रेज सरकार के कफन में कील साबित होगी।” और वही हुआ भी, लाला लाजपत राय के बलिदान के 20 साल के भीतर ही ब्रिटिश साम्राज्य का सूर्य अस्त हो गया। 17 नवम्बर 1928 को लाठी चार्ज में लगी गंभीर चोटों से जख्मी इस महान सैनानी का हार्ट अटैक से निधन हो गया, लाला जी के समर्थकों- अनुयायियों ने उनकी मृत्यु के लिए पूरी तरह ब्रिटिश सरकार को दोषी ठहराया।
लाला लाजपत राय कहा करते थे कि दूसरों पर विश्वास न रखकर खुद पर विश्वास रखो। आप अपने ही प्रयत्नों से सफल हो सकते हैं, क्योंकि राष्ट्रों का निर्माण अपने ही बलबूते पर होता है। उन्होंने अपने जीवन में ऐसा ही किया भी। वे जीवनभर ब्रिटिश सरकार के खिलाफ भारतीय राष्ट्रवाद को मजबूती से खड़ा करने की कोशिश में जुटे रहे और उनकी मौत ने इस आंदोलन को और मजूबत कर दिया जो 2 दशक भीतर ही सफल भी हुआ। वे कहा करते थे कि पराजय और असफलता कभी कभी विजय की तरफ बढ़ने के लिए जरूरी कदम है। लाला जी का उठाया हुआ हर कदम देश को स्वतंत्रता की ओर लेकर गया। देस इस महान समाज सुधारक व स्वतंत्रता सेनानी के बलिदानों को सदा याद रखेगा, और सदा नमन करता रहेगा।
लाला लाजपत राय की जन्म जयंती के अवसर पर नेशनल खबर की ओर से उन्हें शत-शत प्रणाम