श्वेता रंजन, नई दिल्ली
19 अक्टूबर 1960 में भारत में बना पहला मिग-21 एयरफोर्स में शामिल हुआ था। वैसे तो भारतीय वायुसेना इसके पांच-छह साल पहले से ही मिग-21 का इस्तेमाल कर रहा था लेकिन वो भारत में नहीं बल्कि रूस में बने थे। बाद में भारत ने इस विमान को असेम्बल करने का अधिकार और तकनीक हासिल कर लिया था।
भारतीय वायुसेना में शामिल मिग-21 ने 1971 के भारत-पाक युद्ध, 1999 के कारगिल युद्ध समेत कई मोर्चों पर शौर्य का प्रदर्शन किया है लेकिन अब इसे ‘विडो-मेकर’ और ‘उड़ता ताबूत’ जैसे नामों से जाना जाता है।
अब सवाल यह उठता है कि आखिर भारत को हर युद्ध में जीत दिलाने वाला मिग-21 आज बेकार कैसे हो गया है और भारतीय वायुसेना लगभग 60 साल पुराने इस विमान के उपयोग पर विराम क्यों नहीं लगा रही है। इस मामले की तह में जाएं इससे पहले आपको बता दे कि इस लड़ाकू विमान दागे जा रहे सवाल लाजिमी क्यों लगते हैं। अगर आप अब तक हुए दुर्घटनाओं के आंकड़े देखें तो विमान वायुसेना में शामिल होने के बाद से अब तक 400 से ज्यादा बार क्रैश हो चुका है। और आकाश से दुशमनों को दागने के इरादे से बने इन विमानों ने खुद अपने सपूतों की जान ली है। इन ऐक्सीडेंट्स में अब तक 200 पायलट समेत 256 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। अब देखिये 2021 के आंकड़े को, महज़ पांच महीने गुजरे हैं लेकिन तीन दुर्घटनाएं हो चुकी हैं। साल की पहली दुर्घटना 5 जनवरी को राजस्थान के सूरतगढ़ में घटी, फिर मध्य प्रदेश के ग्वालियर में भी 17 मार्च को मिग-21 बायसन क्रैश हुआ था इस घटना में ग्रुप कैप्टन ए गुप्ता शहीद हो गए और फिर पंजाब के मोगा की वो दर्दनाक घटना जिसमें भारतीय वायुसेना का मिग-21 लड़ाकू विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया। जाबांज पायलट अभिनव चौधरी मौत के सामने हार गये। एक बेहद होनहार पायलट. 2014 में वह सेवा में शामिल हुए थे। अभिनव चौधरी वायुसेना में लड़ाकू विमान मिग-21 के पायलट थे। वह इस समय वायुसेना के पठानकोट अड्डे में तैनात थे। अभिनव के पिता सत्येंद्र चौधरी ने यह आरोप लगाया कि वायुसेना के कर्मी पुराने जहाज उड़ा रहे हैं, यह सैनिकों की जिंदगी का सवाल है। इससे पहले भी कई जवान अपनी जान गंवा चुके हैं।
इतने क्रैश और फिर जान गंवाने वाले पायलट के रोते बिलखते परिवार वाले…तभी तो सबसे तेज़ उड़ने वाला यह विमान बना ‘फ्लाइंग कॉफिन’। फ्लाइंग कॉफिन यानी उड़ने वाला ताबूत, आपको यह जान कर हैरत होगी कि कुछ लोग इस विमान को ‘विडोमेकर’ भी कहते हैं। यानि विधवा बनाने वाला विमान।
1985 में रूस ने इस विमान का निर्माण बंद कर दिया था
ऐसा नहीं है कि मिग-21 हमेशा से ही इतना खतरनाक रहा है। वो साल 1963 था जब लगभग 177 करोड़ रुपए की कीमत वाले मिग-21 को भारतीय वायुसेना ने अपने बेड़े में शामिल किया था। तब भारतीय वायुसेना ने सोवियत संघ जो आज का रूस (Russia) है उससे 874 सुपरसोनिक लड़ाकू विमान मिग-21 खरीदे थे। फिर 1967 में हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) ने इस विमान का प्रोडक्शन शुरू कर दिया था, लेकिन 1985 में रूस ने इस विमान का निर्माण बंद कर दिया था। लेकिन भारत ने इसका भरपूर इस्तेमाल किया, इसको अपग्रेड करता रहा और आज तक इसका इस्तेमाल किया जा रहा है। यानी 60 साल बाद भी, 6 दशक बाद भी क्या पायलट के सुरक्षा की दृष्टि से यह उतना ही मजबूत है जितना 60 साल पहले था।
साल 1959 में मिग-21 सुपरसोनिक लड़ाकू विमान दुनिया में सबसे तेज़ गति से उड़ान भरने वाले लड़ाकू विमानों में से एक था। यही वजह थी कि उस वक्त रूस के के पास दुनिया के सबसे ताकतवर लड़ाकू विमान होते थे। मिग -21 वास्तव में खास है, तभी तो दुनिया भर में यह एक मात्र ऐसा विमान है जिसका इस्तेमाल पूरी दुनिया के लगभग 60 देशों ने किया। यह भी बता दूं कि यह अकेला ऐसा विमान है जिसके पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा 11496 यूनिट्स बनाए गए हैं। लेकिन यह समझना भी जरूरी है कि इसके साथ कई काले धब्बे भी जुड़े हैं।
पूर्व रक्षा मंत्री एके एंटनी ने भी कहा था मिग-21 Outdated हो चुका है
द क्विंट में छपी खबर के अनुसार, साल 2012 में पूर्व रक्षा मंत्री एके एंटनी ने संसद में कहा था कि “रूस से खरीदे गए 827 मिग विमानों में से आधे से अधिक दुर्घटनाग्रस्त हो चुके हैं. इसमें 200 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है. इनमें 171 पायलट, 39 आम शहरी और 8 अन्य सेवाओं के लोग अपनी जान गंवा चुके हैं.”
अब सवाल यह भी उठता है कि जब पूर्व रक्षा मंत्री इस जहाज को खतरनाक मानते हैं तो फिर हमारा देश अब तक इसे क्यों इस्तेमाल कर रहा है। दुनिया के 60 देशों ने इसका इस्तेमाल तो किया लेकिन जैसे हर चीज की एक एक्सपायरी डेट होती है, इसकी भी है। दुनिया भर के 60 से अधिक देशों ने इस विमान का इस्तेमाल तो जरूर किया लेकिन एख समय आने पर उसे रिटायरमेंट भी दे दी। लेकिन भारत ने आजतक ऐसा नहीं किया। इस लड़ाकू विमान को बनाने वाले रूस तक ने इसे साल 1985 में ही अपने अलविदा कह दिया, यहां तक कि अफगानिस्तान और बांग्लादेश ने भी इसे सेना से बेदखल कर दिया है लेकिन भारत ने अबतक ऐसा नहीं किया।
30 साल पहले ही होना चाहिए था रिटायर
1963 में जब भारत ने इसे खरीदा था तब इसकी रिटायरमेंट साल 1990 तय की गई थी, यानि जिस विमान को तीस साल पहले रिटायर हो जाना चाहिए था उसे अबतक उड़ाया जा रहा है। भारत इसे आज तक अपग्रेड करके इस्तेमाल कर रहा है। अब आप ही बताइये, जब से यह विमान भारतीय वायुसेना में शामिल हुआ है तब से लेकर अब तक दर्जनों बार अपग्रेड किया जा चुका है, लेकिन इतने अपग्रेड के बावजूद भी इसके इंजन के मूल रूप में सुधार संभव नहीं हो सका है, तो क्या इसे भारतीय वायुसेना का हिस्सा होने का हक है। हालांकि सच यह भी है कि मिग-21 भारतीय वायुसेना की हमेशा शान रहा है, यह वही मिग-21 है जिससे बालाकोट एयरस्ट्राइक में विंग कमांडर अभिनंदन ने पाकिस्तान के एफ-16 को मार गिराया था। 1971 और 1999 के कारगिल युद्ध में भी इस लड़ाकू विमान ने भारतीय वायुसेना का साथ दिया और दुश्मन के छक्के छुड़ा दिए थे। लेकिन यह भी सच है कि हर चीज रिटायर होती है, इसका वक्त भी आ चुका है, कम से कम देश के जाबाज़ सपूतों की लाशें बिछाकर तो इसे सम्मान नसीब नहीं हो पाएगा।
बीबीसी में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय वायुसेना के कई पायलटों ने मिग-21 विमानों को लेकर शिकायत की है कि इसके कुछ मॉडल बहुत तेजी से लैंडिंग करते हैं और इसके खिड़कियों की डिजाइन ऐसी है कि पायलट अंदर से रनवे को ठीक से देख नहीं पाते. द क्विंट से बात करते हुए वायु सेना के पूर्व वायुसेना के रिटायर्ड अधिकारी मार्शल सुनील नानोदकर मिग-21 के इस्तेमाल पर कहते हैं कि, हमारे पास इसके अलावा कोई विकल्प नहीं है अपने आसमान की सुरक्षा के लिए. क्योंकि इतने सालों में हमने वायुसेना में फाइटर जेट्स शामिल करने में काफी देरी कर दी है. उन्होंने आगे कहा कि आज हमने भले ही 36 राफेल अपनी एयरफोर्स में शामिल किए हैं, लेकिन जरूरत के हिसाब से ये आज भी कम हैं।’