भारत में हर साल 14 सितंबर हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है। पर क्या आप जानते हैं कि हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा नहीं है बल्कि राजभाषा है।
महात्मा गांधी ने साल 1918 में हिंदी साहित्य सम्मेलन में इसे जनमानस की भाषा कहते हुए राष्ट्रभाषा बनाने की बात कही थी क्योंकि देश में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा हिंदी है। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भी थे हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की वकालत की थी।
हिंदी राजभाषा है यानि कि राज्य के कामकाज में इस्तेमाल की जाने वाली भाषा। भारतीय संविधान में किसी भी भाषा को राष्ट्रभाषा का दर्जा हासिल नहीं है। भारत में 22 भाषाओं को आधिकारिक दर्जा मिला हुआ है, जिसमें अंग्रेजी और हिंदी भी शामिल है।
भारत का हर राज्य की अपनी राजनैतिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पहचान रखता है जो इसे विभिन्नताओं के लिए जाना जाता है। लेकिन हिंदी को राजभाषा का दर्जा 14 सितंबर 1949 को मिला लेकिन राष्ट्रभाषा को लेकर लंबी बहसें चली और नतीजा कुछ नहीं निकला।
दरअसल, देश में हर भाषा को बराबर का सम्मान प्राप्त है। देश की अदालत ने कई बार इस बात पर जोर दिया है कि कोई भी भाषा ना किसी से कम है और ना किसी से ज्यादा। भारत में कई ऐसे राज्य हैं जहां हिंदीभाषी लोगों की संख्या बहुत कम है – केरल, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक, पश्चिम में गोवा, महाराष्ट्र और गुजरात, उत्तर-पश्चिम में पंजाब और जम्मू-कश्मीर, पूर्व में ओडिशा और पश्चिम बंगाल, उत्तर-पूर्व में सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, त्रिपुरा, नगालैंड, मणिपुर, मेघालय और असम ऐसे राज्य हैं जहां हिंदीभाषी बहुत कम हैं।
राजभाषा विभाग ने राजभाषा नियम 1976 के तहत में केन्द्र सरकार के कार्यालयों के लिए कई लक्ष्य निर्धारित किए गये पर पर वो लक्ष्य पूर्णत: हासिल नहीं किये जा सके हैं, वजह चाहे जो भी हो- स्वप्रेरणा का अभाव या फिर कई राज्यों का इस मुद्दे पर पूर्ण विरोध।
प्रयासों में कमी नहीं है- तभी तो सभी मंत्रालयों में मंत्री के स्तर पर हिन्दी सलाहकार समितियों का गठन किया गया। उद्देश्य था राजभाषा हिन्दी के प्रयोग पर बल देना, सुनिश्चित करना कि हिंदी को उसका स्थान मिल सके।
क्या ऐसा माना जाये कि इन समितियो में जज्बे का अभाव है तभी तो इनकी नियमित बैठकें आयेाजित नहीं की जाती। अगर ऐसा हो भी जाये तो मंत्रालय और विभाग इनकी सिफारिशों पर नजरअंदाज़ कर देते हैं।
यह समितियां और इनकी सिफारिशें कागजों में सिमट कर रह गई हैं, कभी इन पर तत्परता से अमल नहीं किया जाता।
कार्यालयों में राजभाषा हिन्दी की प्रगति की सभीक्षा होनी चाहिए तथा इन समितियों को यह अधिकार मिलना चाहिए कि जब कभी भी राजभाषा की स्थिति को सुधारने कमियां दिखे तो उसे दूर करने के संबंध में सार्थक प्रयास करने का सुझाव दे।
हिंदी को गरिमामयी स्थान दिलाने के लिए ना सिर्फ लक्ष्य निर्धारण जरूरी है बल्कि नये लक्ष्य हासिल करने से पहले यह समीक्षा भी महत्वपूर्ण है कि पूर्व लक्ष्य निर्धारण तक क्यों नहीं पहुंचा जा सका है। यह समझना जरूरी है कि हिंदी दिवस की याद हर वर्ष 14 सितम्बर को ही ना आये। हिन्दी दिवस महज़ रस्म अदायगी भर ना रह जाये।