कला में है असीम ताकत – दिप्तो
आम तौर पर रंगों का इस्तेमाल कैनवास पर किया जाता है। लेकिन उत्तर प्रदेश के ग़ाजियाबाद में रहने वाले चित्रकार दिप्तो नारायण चैटर्जी ने रंगों को एक ताकतवर माध्यम मानते हुए लोगों की संवेदनाओं को जागृत करने का एक नायाब तरीका ढूंढा है। दिप्तो ब्रश और रंग का इस्तेमाल पेड़ों और दीवारों को नया जीवन देने के लिए कर रहे हैं। इस माध्यम के जरिए उनका उद्देश्य समाज में फैली बुराईयों और कुरीतियों से लड़ना है।
रंगों की ताकत अद्भुत
दिप्तो मानते हैं कि रंगों की ताकत अनमोल है। इसके जरिए उकेरी गई आकृतियॉ नि:शब्द हो कर भी वो कह जाती है जिन्हें हम खुली आंखों से अनदेखा कर जाते हैं।
दिप्तो ने अपनी कला के ज़रिए एक हुंकार भरी है। दिप्तो का प्रयास रंगों के ज़रिए उसी मरी हुई व्यवस्था को जगाने का है जिसमें जाने अनजाने जीवन के असली रंगो को खो कर एक बेरंगी दुनिया की ओर बढ़ रहे हैं।
दुनियाभर में अपनी कला के ज़रिए कलाप्रेमियों की वाह वाही लूटने वाले दिप्तो एक मिशन पर अग्रसर हैं जिसका आगाज़ उन्होंने उस इलाके से किया है जहां वो रहते हैं। ग़ाजियाबाद के वसुंधरा इलाके को उन्होंनें रंगों के माध्यम से एक नया जीवन दिया है।
लोगों को रंगों के माध्यम से नया जीवन, नई सोच देने के लिए दिप्तो ने एक बेहद सामान्य से दिखने वाले पार्क को चुना। सेक्टर 15 के पार्क को जीवंत बनाने के लिए दिप्तो के साथी बने उसी मोहल्ले में रहने वाले बच्चे। सबसे पहले दिप्तो ने बच्चों को चित्रकारी के कुछ गुर बांटे, बस फिर क्या था बच्चों के साथ दिप्तो ने पार्क में खड़े पाम ट्री पर अपनी कला का जादू बिखेर दिया। मूक वृक्ष से बिलती तस्वीरों में तब्दील पेड़ किसी को भी बरबस ठहर जाने को मजबूर कर सकते हैं।
दिप्तो बताते हैं, “रंगों की अपनी भाषा है, अपनी बोली है। जिसका इस्तेमाल मैंने एक क्रिएटीव थेरेपी के लिए किया है। यह तो उस शून्यता उघाड़ने की कोशिश है जिसे लेकर हम लापरवाह हो जाते हैं। ब्रश और रंगों के तालमेल ने इलाके के निवासियों को बेहद प्रेरित किया है।”
दिप्तो का विश्वास है, “कला के माध्यम से लोगों के दिलो दिमाग को काफी हद तक छूआ जा सकता है। यह लोगों की संवेदनाओं को झकझोरने की कोशिश है जिससे समाज में एक सकारात्मक प्रयास है”।
समाज के प्रति भी है ज़िम्मेदारी
देश भर में इस अभियान के ज़रिए लोगों को समाज के प्रति उनकी ज़िम्मेदारी का अहसास कराने के सपना देखने वाले दिप्तो ने यूरोप के देशों से यह प्रेरणा ली है। वो कहते हैं, “दिवारों पर रंगीन चित्र नागरिकों को दीवारों का ग़लत प्रयोग करने से रोकेंगी”। “पान के थूकों से दीवारों पर गंदगी फैलाने से तो अच्छा है कि उनमें रंगों को भरा जाए। लेकिन इनसे अधिक महत्वपूर्ण मकसद है एक सांवेगिक बदलाव लाना”।
देश में बढ़ते अपराध से आहत दिप्तो सारी व्यवस्था को संवेदनशील बनाना चाहते है। “किसी भी कला में, खास तौर पर रंगों में वो ताकत है जो मानव के मस्तिष्क पर असर डालती है। रंगों के ज़रिए मैं देश भर के लोगों को शांति का पैग़ाम देना चाहता हूं”।
कन्फ्यूशियस के विचारों से ली प्रेरणा
चीन के सुधारक कन्फ्यूशियस के विचारों से प्रेरणा लेने वाले दिप्तो यह मानते हैं कि समाज में सुधार लाने के लिए नागरिकों में संयम, धैर्य, लगाव और प्रेम की भावना आवश्यक है। तभी तो वसुंधरा के पार्क में लगे पेड़ों को खयाल रखने का बीड़ा भी बच्चों ने ही उठाया है। सेक्टर 15 में रहने वाले टी एस रावत कहते हैं, “इस इलाके के बच्चे पार्क के पेड़ों का भरपूर खयाल रख रहे हैं। वो हरियाली के महत्व को समझ रहे हैं।बच्चे अब पर्यावरण की महत्व को समझने लगे हैं। ना तो वो किसी प्रकार की गंदगी फैलाते हैं ना ही किसी और को पर्यावरण को दूषित करते हैं। इस प्रयास से आने वाली पीढ़ी को जागरूक किया गया है।“
दिप्तो की इस सोच को बिहार के बेगूसराय में लोगों ने बहुत सराहा है। वहां पुलिस और सामाजिक संस्थाओं की मदद से दिप्तो ने दिवारों पर जो रंग भरे हैं उनसे बच्चे बेहद प्रभावित हुए हैं। इस अभियान को आगे बढ़ाने के लिए वो अब ग़ाजियाबाद के स्कूलों और कॉलेजों को इस मिशन से जोड़ रहे हैं।
एक कलाकार को एक वैज्ञानिक मानते हुए दिप्तो कहते हैं कि कलाकार और वैज्ञानिक समाज का निर्माण करते हैं। “कला का स्थान अब पाठ्य अतिरिक्त क्रियाओं का नहीं रह गया है। यह हमारे जीवन के हरकदम पर अहम भूमिका अदा करता है। हमारे व्यक्तित्व को संवारता है।“