बिहार के गया में जदयू की महिला विधायक के पुत्र द्वारा एक युवक को गोली मारने की घटना की गूंज पिछले दिनों लोकसभा में भी गूंज़ी लेकिन इस घटना ने बिहार और वहां की कानून व्यव्था को कठघरे में ला खड़ा किया है। बात तो यहां तक पहुंच चुकी है कि राज्य में कानून एवं व्यवस्था बेहद खराब होने के कारण राष्ट्रपति शासन लागू की जाए।
मसला सिर्फ एक मामले का नहीं है, गौर करने की ज़रूरत है कि ऐसा क्या हो गया कि जहां देश के लगभग सभी राज्य विकास की ओर अग्रसर हैं वहीं बिहार सदियों से वहीं का वहीं खड़ा है. बल्कि यह भी कहा जा सकता है कि कानून-व्यवस्था को लेकर बिहार की पहचान में गिरावट ही आई है।
सुशासन के लिए जाने जाने वाले नीतीश कुमार के राज्य में लूटपाट, अपराध, हिंसा, अपहरण का बोलबाला कुछ इस कदर हावी हो रहा है कि नीतीश की छवि धूमिल पड़ रही है। सवाल यह उठता है कि नीतीश के पिछले शासन काल में और इस काल में इतना फर्क क्यों है। क्यों ऐसा है कि शासन तंत्र ध्वस्त होता नज़र आ रहा है। नालंदा में एक आठ वर्ष के बच्चे का सरेआम अपहरण और फिर उसका क़त्ल। एक महिला विधायक के सिर पावर का नशा कुछ इतना चढ़ा कि उसके पुत्र ने एक छात्र को सिर्फ इस बात पर गोली मार दी क्योंकि उसने सड़क पर उसे रास्ता नहीं दिया। बिहार में विपक्ष की पार्टीयों द्वारा लगाए जा रहे आरोप महज़ इल्ज़ाम नहीं बल्कि मामले चौंकान वाले है। क्या नीतीश कुमार असहाय है। क्या नीतीश के सिर पर ताज और लालू का राज है। तीन इंजीनियरों की हत्या, फिर एक के बाद उजागर होते मामले इस ओर इशारा कर रहे हैं कि बिहार में अपराधिक घटनाओं के ग्राफ में वृद्धि की पृष्ठभूमि जंगलराज से जुड़ा है।
सुशासन बाबू के राज में अपराधियों के बुलंद हौसले इस बात का संकेत देते हैं कि राज्य सरकार इस स्थिती पर या तो कठपुतली है या फिर स्थिती पर नियंत्रण करने में नाकाम है। बेगूसराये में दिनदहाड़े गोली मारकर शिक्षिका की हत्या, सहरसा में डॉक्टरों द्वारा आत्मरक्षा के लिए हथियार मुहैया कराने की मांग, डॉक्टरों, अभियंतों और कंस्ट्रक्शन कंपनियों पर रंगदारी को लेकर दबाव बिहार में फैले अराजकता को प्रतिबिंबित करते हैं।
एकंगरसराय में छात्र का सरेआम अरहरण और अब गया में विधायक पुत्र द्वारा दबंगई की इंतहां। विकास पुरूष की पहचान रखने वाले नीतीश के लिए यह संकट की घड़ी है। नीतीश को समझना होगा की महज़ शराबबंदी जैसे प्रयासों से बिहार की छवि साफ सुथरी नहीं की जा सकती। विकास का मतलब महज़ चकाचौंध भी नहीं है। स्मार्ट सिटी और बुलेट ट्रेन के पहले मानवीय संवेदनाओं को सुधारने का प्रयास बेहद आवश्यक है। राजनीतिक इच्छाशक्ति के साथ आपराधिक तत्वों पर सख्त लगाम लगाए बिना अच्छे परिणाम हासिल नहीं किए जा सकते है।
मधुबनी से बिहार विधान सभा सदस्य समीर कुमार महासेठ से हुई बातचीत में उन्होंने कहा कि बिहार की अराजकता का सिधा ताल्लुक केंद्र की अनदेखी से है। बिहार के प्रति केंद्र की उदासीनता का नतीजा है कि इस मुकाम पर पहुंचा है कि हर घर में शिक्षा का अलख जगाना मुश्किल है। बिहार को केद्र से मिलने वाली राशि इतनी पर्याप्त नही है कि राज्य सरकार शिक्षा के बेहतर प्रयास कर सके। महासेठ के अनुसार, “हालांकि बिहार ने अपनी मेधा, बुद्धि और विवेक का परिचय विश्व के कोन कोने तक दिया है। ऐसा क्या है कि बिहार के युवक बाहर जाकर नाम कमा लेते हैं लेकिन अपने राज्य के भीतर उन्हें कठिनाईयां घेर लेती है”। शिक्षा और संस्कार की बात करने वाली राजद कानून व्यवस्था को दुरूस्त करने में राह में आने वाली कठिनाईयों का भी हवाला दे रही है। पिछले दिनों उपमुख्यंत्री तेजस्वी यादव ने भी पिछले दिनों कहा कि बिहार की उन्नति के लिए बिहार को एक विशेष राज्य का दर्जा जरूरी है।
अराजकता के खिलाफ खुद को कमरबद्ध बताने वाली बिहार सरकार को भी यह समझना होगा की महज़ आरोप- प्रत्यारोप से जंग नहीं जीता जा सकता है। बिना प्रयास सारे वादे धरे रह जाएंगे एवं उनकी छवि भी जंगलराज के लिए जानी जाएगी।