श्वेता रंजन, नई दिल्ली
सृष्टि ने मानव रूप में जन्में अनेको अनेक रत्नों से इस धरा को सुशोभित किया है। वो कलाकार जिन्हें एक कला या विधा में बांधा नहीं जा सकता। कलाकार के रूप में ऐसे भी अनमोल रत्नों ने जन्म लिया है जिनकी चमक सिर्फ एक कला, विधा या दृष्टिकोण तक सीमित नहीं रही, जिन्हें देश, काल या समय में नहीं बांधा जा सकता। जिन्हें पीढ़ी दर पीढ़ी बिसारा नहीं जा सकता। आइये ऐसे ही एक महान कलाकार पद्म विभूषण पंडित किशन महाराज जी के जन्मदिन पर उनकी ज़िंदगी के कुछ पहलुओं से आपका परिचय करवाएं।
पद्मविभूषण पं. किशन महाराज का तबले में जिनका न कभी कोई सानी था, न होगा। बिजली की तरह तबले पर थिरकती उनकी थाप भले ही नये जमाने और समय के साथ खामोश लगती है लेकिन ईश्वरीय अनुभूति का अहसास कराने वाली उस आवाज, उस थाप की झलक उनके शागिर्दों में आज भी महसूस की जा सकती है। उनके संगीत के संस्कार का बीज पूरी दुनिया में वृक्ष का रूप ले चुका है। आधुनिक युग के तबले के वाहक माने जाने वाले कलाकार कोई और नहीं बल्कि पं. किशन महाराज ही थे। बनारस के कबीरचौरा में जब श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर उनका जन्म हुआ तो लगा मानो खुद किशन कन्हैया घर में पधारे हों।
बनारस घराने के प्रशिक्षित संगीतकारों के परिवार में जन्में। उन्हें उनके पिता हरि महाराज और चाचा पं. कंठे महाराज ने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत से परिचित कराया था। बेहद कम उम्र में ही उन्होंने पिता को खो दिया। चाचा कंठे महाराज ने उन्हें तालीम दी, जिनके मार्गदर्शन ने उन्हें उस युग के सबसे शानदार और उत्कृष्ट तबला वादकों में से एक बना दिया। उनके प्रदर्शन ने दर्शकों को इतना मंत्रमुग्ध कर दिया कि उनके ‘बोल’ और ‘ताल’ श्रोताओं की आत्मा में गूंजने लगे।
विरासत में मिली कला साधना को और साधते हुए किशन महाराज, पं. किशन महाराज बन गये। शीर्ष को छूते हुए पद्म विभूषण पाने वाले देश के पहले तबला वादक बने। देश के शीर्ष कलाकारों में वो शुमार थे। स्वभाव में सहजता के साथ ही फक्कड़पन और अक्खड़पन भी था। अगर कोई बात खल जाती तो समझौता नहीं करते।
दुनिया के बेहतरीन कलाकार माने जाने वाले भारत रत्न पं रविशंकर से उनकी गहरी मित्रता थी। पंडित किशन महाराज ने उस दौर के उत्कृष्ट कलाकारों उस्ताद अली अकबर खान, पंडित ओंकारनाथ ठाकुर, पंडित भीमसेन जोशी, बड़े गुलाम अली खान, उस्ताद विलायत खान, अमजद अली खान, गिरिजा देवी, बिरजू महाराज के साथ मंच साझा किया।
किशन जी महाराज के बारे में यह भी कहा जाता है कि वो भगवान कृष्ण की तरह कई कलाओं में निपुण थे। उनकी पहचान एक बहुत ही बहुमुखी संगीतकार के रूप में थी। वो पखावज, मृदंगम, ढोल आदि जैसे सभी प्रकार के ताल वाद्य बजा सकते थे। वे सितार और सरोद भी बजा सकते थे और साथ ही साथ नृत्य भी कर सकते थे। यह बहुत कम लोग ही जानते हैं कि पंडित किशन महाराज जी एक कुशल मूर्तिकार और वीर रस के कवि भी थे। मृदंगम विद्वान पालघाट आर रघु के साथ ‘ताल वाद्य कचेरी’ उनकी मशहूर कंपोजिशन है। महाराज जी ने दुनिया के कई हिस्सों में और 1965 में एडिनबर्ग फेस्टिवल और कॉमनवेल्थ आर्ट्स फेस्टिवल, यूनाइटेड किंगडम जैसे प्रतिष्ठित आयोजनों और अवसरों में अपनी कला की छाप छोड़ी है। 1973 में पद्मश्री और 2002 में पद्म विभूषण से सम्मानित किशन महाराज ने 4 मई 2008 को सृष्टि में विलीन हो गये।