बिन पानी सब सून, जल नहीं तो कल नहीं, जीवन के लिए कीमती है जल, थल पर जल से कीमती कुछ नहीं आदि। ऐसे तमाम स्लोगन या कहिए नारे हम सोशल मीडिया पर, अखबारों में, न्यूज चैनल्स के प्रोग्राम्स में देखते और सुनते हैं लेकिन वास्तविक जीवन में इन स्लोगन्स के पीछे की गंभीरता को कितना समझते हैं, शायद लेशमात्र भी नहीं, क्योंकि अगर समझते तो थल पर जल की दशा इतनी निर्बल न होती कि मानव को कल के लिए चिंतित होना पड़ता। इसीलिए इस विषय की गंभीरता जन-जन को समझाने और जल के महत्व को प्रत्येक पृथ्वीवासी को याद दिलाने के उद्देश्य से 22 मार्च का दिन विश्व जल दिवस के रूप में मानाया जाता है, लेकिन इस दिन को मनाने के लिए 22 मार्च की तारीख ही क्यों चुनी गई, इस दिन को मनाने की शुरुआत कब से हुई और कितनी गंभीर स्थिति में है जल का अस्तितव, जो जल को भी एक दिन समर्पित करने की जरूरत पड़ी, ये जानने के लिए इस आर्टिकल को पूरा पढ़िए और इन तमाम सावालों की जिज्ञासा को शांत करने के साथ-साथ जल के संरक्षण में अपना योगदान भी जरूर दीजिए।
Water, जल, पानी, नीर आदि नामों से पुकारी जाने वाला ये तरल, पृथ्वी की एक ऐसी अनमोल संपदा है, जिसे प्रकृति चक्र के माध्यम से जीवन को चलायमान रखने के लिए हमें प्रदान करती है। पानी प्रकृति की एक ऐसी जीवनदायी संपदा है जिसे इंसान बना नहीं सकता। केवल प्रकृति चक्र में अपनी भागीदारी देकर इंसान जीवन के लिए जरूरी इस अमृत को सुचारू रूप से पा सकता है। साथ ही ये जानने के बाद कि हम पानी बना नहीं सकते, इस अनमोल जल का संरक्षण, पृथ्वी के प्रत्येक मानव का पहला कर्तव्य बन जाता है, और इस कर्तव्य की पूरी के लिए जरूरी है कि मानव प्राकृतिक संसाधनों को दूषित न करे, अपने विकास के लिए पानी के फिजूलखर्च और इसे मैला करने से बचे, क्योंकि यदि जल न रहा तो जीवन भी न रहेगा। ये एक ऐसी सच्चाई है जिसे हम सभी जानते हैं, लेकिन जानकर भी मानते नहीं। इसी जानी-समझी लेकिन भूली हुई जिम्मेदारी को याद दिलाने और इस विषय के प्रति जागरुक करने के विए विश्व जल दिवस यानि पानी बचाने के संकल्प का एक दिन कैलेंडर में निर्धारित है, 22 मार्च।
विश्व जल दिवस मनाने की पहल साल 1992 में ब्राजील के रियो डी जेनेरियो में आयोजित पर्यावरण व विकास के संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में की गई, जिसके बाद साल 1993 में 22 मार्च को पहला विश्व जल दिवस मनाया गया और तब से हर साल 22 मार्च को संयुक्त राष्ट्र की पर्यावरण तथा विकास एजेंसी द्वारा विश्वभर में इस दिन को इस उद्देश्य से मनाया जाता है कि जनमानस पीने योग्य स्वच्छ जल के महत्व, इसी जरूरत और संरक्षण के प्रति न सिर्फ जागरुक बने बल्कि इसके संरक्षण में अपनी भागीदारी भी दे। जल दिवस विश्वभर में 22 मार्च को हर साल एक विशेष थीम यानि विषय के साथ मनाया जाता है। बीते साल 2020 में विश्व जल दिवस का विषय था जल और जलवायु परिवर्तन और इस साल यानि 2021 में विश्व जल दिवस की थीम है Valuing Water यानि जल को महत्व। इस साल इस विषय को रखने का उद्देश्य भी यही है कि लोग निजी तौर पर इस जिम्मेदारी को समझें और निभाएं कि प्रत्येक के द्वारा सहेजी गई साफ जल की प्रत्येक बूंद जल के संरक्षण में एक अहम योगदान होगी।
जिस धरा पर मानव वास करता है उसका 70 प्रतिशतसे ज्यादा हिस्सा जल से घिरा है लेकिन इसमें पीने योग्य पानी 3 फीसदी से भी कम है, सोचिए इस जल की बर्बादी आने वाले वक्त में कितना विकराल संकट खड़ा करेगी। हकीकत ये है कि भविष्य में तीसरा विश्व युद्ध संभव है कि जल के लिए होगा। जल संकट का अर्थ सिर्फ ये न समझें कि पानी की कमी होने पर हमें जरूरत के कामों के लिए पानी नहीं मिलेगा, बल्कि पीने योग्य जल जुटाना भी मुश्किल होगा और खाद्य सुरक्षा प्रभावित होगी सो अलग, क्योंकि पानी की आपूर्ति में बाधा या बदलाव खाद्य सुरक्षा पर भी असर डालेगा, क्योंकि खाद्यान्न उगाने के लिए भी इसी अनमोल संपदा की जरूरत होती है। जल नहीं तो खाद्यान्न भी नहीं, ये बात हमें गंभीरता से समझनी होगी। विकास की दौड़ में सरपट दौड़ लगाता इंसान जल के मीठे स्त्रोतों को दूषित कर रहा है, इसका अंधाधुंध दोहन भविष्य में संकटों को निमंत्रण है। मीठे जल के स्त्रोत, नदियां, झरने, कुंएं, बावड़ी आदि सब रसायनों की भेंट चढ़ रहे हैं, खेती में भी कैमिकल्स का इतना ज्यादा इस्तेमाल हो रहा है कि भूमिगत जल स्त्रोत भी दूषित हो रहे हैं, लेकिन इस विषय की गंभीरता को अधिकत लोग इसलिए नहीं समझ रहे, क्योंकि आज पैसा खर्च कर आर्थिक रूप से संपन्न लोग जल की जरूरत पूरी कर पा रहे हैं, लेकिन दुनिया में लाखों लोग ऐसे हैं जो स्वच्छ जल के अभाव में जी रहे हैं, दूषित जल के कारण जल जनित रोगों के शिकार हो रहे लोगों की गिनती भी विश्व में कम नहीं। बावजूद इसके, हम इस विषय के प्रति उतने सजग नहीं, जितना होना चाहिए।
हम सिर्फ भारत की बात करें, तो आज भी अपने देश में ऐसे तमाम गांव हैं जहां की आवाम साफ पानी के लिए तरसती है, पीने योग्य पानी पाने के लिए गावों की महिलाएं आज भी मीलों दूर तक पैदल चलती हैं, और प्यास बुझाने के लिए मीठा पानी लाती हैं। कुछ रेगिस्तानी इलाकों में तो पानी, जान के जितना कीमती है, लेकिन अफसोस कि जहां पानी पर्याप्त मात्रा में मौजूद है वहां इसकी कोई कद्र नहीं। बड़े-बड़े शहरों में लोग मीठे पानी को पीने के अलावा ऐसे कामों में भी अंधाधुंध खर्च करते हैं जो कम खर्च से संभव हैं। ये विडंबना ही तो है कि एक ही मुल्क में कहीं लोग प्यास बुझाने को पानी नहीं पाते और कहीं सैकड़ों हजारों लीटर पानी बर्बाद बहता रहता है, लोग अपनी गाड़ियों को धोने में ही हजारों लीटर पानी रोजाना बहा देते हैं।
विकास की दौड़ में हम इतने अंधे हो रहे हैं कि बारिश के पानी के महत्व को भी भूल रहे हैं, पक्के आंगन, पक्की सड़कें चाहिएं, छोटे बड़े हर काम के लिए साफ पानी चाहिए, लेकिन बरसात का पानी सहेजने की जिम्मेदारी… ये कौन निभाएगा? जब ये जल की व्यर्थ बह जाएगा तो जल स्त्रोंत रीचार्ज कैसे होंगे? फिर पीने योग्य साफ पानी कहां से आएगा? आज वही हो भी रहा है, कच्ची जमीन न होने की वजह से नगरों में बरसात का पानी गंदे नालों में बह जाता है, लेकिन देश में कई जगहों पर लोगों ने पानी के महत्व को समझते हुए न सिर्फ वर्षा जल संरक्षण किया है बल्कि इसी जल के संरक्षण से अपने क्षेत्रों को जल संकट से मुक्त भी किया है। जो हर व्यक्ति के लिए प्रेरणा है, कि बूंद बूंद का संरक्षण कैसे सैकड़ों कंठों की प्यास बुझाने में सक्षम है।
याद रखिए अगर हम आज भी न संभले तो भविष्य में स्थिति बेकाबू हो चुकी होगी। यही मीठा पानी जिसे हमारे बड़े बुजुर्गों ने कुंए और नदियों जैसे सोत्रों के रूप में देखा था, हम उसी पानी को टैंकर, टंकियों और नलों में देख रहे हैं। नई पीढ़ी इस पानी को आज बोतलों में देख रही है, लेकिन अगर जल की बर्बादी बदस्तूर जारी रही तो कल हमारी आने वाली पीढी इसे बोतलों में भी नहीं देख पाएगी। तब शायद संपूर्ण शक्ति पानी की प्यास बुझाने के लिए लगानी पड़े, कल शायद संघर्ष कर, जल की प्यास बुझानी पड़े। जब हम जानते हैं कि जल बिना भविष्य इतना विकट हो सकता है तो क्यूं ना आज संभल जाएं, जल बचाएं-कल बजाएं, ताकि आने वाली पीढियां भी प्रकृति की जीवनदायी संपदा जल पा पाएं।
Save Water
Save Earth
Save Food
Save Life