श्वेता रंजन, नई दिल्ली
पश्चिम बंगाल में आने वाले विधान सभा चुनाव को लेकर भाजपा और टीएमसी के बीच शह और मात का खेल जारी है। टीएमसी से उठती अंदरूनी असंतोष की आवाज़ों को भाजपा हवा दे रही है और बगावत पर उतरे नेताओं का जमकर फायदा उठा रही है।
आपको बता दे, पश्चिम बंगाल में 294 विधानसभा सीटें हैं। साल 2011 के बंगाल विधानसभा चुनाव में दीदी ने 34 साल से बंगाल की सत्ता पर काबिज सीपीआई-एम को सत्ता से बदखल कर दिया था। पश्चिम बंगाल की पहली महिला मुख्यमंत्री बनी ममता बनर्जी 10 साल से मुख्यमंत्री हैं। टीएमसी के नेता एक के बाद एक पाला बदल रहे हैं तो वहीं भाजपा अपनी राजनीतिक रोटियां सेंक रही है और प्रदेश में सरकार बनाकर भाजपा के नाम की मुहर लगाना चाहती है।
टीएमसी और भाजपा दोनों ही पार्टियों के लिए यह नाक की लड़ाई हो चुकी है। टीएमसी को लगातार झटके लग रहे हैं- पहले शुभेंदु अधिकारी का अलग होना और फिर बीरभूम से सांसद शताब्दी राय का सोशल मीडिया पर पार्टी छोड़ने का धमकी भरा अंदाज़। टीएमसी के लिए मुश्किल घड़ी है। लेकिन बंगाल की राजनीति में कुछ बातें समझने योग्य हैं।
भाजपा का नकारत्मक पक्ष:
टीएमसी को टक्कर देना मुश्किल
पश्चिम बंगाल में भाजपा का संगठन अभी बहुत मजबूत नहीं है। लगातार भाजपा टीएमसी पर प्रहार कर संगठन को मजबूती देने में लगी है। पार्टी नेता प्रदेश के हर विधानसभा क्षेत्र में वो प्रभाव नहीं रखते कि वे चुनावी जीत का सफर तय कर सकें। केंद्रीय नेतृत्व लगातार दौरे पर दौरे कर रही है। प्नदेश में भाजपा के पक्ष में माहौल बनाया जा रहा है। लेकिन राज्य के चुनावी लड़ाई के लिए पार्टी को सूबे के अंदर मजबूती देनी होगी जिसके लिए उसे स्थानीय नेताओं-उम्मीदवारों और समर्थकों की जरूरत है। यही वजह है कि पार्टी तृणमूल कांग्रेस, कांग्रेस और वामपंथी दलों से नेताओं को तोड़ जोड़ में लगी है।
हिंदुत्व की राजनीति
भाजपा ने भले ही देश भर में भगवा पताका बुलंद किया है लेकिन पश्चिम बंगाल की राजनीति काफी अलग है। राज्य में 27 से 30 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं, जिस पर तृणमूल, वाम दल, कांग्रेस और ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम निगाहें गड़ा रखी हैं। मौजूदा हालात में राज्य आज हिंदू-मुस्लिम लाइन पर ध्रुवीकरण के लिए बेहद संवेदनशील है। ओवैसी बंगाल के मुसलमानों के लिए खुद को मसीहा बता रहे हैं तो टीएमसी खुद को मुसलमानों का रहनुमा बता रही है। तृणमूल कांग्रेस की सांसद और राष्ट्रीय प्रवक्ता नुसरत जहां रूही ने भी मुस्लिम कार्ड खेलते हुए कहा कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) बंगाल में सत्ता में आ गयी, तो मुसलमानों की उल्टी गिनती शुरू हो जायेगी। टीएमसी पुरजोर कोशिश में है कि ममता बनर्जी को तीसरी बार सत्ता हासिल हो सके।
किसानों का मुद्दा दे सकता है दर्द
दिल्ली में पंजाब व हरियाणा के किसान 53 दिनों से धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। किसानों की केंद्र सरकार के प्रति नाराज़गी ऐसी है कि दोनों पक्षों के बीच बात नहीं बन रही। आंदोलन कर रहे किसान केंद्र सरकार के रुख से आहत है। किसानों की आत्महत्या और मौतों से आक्रोश और भी बढ़ गया है। किसान सरकार की नीतियों को किसान-विरोधी बता रहे हैं। ऐसे में भाजपा केंद्र सरकार की योजना से वंचित पश्चिम बंगाल के किसानों व आयुष्मान भारत योजना को चुनावी हथियार बनाकर सत्ता के सिंहासन पर पहुंचना चाहती है। इसके लिए भाजपा ने बंगाल की धरती पर ”कृषक सुरक्षा अभियान” की शुरुआत की। किसानों को लुभाने के लिए भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने पश्चिम बंगाल के धान के कटोरे के रूप में पहचाने जाने वाले पूर्व बर्द्धमान जिले की धरती से ”कृषक सुरक्षा अभियान” का शुभारंभ भी किया। भाजपा यह दावा भी कर रही है कि राज्य सरकार के कारण किसान योजना से वंचित रहे हैं। बंगाल के 70 लाख किसानों में 23 लाख किसानों ने केंद्र सरकार को योजना का लाभ लेने के लिए आवेदन भी भेजा है। अब उन्हीं किसानों को भाजपा अपना हथियार बनाकर सत्ता के सिंहासन तक पहुंचना चाहती है। लेकिन यह भी सच है कि किसानों का दिल जीत पाना भाजपा के लिए मुश्किल ही होगा।
भाजपा का सकारात्मक पक्ष:
Anti-incumbency यानी सत्ता-विरोधी लहर
कुछ समय पहले तक ममता बनर्जी की पार्टी बंगाल की सबसे मजबूत पार्टी के रूप में दिख रही थी। या यूं कह ले कि पांच साल पहले तक यह कल्पना भी नहीं की जा सकती थी कि साल 2021 में ममता बनर्जी को अपने अस्तित्व के लिए इस कदर जूझना होगा? साल 2011 में जिस तरह कांग्रेस के नेताओं का पलायन ममता की पार्टी टीएमसी के लिए हुआ था वैसा ही पलायन टीएमसी में बीजेपी के लिए हो रहा है। भाजपा राज्य में प्रबल ताकत के रूप में उभरी है और ममता बनर्जी बैकफुट पर दिख रही हैं। भाजपा ने 2016 के विधानसभा चुनाव में 294 में से मात्र तीन सीटें जीती थीं, 2019 के लोकसभा चुनाव में 42 में से 18 सीटें जीतने में सफल रही। यानी 125 विधानसभा क्षेत्रों में उसे बढ़त है और उसका वोट शेयर 40 फीसदी है। ममता की तृणमूल ने 22 लोकसभा सीटें जीती और उसे 44 फीसदी वोट मिले। आने वाले चुनाव में चार-फीसदी की बढ़त भाजपा के लिए निर्णायक हो सकती है जिसके लिए भाजपा ने एड़ी-चोटी का जोर लगा रखा है।
टीएमसी के बड़े चेहरे भाजपा के साथ
पश्चिम बंगाल चुनाव 2021 से पहले प्रदेश की राजनीति हर दिन नयी करवट ले रही है. ममता बनर्जी के करीबी नेता आये दिन बगावत का बिगुल फूंक रहे हैं। वो एक के बाद एक पार्टी से किनारा कर रहे हैं। शुभेंदु अधिकारी के अलग होने के बाद तृणमूल कांग्रेस की सांसद और ममता की करीबी शताब्दी रॉय की भी पार्टी छोड़ने की खबरें आईं। शताब्दी रॉय ने कहा है कि वह अपने क्षेत्र में जिस तरह से काम करना चाहती हैं, उसकी आजादी उन्हें नहीं मिल रही. वह यह भी तय नहीं कर पा रही हैं कि कब अपने संसदीय क्षेत्र में जायेंगी. शताब्दी रॉय ने कहा, ‘ऐसा लगता है कि पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को बताने का भी कोई फायदा नहीं होगा.’ उन्होंने कहा कि जिस जगह बैठकर वह कोई फैसला नहीं ले सकतीं, उस पद पर रहने का कोई मतलब नहीं रह जाता। हालांकि शताब्दी रॉय ने यू-टर्न ले लिया जिससे तृणमूल कांग्रेस ने राहत की सांस ली। लेकिन भारतीय जनता पार्टी के सांसद सौमित्र खान ने ममता बनर्जी की पार्टी में खलबली मचा दी। भारतीय जनता युवा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष सौमित्र खान ने कहा कि तृणमूल कांग्रेस के 7-8 सांसद और 40-42 विधायक भाजपा में शामिल होंगे। टीएमसी के अंदर असंतोष की लहर भाजपा के लिए मददगार साबित हो सकता है।
क्षेत्रिय सहयोग से वंचित ममता
पश्चिम बंगाल का यह इतिहास है कि सत्ता में रहने वाली पार्टियां तीन दशकों तक सत्ता में रहती हैं। ममता बनर्जी इस कारण संतुष्ट होंगी और इस तरह के हमले का अहसास उन्हें नहीं होगा। लेकिन ममता को चुनौती वामपंथियों की ओर से नहीं, बल्कि भाजपा की तरफ से मिल रही है। भाजपा वैसे भी दो दशकों से इस पूर्वी राज्य में पांव जमाने की कोशिश कर रही है। और तो और वामपंथी दल और कांग्रेस, जो पांच दशकों से एक-दूसरे के विरोधी रहे हैं, अपना अस्तित्व बचाने के लिए एक-दूसरे के साथ हैं और टीएमसी के साथ मिल कर भाजपा को खदेड़ने के ममता के प्रस्ताव को दोनों ही पार्टियों ने सिरे से खारिज कर दिया है। तृणमूल कांग्रेस भाजपा पर सांप्रदायिक और विभाजनकारी राजनीति करने का आरोप लगा रही है लेकिन ममता को कांग्रेस और वामदलों का नहीं मिल रहा सहयोग।
मोदी और शाह का चेहरा, केंद्रीय मशीनरी कर रही काम
भाजपा के पास मोदी का चेहरा है, गृह मंत्री अमित शाह की रणनीति है। पार्टी राज्य में टीएमसी पर लगातार आरोप लगा रही है। कभी किसानों की राजनीति कर तो कभी कोरोना वैक्सीन पर। इससे तृणमूल कांग्रेस की साख पर खतरा मंडरा रहा है। भाजपा के प्रभारी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने हाल में दावा किया था कि तृणमूल कांग्रेस के 41 विधायक भाजपा के संपर्क में है। इतनी बड़ी संख्या में विधायकों की बगावत होती है तो राज्य की ममता बनर्जी सरकार के लिए खतरा भी हो सकता है।