स्मिथा सिंह, नई दिल्ली
“मेरी दुनिया है तुझमें कहीं, तेरे बिन मैं क्या कुछ भी नहीं” अगर ये विचार आपके दिलो-दिमाग में अपने स्मार्ट फोन के लिए आता है तो मुस्कुराने के बजाय थोड़े सतर्क और चिंतित हो जाईये क्योंकि अपने फोन से ये बेइंतेहां मोहब्बत आपके भविष्य के लिए बेहद घातक है, आपके कदम आहिस्ता आहिस्ता एक ऐसी समस्या की ओर बढ़ रहे हैं जिसे साइबर एडिक्शन यानि इंटरनेट की लत कहा जाता है। साइबर एडिक्शन को एक छोटा और साधारण सा शब्द समझने वाले इसके पीछे छिपे भयावह सत्य से अनजान हैं क्योंकि वे ये नहीं जानते कि इंटरनेट के इस्तेमाल की लत कोई आम आदत नहीं बल्कि एक ऐसी बीमारी है जो वक्त के साथ साथ न सिर्फ बढ़ेगी बल्कि व्यक्ति को गंभीर स्थिति में भी पहुंचा सकती है।
मोबाइल फोन आसान जरिया लेकिन अंधकारमय भविष्य
छोटे–छोटे बच्चों के हाथों में मोबाइल फोन्स थमा कर उन्हें गेम्स खिलाना जिन माता पिता को आज लुभावना लगता है वास्तव में वे खुद अपने बच्चों के भविष्य को अंधकारमय बना रहे हैं क्योंकि फोन, कंप्यूटर या लैपटॉप पर फर्राटेदार स्पीड में चलता इंटरनेट बच्चे के दिमाग को तेज नहीं कर रहा बल्कि एक लत का शिकार बना रहा है। स्टडीज के बहाने बच्चों की जिस इंटरनेट से दोस्ती होती है कुछ वक्त बाद बच्चे उसी इंटरनेट के माध्यम से घंटो ऑनलाइन गेम्स या सोशल साइट्स पर चैटिंग में वक्त बिताते हैं, लाइफ की बाकी एक्टिविटीज से ज्यादा इंटरनेट एक्टिविटीज को तवज्जो देते हैं, और धीरे धीर उस वर्चुअल वर्ल्ड यानि काल्पनिक दुनिया का हिस्सा हो जाते हैं जहां भीड़ तो बहुत है लेकिन वास्तविक नहीं सिर्फ ख्याली।
कहीं आप एडिक्ट तो नहीं हो रहे
हद से ज्यादा इंटरनेट का इस्तेमाल न सिर्फ एडिक्ट बनाता है साथ ही बिहेवियर चेंज, डिप्रेशन, एंग्जाइटी और कई मेंटल व फिजिकल प्रॉबलम्स को भी जन्म देता है। बिना वजह बार-बार फोन चैक करना, फोन न बजते हुए भी घंटी सुनाई देना, सेल्फी पोस्ट करने पर लाइक न मिलने की टेंशन होना, बार-बार ऑनलाइन दोस्तों को सर्च करना, किसी दोस्त के रिप्लाई न करने पर बेचैन हो जाना आदि। अगर ऐसी समस्याएं आपको अक्सर होती हैं तो हो सकता है कि आपकी जरूरत से आदत बनीं इंटरनेट की सहूलियत आपको अपना आदि बना चुकी है।
एक बेहद गंभीव विषय ये भी है कि आज कि युवा पीढ़ी में से सब्र और किसी चीज या जानकारी को पाने के लिए जी तोड़ मेहनत करने की चाहत खत्म होती जा रही है, क्योंकि ये सभी सुविधाएं तो एक क्लिक में इंटरनेट पर मिल ही रही हैं, फिर मेहनत-मशक्कत क्यों की जाए। यही वजह है कि आज एक दिन के लिए इंटरनेट की स्पीड थम जाए या धीमी हो जाए तो चारों ओर कोहराम मच जाता है, क्योंकि इस एक सहूलियत ने लाखों-करोड़ों चमकदार दिमागों को अपना आदी बना लिया है, जो निरंतर जारी है, और दुखद बात ये कि स्मार्ट फोन के स्मार्ट होते फीचर्स के साथ-साथ ये समस्या और विकराल होती जा रही है।
बच्चों के लिए ज्यादा खतरनाक
साइबर एडिक्शन के मरीजों की काउंसलिग करने वाले चिकित्सकों का कहना है कि आने वाले कुछ सालों में साइबर एडिक्शन के मरीजों की गिनती में और इजाफा होगा और चिंता का विषय ये है कि इंटरनेट के सबसे ज्यादा एडिक्ट हैं बच्चे। ऐसे में उन माता-पिता के लिए सतर्क व सावधान होने की जरूरत है जिनके बच्चे उनके बीच बैठने से ज्यादा वक्त अपने फोन या लैपटॉप के साथ बिताते हैं। माता-पिता के चाहिए के वे खुद भी फोन का सीमित इस्तेमाल करें और बच्चों को भी लिमिट्स में इसे इस्तेमाल करने की आदत डालें।
साइबर एडिक्शन नाम की इस पूरी समस्या के लिए सिर्फ इंटरनेट को दोष देना भी गलत होगा क्योंकि किसी भी सुविधा का संतुलित इस्तेमाल ही फायदेमंद होता है। अति या अति से ज्यादा कोई भी सुविधा नुकसान ही पहुंचाती है। इसलिए अपनी आदतों में थोड़ा बदलाव लाएं, फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम के दोस्तों से ज्यादा अपने वास्तविक दोस्तों को तवज्जो दें। कुछ रास्ते खोजने के लिए दिमाग के घोड़े भी दौडाएं, जीपीएस पर निर्भरता इतनी भी न हो कि अपनों के घर के रास्ते भी भूल जाएं और कुछ जरूरी फोन नंबर्स अपने दिमाग की डिक्शनरी में सहेज कर रखें ताकि जब फोन साथ न हो तो आप खुद को असहाय या अधूरा महसूस न करें। याद रखिए सुविधाएं सहूलियत के लिए हैं लत के लिए नहीं, इसलिए ऐसे शौक जो शोक की वहज बनें उन्हें वक्त रहते छोड़ देना ही अच्छा है।