श्वेता रंजन, नई दिल्ली
तालिबान के सामने आखिरकार अफगानिस्तान सरकार ने घुटने टेक दिए, राष्ट्रपति अशरफ गनी ने देश छोड़ दिया है और अफगानिस्तान पर एक बार फिर तालिबान काबिज है। अफगानिस्तान में दहशत का माहौल है तो दुनिया के तमाम देशों में अलग-अलग चिंता सिर चढ़ कर बोल रही हैं। तालिबान के इतनी तेजी और आसानी से समूचे अफगानिस्तान पर कब्जे के बाद भारत के कूटनीतिक गलियारे में गंभीर चिंताओं को लेकर हलचल शुरु हो गयी है। जायज भी है, सबसे बड़ा सवाल तालिबान के चरित्र को लेकर है।
चुनौती नं -2 चाबहार पर असर
ईरान का चाबहार बंदरगाह भारत को अफगानिस्तान और ईरान के साथ मध्य एशियाई देशों से जोड़ता है। भारत ने इस प्रोजेक्ट के माध्यम से अफगानिस्तान के साथ ट्रेड का सीधा रास्ता बनाना चाहता था। तालिबान के कब्जे के बाद भारत-अफगानिस्तान व्यापार पर एक बड़ा असर देखने को मिल सकता है क्योंकि चीन और पाकिस्तान तालिबान की मदद से इसमे रोड़ा अटकाने का प्रयास करेंगे। ग्वादर पोर्ट को ज्यादा तरजीह मिलने की आशंका जताई जा रही है। भारतीय व्यापार व निवेश धराशायी हो सकते हैं। भारत ने अफगानिस्तान में 3 बिलियन डॉलर खर्च किये हैं। बीते 20 साल में भारत ने अफगानिस्तान में करीब 500 छोटी-बड़ी परियोजनाओं में पैसे खर्च किए हैं। इनमें स्कूल, अस्पताल, स्वास्थ्य केंद्र, बच्चों के हॉस्टल और पुल शामिल हैं। भारत ने अफगानिस्तान के संसद भवन, सलमा बांध और जरांज-देलाराम हाईवे जैसी परियोजनाओं में काफी खर्च किया है। वहीं चीन व पाकिस्तान का तालिबान पर असर रणनीतिक संबंधों के लिहाज से भी भारत के लिए चुनौती पेश कर सकता है।
चुनौती नं 3- चीन-पाक का रुख
अफगानिस्तान की सत्ता पर तालिबान के काबिज होने के बाद चीन और पाकिस्तान भारत के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं। तालिबान के सत्ता में आने के बाद अफगानिस्तान में चीन और पाकिस्तान का दखल बढ़ सकता है। साथ ही ये भारत के लिए एक चुनौती होगी क्योंकि ये दोनों देश अफगानिस्तान में भारत का दखल जितना हो सके उतना कम करना चाहेंगे। यह भी अंदेशा है कि भारत द्वारा बनाए गए जरांज-डेलाराम हाईवे और सलमा डैम के साथ कई बड़े प्रोजेक्ट जो निर्माणाधीन हैं उन पर खतरा मंडरा रहा है। यानी आने वाला वक्त भारत के लिए आसान नहीं होने वाले हैं। साथ ही अफगानिस्तान में पाकिस्तान की शह से फलने फूलने वाला आतंक भारत को चुनौती दे सकता है।
चुनौती नं- 4 जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद पसार सकता है पैर
अफगानिस्तान में तालिबान के उदय ने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। आशंका है कि जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद फिर सक्रिय हो सकता है। जानकारों का मानना है कि जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद के और पैर पसारने का खतरा बढ़ सकता है। वैसे भी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान अक्सर तालिबानियों के पक्ष में अपनी बात रखने के लिए जाने जाते हैं। तालिबान के काबुल पर कब्जा करने के बाद तो पाकिस्तान के कई इलाकों में खुशियों के पटाखे फूटे थे। अब इमरान खान ने एक तालिबान की तारीफ में एक बयान दिया है। इस्लामाबाद में एक कार्यक्रम में इमरान खान ने तालिबान की तारीफ की। उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान में क्या हुआ या क्या हो रहा है? वहां गुलामी की जंजीरें ही तो तोड़ी जा रही हैं। इसका मतलब है कि पाकिस्तान को जम्मू-कश्मीर में शांति और अमन रास नहीं आ रहा। पाकिस्तान धारा 370 हटने के बाद पसरी शांति में खलल डालने के लिए तालिबानी आतंकियों को झोंक सकता है। अगर तालिबान ने पुराने कट्टरपंथी रुख का इजहार किया तो कश्मीर के लिए आईएसआई की मिलीभगत से नई चुनौती मुंह बाए सामने दिख रही हैं।
चुनौती नं- 5 भारत को जल्द लेने होंगे फैसले
अफगानिस्तान को लेकर भारत के पास विकल्पों की कमी है। भारत को अपने अगले कदम के बारे में सोचना होगा। आने वाले कुछ हफ्तों या महीनों में ही ये तय करना होगा कि तालिबान के साथ भारत किस तरह के रिश्ते रखना चाहता है। क्या भारत सीधे संबंध बनाएगा या सेमी ऑफिशियल रहेगा या बैकडोर डिप्लोमेसी चलेगी। इसके लिए भारत को अफगानिस्तान के साथ चीन और पाकिस्तान के रिश्तों पर भी पैनी नजर रखनी होगी।