स्मिथा सिंह, नई दिल्ली
21 फरवरी यानि अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस, वैश्विक स्तर पर इस दिन को मनाने का क्या उद्देश्य है और इसके लिए 21 फरवरी की तारीख को ही क्यूं चुना गया। इन तमाम सवालों के जवाब के साथ साथ इस दिन के महत्व को समझना भी बेहद जरूरी है, क्योंकि किसी विशेष दिन का महत्व जाने बिना उस दिन को मनाना सार्थक नहीं होता। तो चलिए इस लेख के माध्यम से आपको बताते हैं अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस से जुड़ी तमाम जरूरी बातें। 21 फरवरी को हर साल पूरी दुनिया में International Mother Language Day यानि अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन को इस उद्देश्य से मनाया जाता है कि भाषाओं की विविधता और विभिन्नताओं के प्रति जागरुकता को बढ़ावा मिले। इस दिन तमाम कार्यक्रमों के जरिए दुनियाभर में भाषाओं व संस्कृतियों की विविधताओं के बारे में जागरुकता फैलाने की कोशिशें की जाती हैं।
17 नवंबर 1999 को यूनेस्को द्वारा इस दिन को International Mother Language Day यानि अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस घोषित किया गया। अब सवाल ये कि अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के लिए 21 फरवरी ही क्य़ों, तो इस तारीख के पीछे भी एक इतिहास है, जिसकी वजह से ये तारीख मातृभाषा दिवस के नाम समर्पित हुई। बात है साल 1952 की, जब ढाका विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने अपनी मातृभाषा बांग्ला के अस्तित्व को जीवंत बनाए रखने के लिए एक विरोध प्रदर्शन किया। मातृभाषा के अस्तित्व को कायम रखने के लिए शुरु किया गया ये संघर्ष तब घूनी संघर्ष में तब्दील हो गया जब तत्कालीन पाकिस्तान सरकार के आदेश पर पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलाईं। इस पुलिसिया कार्रवाई में 4 छात्रों समेत 16 लोगों की मौत हुई। इस संघर्ष में मारे गए लोग मातृभाषा के लिए शहीद हो गए लेकिन अपनी प्रिय मातृभाषा, बांग्ला भाषा का अस्तित्व सदा के लिए कायम कर गए।
इस आर्टिकल को पढ़कर शायद कुछ लोग ये ना समझ पाएं कि इसमें पाकिस्तान पुलिस का जिक्र क्यों है। तो चलिए इसे विस्तार से बताती हूं। अगस्त 1947 में हिन्दुस्तान का विभाजन घोषित रूप से दो भागों में हुआ, लेकिन अघोषित रूप से ये तीन भाग थे। हिन्दुस्तान से अगल होकर बना मुल्क भाषा के आधार पर दो भागों में बंटा, पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान। पूर्वी पाकिस्तान वो हिस्सा जहां बांग्लाभाषा के प्रेमी थे और पश्चिमी पाकिस्तान वो, जहां उर्दू भाषा का बोलबाला था। सिर्फ भाषा ही नहीं पूर्वी पाकिस्तान व पश्चिमी पाकिस्तान की सभ्यता – संस्कृति भी भिन्न थीं। कह सकते हैं कि पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान के बीच सैकड़ों किलोमीटर की दूरी, दोनों प्रातों में बसर करने वाले बाशिंदों के दिलों में भी आ गई थी। पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद पश्चिमी पाकिस्तान में थी, जहां उर्दूभाषियों का बोलबाला था, और प्रशासनिक कामकाज की भाषा भी इस्लामिक मुल्क होने के चलते, यहां उर्दू थी। इसी वजह से बांग्ला बोलने वाले पूर्वी पाकिस्तान के बाशिंदे सरकारी कार्यालयों में नौकरी नहीं पा पाते थे। बस यहीं से उस विद्रोह का आगाज हुआ जो आगे चलकर मातृभाषा प्रेम के संघर्ष में तब्दील हो गया। पूर्वी पाकिस्तान के लोगों ने बांग्ला भाषा को पूर्वी पाकिस्तान की राजभाषा का दर्जा दिए जाने की मांग की, लोगों की इस मांग को दबाने के लिए 22 मार्च 1948 को पूर्वी पाकिस्तान के ढाका में मोहम्मद अली जिन्ना ने एक सार्जनिक घोषणा की, कि सरकारी कामकाज की भाषा उर्दू ही रहेगी, और पाकिस्तान में रहने वाले हर बाशिदें के लिए उर्दू भाषा सीखना अनिवार्य है। जिन्ना की इस घोषणा से बांग्लाभाषियों में विद्रोह की चिंगारी भड़की, जिसने मातृभाषा के संरक्षण के लिए आंदोलन की शक्ल ली और बांग्ला भाषा के अस्तित्व को सुरक्षित रखने के लिए बांग्लाभाषियों ने जुलूस-धरनों के जरीए करीब चार साल इस आंदोलन को जारी रखा। 21 फरवरी 1952 को ढाका विश्वविद्यालय के छात्रों ने एक विशाल रैली निकालने की तैयारी की, इस रैली को रोकने के लिए पुलिस ने घेराबंदी की, लेकिन आंदोलनकारी छात्र, पुलिस के लगाए बेरीकेड्स तोड़ कर आगे बढ़े, छात्र यूनिवर्सिटी के गेट से जैसे ही बाहर निकले, पुलिस ने उनपर फायरिंग शुरु कर दी। विश्वविद्यालय के गेट पर ही 4 छात्रों ने दम तोड़ दिया। आंदोलन के दमन के लिए एक तरफ पुलिस सख्त हुई तो दूसरी तरफ बांग्लाभाषियों का आंदोलन और तेज हुआ। पुलिस ने जहां भी बांग्लाभाषी समर्थकों को आंदोलन करते देखा, उनपर लाठियां भांजी गईं, गोलियां चलाई गईं और महज 2 दिन में इस आंदोलन में 12 और लोगों की जानें गईँ। भाषा के लिए शुरु किया गया ये अपने आप में पहला आंदोलन था, जिसमें मातृभाषा के लिए लोग जान तक दे रहे थे। मातृभाषा के लिए शहीद हुए लोगों की शहादत का ही नतीजा रहा कि धीरे-धीरे पाकिस्तान में उर्दू की अनिवार्यता
खत्म हो गई और बांग्लाभाषा को भी अहमितय दी जाने लगी। इसके बाद बांग्लाभाषियों ने 21 फरवरी के इस दिन को भाषा शहीद दिवस का नाम दिया। इसके बाद 1971 में पाकिस्तान से अलग होकर बांग्लाभाषियों का अलग राष्ट्र बना, बांग्लादेश और 1972 में बांग्ला भाषा को इस देश की राजभाषा का दर्जा हासिल हुआ और 21 फरवरी को भाषा शहीद दिवस के रुप में मनाए जाने की घोषणा हुई। इसके बाद बांग्लादेश ने ही विश्वभर के लोगों में मातृभाषा के प्रति जागरुकता फैलाने के लिए एक मुहिम छेड़ी और वैश्विक स्तर पर मातृभाषा दिवस की घोषणा की जाए, इसका प्रयास किया। अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस को आधिकारिक मान्यता दिलाने के लिए बांग्लादेश ने यूनेस्कों को कई प्रस्ताव दिए और आखिरकार 17 नवंबर 1999 को बांग्लादेश की ये मुहिम सफल हुई। जब यूनेस्को ने 21फरवरी की तारीख को International Mother Language Day यानि अंतर्राष्ट्रीय
मातृभाषा दिवस घोषित किया। कुलमिलाकर बांग्लाभाषियों के मातृभाषा प्रेम की वजह से ही आज पूरी दुनिया अंतर्राष्ट्रीय मात्र भाषा दिवस मनाती है।
आज सिर्फ बांग्लादेश ही नहीं, दुनिया का हर देश इस दिन को अपनी मातृभाषा के नाम समर्पित कर इन दिन को मनाता है। भारत में भी 21 फरवरी को हर साल अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस धूमधाम से मनाया जाता है। राष्ट्रीय स्तर पर तमाम कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। बहुभाषी देश हिन्दुस्तान में विभिन्न भाषाओं के लोग अपनी अपनी भाषा के प्रति अपना प्रेम दर्शाते हैं। साथ ही राजभाषा हिन्दी के लिए विभिन्न जागरुकता कार्यक्रम चलाए जाते हैं। अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस हर साल एक विशेष थीम यानि विषय के साथ मनाया जाता है इस साल इस दिन के लिए थीम रखी गई है Fostering Multilingualism for Inclusion in Education and
Society यानि शिक्षा और समाज में समावेश के लिए बहुभाषावाद को बढ़ावा देना। उम्मीद है कि आपको 21 फरवरी के इस दिन का महत्व सरल शब्दों में सार्थक समझ आया होगा और आप अब से इस दिन के विषय में दूसरों को भी आसानी से समझाने में सक्षम होंगे। आप सभी को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की शुभकामनाएं। अपनी मातृभाषा से प्यार सदा रखें क्योंकि भाषा हमारी पहचान में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।