बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हमेशा से ही सही मौके की तलाश में रहते हैं। और अब जब विधानसभा चुनाव की तारीख़े सामने हैं से ठीक पहले जेडीयू के आलाकमान ने अहम बदलाव करते हुए पार्टी के कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष की कमान अशोक चौधरी के हाथों में दे दी है।
नीतीश का एक और दलित कार्ड, चिराग के सामने चुनौती
नीतीश कुमार के बेहद करीबी माने जाने वाले फिलहाल अशोक चौधरी बिहार सरकार के भवन निर्माण मंत्री हैं। अशोक चौधरी पर ही जेडीयू कार्यालय का सारा काम देखने के साथ सीएम नीतीश कुमार की वर्चुअल रैली की सारी जिम्मेदारी सौंपी गई थी। अब नीतीश कुमार ने उनके काम से प्रभावित होकर उन्हें एक और बड़ी जिम्मेदारी सौंपी है। आपको बता दें कि अशोक चौधरी के पक्ष में एक बड़ा वोट बैंक है। वे बिहार में बड़े दलित नेता माने जाते हैं। महादलित समुदाय से ताल्लुक रखने वाले अशोक चौधरी ने बिहार कांग्रेस में चार साल से अधिक समय तक अध्यक्ष का पद संभाला है।
अब अगर इसे राजनीतिक चश्मे से देखा जाए तो नीतीश कुमार अशोक चौधरी के कंधों पर एक बड़े वोट बैंक की ज़िम्मेदारी डाल रहे हैं। साथ ही अगर इसका राजनीतिक मतलब निकाला जाये तो क्या नीतीश कुमार चिराग पासवान के एनडीए से बाहर जाने की राह ताक रहे हैं।
क्या नीतीश कुमार दलितों के बीच पासवान के वर्चस्व के ख़िलाफ़ के वोट बैंक को भुनाने की तैयारी कर रहे हैं। लोजपा प्रमुख चिराग पासवान को मात देने की कवायद कर रहे हैं मुख्यमंत्री जी। यह तो नीतीश कुमार की सही सियासी चाल है। चिराग पासवान को जवाब देने के लिए अशोक चौधरी की सेटिंग। साथ ही चार साल तक बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर रहे अशोक चौधरी अंदरूनी बारीकियों से भी तो वाकिफ होंगे।
बता दें कि 26 फरवरी 2018 को जब जीतनराम मांझी ने एनडीए का दामन छोड़कर महागठबंधन का हाथ पकड़ा था तो अशोक चौधरी कांग्रेस छोड़कर जेडीयू से जुड़ गये थे। इसी साल 13 जून को आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने सोशल मीडिया पर अशोक चौधरी का एक वीडियो साझा किया था, जिसमें वे कथित तौर पर लालू यादव और उनकी पार्टी को गाली देते दिखाई दे रहे थे। तब अशोक चौधरी ने इस वीडियो को एडिटेड बताते हुए और उन पर झूठे आरोप लगाने के लिए तेजस्वी यादव से माफी मांगने की बात कही थी।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इससे पहले भी बड़ा दलित कार्ड खेल चुके हैं। दरअसल नीतीश कुमार ने अनुसूचित जाति- जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत सर्तकता और मानिटरिंग समिति की बैठक के बाद अधिकारियों को आदेश दिया कि एससी-एसटी परिवार के किसी सदस्य की हत्या होती है, वैसी स्थिति में पीड़ित परिवार के एक सदस्य को नौकरी देने के प्रवाधान के लिए तत्काल नियम बनाएं जायें।
इसके अलावा इसी महीने नीतीश कुमार ने एससी / एसटी के लंबित कांडों का तेजी से निष्पादन करने, इन्वेस्टिगेशन कार्य को निर्धारित समय में पूरा करने का भी निर्देश दिया था जिस पर तेजी से काम भी हो रहा है।
अब सवाल यह उठता है कि चिराग पासवान अब क्या करेंगे। वो लगातार नीतीश सरकार पर हमला कर रहे हैं। उनके सामने अब चुनौती यह है कि वो नीतीश के इस दलित कार्ड की चाल का जबाब कैसे देंगे। चिराग पासवान को अपने दलित वोट बैंक को बचाने की कवायद तेज करनी होगी। एक ही महीने में तीन दलित कार्ड खेलकर दलितों को मोहने कोशिश में जुटे नीतीश कुमार की चाल का पलटवार चिराग के लिए एक चुनौती ही तो है।