बात बेहद पुरानी है, उन दिनों की है जो वो मात्र आठ वर्ष की थीं। पिता ने उन्हें एक किताब (चार्ल्स डिकेंस की ग्रेट एक्सपेक्टेशंस) देते हुएकहा था – इसे पढ़ो, हर दो साल के बाद पढ़ने की कोशिश करना। तब तक पढ़ने की कोशिश करना जब तक किताब को समझ न जाओ।क्या पता था उस दिन शुरू हुआ सिलसिला हर पल, हर लम्हां नयी सोच, नए जज्बातों की रचना करेगा। किताबों की संगत में कुछ इसतरह रम गईं की वो शब्दों से दोस्ती कर बैठीं।
कोटा नीलिमा एक जानी मानी लेखिका और पेंटर हैं। ‘रिवरस्टोन्स’, ‘डेथ ऑफ के मनिलेंडर’, ‘शूज़ ऑफ द डेड’ और ‘द ऑनेस्ट सीज़न’नीलिमा की मशहूर किताबें हैं। शब्दों और रंगों दोनों उनकी जिंदगी के गहरे साथी हैं। जज्बातों को कागज और कैनवास पर उकेरने केगहरे माध्यम हैं।
जवाहर लाल यूनिवर्सिटी से अंतराष्ट्रीय संबंधों पर डिग्री हासिल करने वाली नीलिमा की हालिया प्रदर्शिनी का विषय ‘अयोध्या’ था। हर बारकुछ नया, कुछ अलग लिखने वाली नीलिमा कहती हैं, “अयोध्या एक नायब जगह है। वहां अलग अलग समय पर अलग-अलग धार्मिकस्थानों के होने के दावे होते हैं। आज हम जो वहां देखते हैं वो एक ऐसे धार्मिक जगह के बारे में बात करती है जो अनुपस्थित है। जो सवालमैंने अपनी प्रदर्शिनी के माध्यम से उठाए हैं वो हैं एक ऐसी सोच की कोशिश करना जो किसी भी सीमा से परे हो।
जितनी बार मैंने अयोध्या पर खोज की है मुझे यह बात तंग करती है कि क्यों अयोध्या में किसी मूर्ति को लेकर इतनी लड़ाई हो सकती है। येहमारी संस्कृति और भारतीय विचारधारा के विपरीत है कि हम किसी प्रतिमा को लेकर रंजिश करें.
अयोध्या के मसले पर कोटा नीलिमा की एक किताब भी जल्द ही आएगी। वो बताती हैं, “मैंने इस मुद्दे को रंगों के माध्यम से उकेरा है।सवाल उठाएं हैं। जल्द ही मेरी किताब भी सामने होगी जिसमें मैंने एक पत्रकार के रूप में अपने अयोध्या से जुड़े अनुभवों को लिखा है।कैसे अयोध्या को एक मुद्दा बना कर उसका राजनीतिक नजरिए से इस्तेमाल किया गया है। किस प्रकार एक धार्मिक विश्वास से जुड़ा मुद्दाराजनीतिक मुद्दा बन गया। किताब में वर्तमान में घट रही सांप्रदायिक मुद्दों पर भी विवेचना होगी। जब मैं किसी मुद्दे को उठाती हूं तो उसे मैंरंगों औऱ शब्दों दोनों के माध्यम से परोसने का कोशिश करती हूं।”
जीवन का हर रंग नई कहानियों से भरा है। हर इंसान की ज़िंदगी एक कहानी है। मेरी किताबें अक्सर उन वास्तविक मुद्दों पर होती हैं जोमुश्किल और अनसुलझी हैं। 2016 में आई मेरी किताब, ‘द ऑनेस्ट सीज़न’, मैंने दिल्ली में अकेली रहने वाली लड़कियों की कहानी लिखीहै, वो चुनौतियां जो राजनीतिक कवरेज के दौरान एक महिला पत्रकार को झेलनी पड़ती हैं, भ्रष्टाचार जो राजनीतिक गलियारों में पनप रहाहै। नीलिमा के अनुसार उनकी यह किताब में संसद के अंदर 6 गुप्त वार्तालापों पर आधारित है और इस किताब में उन्होंने राजनीति मेंईमानदार राजनीति की कल्पना की है। वो कहती हैं, “क्या जरूरत है कि संसद में राजनेताओं के अलावा कोई और प्रवेश ना कर सके।आम जनता के द्वारा चुने गये निमांइदों से मिलने के लिए उन्हें मशक्कत करनी पड़े। आखिर जनता के हक में लिये जाने वाले फैसले उनऊंचे गेट के पीछे क्यों हो जबकि सबसे ज्यादा भष्टाचार की कहानियां उन ऊंचे सबसे सुरक्षित गेट के पीछे होती हैं।”
“मेरी पिछली तीन किताबें विधर्भ और अन्य जगहों में घटने वाले किसानों की आत्महत्या पर आधारित थी। मेरी खोज कभी खत्म नही होती है…