स्मिथा सिंह, नई दिल्ली
हर साल 13 नवंबर को World Kindness Day यानि विश्व दया दिवस के रूप में मनाया जाता है। इंसानों में स्वत: पनपने वाला यही वो भाव है जो जाति, धर्म, राजनीति, अमीर-गरीब के नाम पर बंटे लोगों को आपस में जोड़ता है। जाहिर है ये भाव इंसान में सदा बना रहे, इसके लिए इस विषय के प्रति जागरुकता फैलाना अनिवार्य हो जाता है। पढि़ए इस दिन से जुड़ी कुछ जरूरी बातें।
विश्व को बेहतर बनाने की दिशा में प्रत्येक मानव का सकारात्मक योगदान जरूरी है और उस सकारात्मक योगदान की हिस्सेदारी देने के लिए जरूरी है हर एक के मन में दया का भाव। व्यक्तिगत और सांगठनिक स्तर पर धरा का हर मानव दया और करुणा के भाव का प्रसार करे, इन भावों के लिए प्रतिबद्ध बने रहे का संकल्प ले और किसी भी परिस्थिति में अक्षम लोगों की मदद के लिए उस मुहिम में जुड़कर अपना योगदान दे, बस ऐसे ही भावों के संचार, विस्तार और प्रचार-प्रसार के उद्देश्य से साल के एक दिन यानि 13 नवंबर को विश्व दया दिवस के रूप में मनाया जाता है, ताकि लोगों का सकारात्मक योगदान एक सक्षम समाज और जहान बनाने में सफल हो।
वैसे दया का भाव खुद में जीवंत बनाए रखने के लिए य़े जानने की जरूरत बेशक नहीं कि इस दिन की शुरुआत कब से हुई, क्यों हुई…. फिर भी आपको बता दें कि विश्व यदा दिवस को मनाने की आवाज उठी थी 90 के दशक में। इस दिन को मनाने की शुरुआत साल 1998 में वर्ल्ड काइंडनेस मूवमेंट संगठन द्वारा की गई, इस संगठन की स्थापना विश्व के दयालु संगठनों द्वारा साल 1997 के टोक्यो सम्मेलन में की गई थी और साल 2019 में इस संगठन को स्विस कानून के तहत एक आधिकारिक एनजीओ के रूप में पंजीकरण प्राप्त हुआ। मौजूदा समय में वर्ल्ड काइंडनेस मूवमेंट में 28 से ज्यादा राष्ट्र शामिल हैं जिनका किसी भी धर्म या राजनीतिक मूवमेंट से संबद्ध नहीं है।
वैसे साल 2009 में सिंगापुर ने पहला विश्व दया दिवस मनाया था और इटली-भारत जैसे देशों ने भी इस दिन को मनाने की शुरुआत की। आज कनाडा, जापान, ऑस्ट्रेलिया, नाइजीरिया और संयुक्त अरब अमीरात समेत विश्व के तमाम देश इश दिन को सेलिब्रेट करते हैं। अब विश्व से अलग यदि भारतीय संस्कृति के मुताबिक दया शब्द की व्याख्या करें तो भारतीय संस्कृति में दया भाव का स्थान काफी ऊपर है, दया को सबसे बड़ा धर्म कहा गया है।
संत कबीरदास ने भी अपने एक दोहे में कहा है
जहां दया तहं धर्म है, जहां लोभ तहं पाप।
जहां क्रोध तहं काल है, जहां क्षमा आप॥
मानव के अंदर बसा ये वो स्वाभाविक गुण है जो धरती को स्वर्ग बनाने का सामर्थ्य रखता है, और बीते साल से चल रहे कोरोना काल में पूरी दुनिया ने महामारी का जो दंश झेला है उसमें इसी दया भाव ने लोगों को विकट स्थिति से पार लगाया है। कोरोना काल एक साक्षात और ताजा उदाहरण है कि दया, दयालुता और सहाय़ता का भाव मददगार को कितनी भी मुश्किल स्थिति में एक अनमोल सहायता का उपहार साबित होता है। व्यक्ति जीवन में कितनी भी बुलंदियों पर पहुंच जाए लेकिन खुद में दया का भाव सदा जीवंत बनाए रखे क्योंकि ये भाव खुद के और दूसरे के विकास के लिए एक अहम बिंदु साबित होता है। दया से प्ररित आपकी शुरु की हुई एक छोटी सी शुरुआत कल एक मुहिम बनकर सैकड़ों लोगों के जीवन को रोशन कर सकती है, इसलिए दया भाव को सदा सहेजे रखें, दूसरों के प्रति दया का भाव रखने वाले सदैव आदर का पात्र बनते हैं।