स्मिथा सिंह, नई दिल्ली
12 जून की तारीख को हर साल विश्व भर में World day against child labour यानि विश्व बाल श्रम निषेध दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस लेख के माध्यम से जानिए विश्व बाल श्रम निषेध दिवस से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें।
देश को शायद ही कोई हिस्सा होगा जहां नन्हे हाथ जीविका जुटाने के लिए मेहनत न करते हों, छोटे-छोटे होटलों, ढाबों, रेस्ट्रो, फैक्ट्रियों यहां तक कि घरों में भी मासूम बच्चे काम कमते नजर आते हैं। बच्चे ना तो अपने कानूनअधिकार जानते हैं ना ही पेट की भूख को शांत करने के लिए इन्हें मजदूरी करने के अलावा दूसरा कोई जरिया पता है और ये चिंता का विषय है कि भारत में बाल श्रमिकों की संख्या काफी ज्यादा है।
ऐसे में बाल मजदूरी के प्रति विरोध जताने और बाल श्रम के प्रति जागरुकता फैलाने के उद्देश्य से 12 जून को बाल श्रम निषेध दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन को मनाने की शुरुआत सयुंक्त राष्ट्र की संस्था इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइजेश ने साल 2002 में की। अंतरराष्ट्रीय श्रम संघ ने ही वैश्विक स्तर पर पहली बार बालश्रम को रोकने पर जोर दिया और साल 2002 में सर्वसम्मति से एक कानून पास कर किया गया। जिसके तहत 14 साल से कम उम्र के बच्चों से मजदूरी/काम कराने को अपराध माना गया और इसी साल 12 जून को पहली बार विश्व बालश्रम निषेध दिवस मनाया गया।
इस दिन को मनाने का उद्देश्य है 14 साल के कम उम्र के बच्चों को मजदूरी न कराकर उन्हें शिक्षा दिलाने के प्रति जागरुक करना। वैश्विक स्तर पर बाल श्रम निषेध दिवस की घोषणा के बाद भी भारत में अक्टूबर 2006 तक बालश्रम इसी उधेड़बुन में गोते खाता रहा कि किसे घातक और किसे साधारण बाल श्रम की कैटेगरी में रखा जाए, लेकिन फिर 1986 के अधिनियम में संशोधन कर ढाबों, घरों और होटलों में बाल श्रम
करनावे को दंडनीय अपराध की श्रेण में रखा गया। भारती संविधान के मौलिक अधिकारों और नीति निर्देशों में ये भी कहा गया कि 14 साल से कम उम्र के बच्चों से फैक्ट्री या खदान में काम नहीं कराया जाएगा और ना ही किसी खतरनाक नियोजन के लिए नियुक्त किया जाएगा।
बालश्रम निषेध व नियमन कानून 1986 के अंतर्गत 14 साल के कम उम्र के बच्चों जीवन और स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए 13 पेशे और 57 प्रतिक्रियाओं को बच्चों से कराने पर पाबंदी लगाई गई और कानून में उनका विवरण दिया गया और धारा 45 के अंतर्गत देश के सभी राज्यों को 14 साल से कम उम्र के बच्चों को मुफ़्त शिक्षा देना अनिवार्य किया गया।
बालश्रम को रोकने के लिए तमाम नियम कानून और कानूनों में बदलावों के बाद भी अब तक बालश्रम पर विराम नहीं लगा है, हां तमाम सख्तियों और पाबंदियों के बाद इनमें थोड़ी कमी जरूर आई थी, लेकिन दो दिन पहले आई एक रिपोर्ट चाइल्ड लेबर: ग्लोबल एस्टीमेट्स 2020, ट्रेंड्स एंड रोड फॉरवर्ड ने इस दिशां में चिंताए बढ़ा दी हैं। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन औऱ यूनिसेफ की इस रिपोर्ट के मुताबिक दुनियाभर में बाल मजदूरों की संख्या बढ़कर 16 करोड़ हो गई है। ये दो दशक में पहली बार हुआ है जब वैश्विक स्तर पर बालश्रम में बढ़ोत्तरी देखी गई है।
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन और संयुक्त राष्ट्र बाल कोष यानि UNICEF के मुताबिक साल 2016 में बाल श्रमिकों की संख्या 15.2 करोड़ थी जो अब बढ़कर 160 मिलियन यानि 16 करोड हो गई है, जबकि 2000 से 2016 के बीच बाल श्रम में बच्चों की संख्या 9.4 करोड़ कम हुई थी। इन आकड़ों में जनसंख्या वृद्धि और गरीबी के कारण अफ्रीका में सबसे अधिक वृद्धि हुई है। वैश्विक महामारी कोविड 19 के दौरान लॉकडाउन के चलते आजीविका के संकट ने लाखों बच्चों को बाल मजदूरी के जोखिम में डाल दिया है।
पूरी दुनिया में मानवजाति पर विकराल संकट बन कर टूटी कोरोना महामारी ने अन्य गतिविधियों के साथ-साथ बाल अधिकार के लिए भी संकट खड़े किए हैं, क्योंकि कई परिनारों की आजीविका खत्म होने या आर्थिक तंगी बढ़ने से बाल श्रम बढ़ने का जोखिम भी बढ़ गया है1. ऐसे में संयुक्त राष्ट्र ने 2021 को बालश्रम उन्मूलन के लिए अंतर्राष्ट्रीय वर्ष घोषित करते हुए कहा है कि 2025 तक इस प्रथा को समाप्त करने के लक्ष्य को पूरा करने के लिए तत्काल कार्रवाई की जरूरत है।