स्मिथा सिंह, नई दिल्ली
कैलेंडर में 2 अप्रैल की तारीख को वैश्विक स्तर पर वर्ल्ड ऑटिज्म अवेयरनेस डे के रूप में मनाया जाता है, क्या है ये ऑटिज्म, जिसके प्रति जागरुकता फैलाने के लिए एक दिन समर्पित है, वो भी वैश्विक स्तर पर, और क्यूं? आईये बताते हैं इस लेख के माध्यम से।
World Autism Awareness Day का महत्त्व समझें
2 अप्रैल यानि World Autism Awareness Day, जिसे विश्भर में Autism के प्रति Awareness फैलाने के उद्देश्य से मनाता जाता है। तो इस दिन के महत्व को समझने के लिए पहले ऑटिज्म को समझना जरूरी है। ऑटिज्म को लेकर स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि ये एक मानसिक विकार या बीमारी है जिसके लक्षण बच्चे में बचपन से ही दिखाई देने लगते हैं, ऑटिज्म के शुरुआती लक्षण 1-3 साल के बच्चों में नजर आते हैं लेकिन इस बीमारी के प्रति जागरुकता की कमी और लक्षणों को न पहचान पाने के अधूरे ज्ञान के कारण इस बीमारी के मरीजों की गिनती बढ़ रही है, इसीलिए 2 अप्रैल को विश्वभर के लोगों को ऑटिज्म के प्रति जागरुक किया जाता है।
पहचानें क्या है लक्षण
ऑटिज्म यानि स्वलीनता या आसान शब्दों में कहें कि खुद में खोए रहना, ये एक ऐसी मानसिक समस्या है, जिसकी वजह से बच्चे के मानसिक विकास में बाधा आती है। ऑटिज्म के शिकार बच्चे, सामान्य लोगों से घुलने-मिलने से कतराते हैं, किसी भी बात का रिस्पॉर्स सामान्य बच्चों की तरह तुरंत नहीं कर पाते, उन्हें प्रतिक्रिया देने में काफी वक्त लगता है। मसलन ऐसे बच्चे सवाल सुनने के बाद भी उसपर प्रतिक्रिया नहीं देते। उन्हें बोलने में दिक्कत होती है। इस बीमारी से पीड़ित बच्चा अपनी ही दुनिया में खोया रहता है क्योंकि मानसिक विकास ठीक से न हो पाने की वजह से बच्चों में ये समझ विकसित नहीं हो पाती और जवाब देने के लिए शब्दों का चयन करने में उन्हें समस्या होती है। यदि आपका बच्चा जन्म के कुछ महीनों बाद भी खिलौनों की आवाज पर प्रतिक्रिया नहीं देता, मुस्कुराता या उत्साहित नहीं होता तो इसे अनदेखा न करें, क्योंकि ये ऑटिज्म नामक बीमारी के साधारण लक्षण हैं।
यह हो सकते हैं कारण
इस बीमारी के होने के वास्तविक कारणों का पता तो अभी नहीं चल सका है लेकिन हां वैज्ञानिकों का ये मानना है कि ये बीमारी जींस के कारण हो सकती है। इसके अलावा वायरस या बच्चे के जन्म के वक्त ऑक्सीजन की कमी, बच्चे को ऑटिज्म का शिकार बना सकती है। ऑटिज्म पर हुई एक स्टडी में ये भी पाया गया है कि PCOS यानि पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम की शिकार महिलाओं से पैदा होने वाले बच्चों के ऑटिज्म से पीड़ित होने की आशंका ज्यादा रहती है इसके अलावा गर्भावस्था के दौरान महिला का किसी बीमारी से ग्रसित होना या पोषक तत्वों की कमी भी, बच्चे को ऑटिज्म बीमारी का शिकार बना सकती है।
संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा इस बीमारी के प्रति जागरुकता फैलाने के लिए साल 2007 में प्रति वर्ष 2 अप्रैल को विश्व ऑटिज्म जागरुकता दिवस मनाने की घोषणा की गई। इस दिन को मनाने की जरूरत इसलिए पड़ी, क्योंकि ऑटिज्म एक ऐसी मानसिक बीमारी है जिसका समय पर इलाज इस विकार को रोक सकता है, बस जरूरत है कि लोग इस बीमारी के प्रति जागरुक हों, इसके लक्षणों को पहचान सकें।
आज इस बीमारी के प्रति जागरुक होने की जरूरत इसलिए है क्योंकि हर सौ में से एक बच्चा ऑटिज्म का शिकार हो रहा है। इनमें से करीब 20 प्रतिशत ऑटिज्म के मामलों के लिए आनुवांशिक कारण जिम्मेदार होते हैं और तकरीबन 80 फीसदी मामलों के लिए पर्यावरण वंशानुगत कारण जिम्मेदार होते हैं, लेकिन इस बीमारी के प्रति प्रत्येक मानव जागरुक बने तो इस समस्या को बढ़ने से रोका जा सकता है, इसलिए विश्व ऑटिज्म जागरुकता दिवस मनाया जाता है। तो इस दिन के महत्व को समझें और इस बीमारी के प्रति सचेत होने के लिए इस विषय को पूरा जरूर समझें।