स्मिथा सिंह, नई दिल्ली
20 मार्च को हर वर्ष विश्व गौरेया दिस के रूप में भी मनाया जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि विश्व गौरैया दिवस महज गौरैया के संरक्षण के लिए जरूरी नहीं, बल्कि इस गौरैया के लुप्त होने से इंसान प्रभावित हो रहा है, इसलिए भी गौरैया का अस्तितव कायम रहना हमारे लिए आवश्यक है। कैसे, समझिए इस लेख के माध्यम से। 2-3 दशक पहले तक हम अपने घरों के आस-पास ऐसी अनगिनत चिड़ियों के झुंड़ देखते थे जिनकी चहचहाहट के साथ हमारी सुबह होती थी, घरों के आसपास, खिड़की दरवजों के ऊपर इनके घौंसले हुआ करते थे, लेकिन जैसे जैसे विकास ने रफ्तार पकड़ी, इनके घोंसले ही नहीं ये खुद भी गायब हो गईं। कहां गई ये गौरैया, और क्यूं आज हमें इनके संरक्षण की जरूरत है? तो जवाब है, इसलिए क्योंकि प्रकृति चक्र में छोटे-बड़े, सूक्ष्म-विशाल हर प्राणी- जीव का योगदान अहम है, फिर चाहें वो चींटी हो, दीमक हो, मधुमक्खी हो, गौरैया हो या फिर इंसान। लेकिन विकास की दौड़ में भागीदारी दे रहे इंसान को सिर्फ अपना ही योगदान सर्वोपरि लगता है।
खैर, गौरैया यानि हाउस स्पैरो, जिसे हम सिर्फ एक नन्ही चिड़िया से ऊपर कुछ नहीं मानते, ये पर्यावरण के लिए बैरोमीटर की तरह काम करती है। हवाओं का विषैलापन या प्रदूषण हम महान बुद्धिजीवियों से बेहतर भांप लेती है ये नन्ही चिड़िया, और वहीं बसर करती है, जहां हवाएं दुरुस्त और स्वस्थ हों। गौरैया के लुप्त होने की बड़ी वजहों में एक वजह प्रदूषण भी है। वो मोबाइल टावर्स भी, जिनसे निकलने वाली तरंगें इनकी जिंदगियों को खत्म कर रही हैं, और हमारा विकास भी। जैसे जैसे लोग आम मकानों से हटकर सोसायटीज, टावर आदि में रहने लगे हैं, अपने बड़े से घरों में उन्हें इन गौरैयों का नन्हा घोंसला अखरता है, घर के बाहर भले हम टनों प्लास्टिक, कूड़ा फैला के लौटें लेकिन घर में इनका एक घोंसला हमें गंदगी का अहसास कराता है। अब बचे पेड़, जो इनके घोंसलों के लिए ठिकाना हैं, तो वो भी हमारे विकास की बलि चढ़ गए हैं। अब जब घर बसाने को जगह ही नहीं बची, हवाएं भी जहर हो गईं तो ये स्वच्छता पसंद
करने वाला पंछी भला कैसे बसर करे। यही वजह है कि विश्व में सबसे ज्यादा पायी जाने वाली ये नन्ही पंछी गौरैया गायब हो रही हैं।
वक्त के साथ गायब हो रही है गौयैरा
गौरैया एक ऐसा पंछी है जिसे जंगल –झाड़ियों में नहीं, इसांनों के बीच रहना पसंद है, इसलिए इनके घोंसलों को एक दौर में घरों के आसपास, आंगन, या खिड़की के ऊपर देखा जाता था, और इसे शुभ माना जाता था। ये हाउस स्पेरो इंसानों के लिए कितनी लकी है, इसका उदाहरण मौजूदा समय में टर्की में देखा जा सकता है, जहां लोग अपने घरों के बाहर एक घर इस नन्ही चिड़िया के लिए भी बनाते हैं और उन छोटे छोटे घोंसलो में गौरैया का बसेरा घर में रहने वाले इंसानों के लिए शुभता देने वाला माना जाता है। कभी हमारे घरों में भी शुभता का प्रतीक मानी जाने और सकारात्मक सोच रखने वाली गौरैया किसानों की भी एक बड़ी प्यारी दोस्त होती है, जो उनकी फसलों पर आने वाले हानिकारक कीटों को खाती है, और फसलों की रक्षा कें सहायक बनती है, लेकिन आज किसान भी इतना आधुनिक है कि कीटों के नाश के कीटनाशकों का इस्तेमाल धड़ल्ले से करता है, नतीजा किसान के शत्रु कीटों को खाने वाली चिड़िया, रसायनों से सराबोर फसलों
पर अपना भोजन नहीं पा पाती, और हम इंसान तो इसते स्वच्छता प्रेमी हैं कि दाना डालना भी हमें गंदगी लगता है। फिर ये नन्हा पक्षी अपना पेट कहां से भरता। ऐसे ही कुछ कारणों के चलते गुमानी-गुरूरी इंसानों की बस्तियों से गायब होने लगीं गौरैया, जो आज रेड लिस्ट में है।
गौरैया के संरक्षण के लिए समर्पित है एक दिन
लुप्त होती गौरैया के संक्षण के लिए साल 2010 से प्रतिवर्ष 20 मार्च की तारीख को विश्व गौरैया दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। इस दिन को मनाने का उद्देश्य है, लोगों के बीच छोटी सी गौरैया की बड़ी भूमिका के प्रति जागरुकता फैलाना, लोगों को ये समझाना की प्रकृति के इस सहचरी, पर्यावरण के इस बैरोमीटर की गैरमौजूदगी, इंसानों के लिए शुभ संकेत नहीं है। जो लोग गौरैया के महत्व को समझ रहे हैं वे इसे बचाने की मुहिम में अपनी भागीदारी दे भी रहे हैं।
भारत की कुछ संस्थाएं भी गौरैया के संरक्षण की मुहिम में शामिल होकर, लोगों के बीच जागरुकता अभियान चला रही हैं और नई पीढी के नन्हे-मुन्हों को इस नन्ही गौरैया के अस्तित्व से अवगत भी करा रही हैं, ताकि असंवेदशील होती जा रही इंसानी सोच के बीच नई पीढ़ी इस नन्हे पंछी के संरक्षण के लिए संवेदनशील बनें और चिड़ियों की चहचहाहट से चमन चहकता रहे।