कोरोना काल में केंद्र सरकार लगातार निशाने पर रही है। ऑक्सीजन और बेड से लेकर वैक्सीन की कमी से मचे त्राहिमाम को लेकर केंद्र पर सवाल उठाए गये हैं। इन दिनों मोदी सरकार वैक्सीन की कमी को लेकर विपक्ष के निशाने पर है। बुधवार को दिल्ली सरकार ने भी वैक्सीन की कमी पर केंद्र सरकार को घेरने की कोशिश की। इन सवालों को लेकर जनता के मन में उठ रही शंका को दूर करने के लिए केंद्र सरकार ने कई सवालों के जवाब दिए हैं। इन सवालों के जवाब नीति आयोग के सदस्य डॉ विनोद पॉल की ओर से आए हैं। डॉ पॉल ने उन 7 सवालों के जवाब दिए हैं जिन्हें लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्र सरकार पर गंभीर आरोप लगाए जा रहे हैं। आइये देखें क्या हैं वो सवाल और उनके जवाब।
1.मिथक- सरकार विदेश से टीके (Vaccine) खरीदने की पूरी कोशिश नहीं कर रही-
तथ्य- केंद्र सरकार वैक्सीन बनाने वाली सभी बड़ी इंटरनेशनल कंपनियों के साथ 2020 के मध्य से ही लगातार संपर्क में है। फाइजर, जेजे और मॉडर्ना के साथ सरकार कई दौर की बातचीत भी कर चुकी है। सरकार ने उन्हें वैक्सीन की सप्लाई या भारत में वैक्सीन निर्माण के लिए हर संभव सहयोग देने की पेशकश की है। ऐसा नहीं है कि ये कंपनियां निशुल्क वैक्सीन सप्लाई के लिए उपलब्ध हैं। हमें यह समझने की जरूरत है कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर टीके खरीदना ‘ऑफ द शेल्फ’ वस्तु खरीदने के समान नहीं है। विश्व स्तर पर टीके सीमित आपूर्ति में हैं, और सीमित स्टॉक को आवंटित करने में कंपनियों की अपनी प्राथमिकताएं, योजनाएं और मजबूरियां हैं। वो अपने मूल देशों को भी प्राथमिकता देती हैं जैसे हमारे अपने वैक्सीन निर्माताओं ने हमारे लिए निसंकोच किया है। जैसे ही फाइजर वैक्सीन की उपलब्धता की जानकारी देगा, उतनी ही जल्दी भारत में वैक्सीन आयात करने की कोशिश होगी। ये भारत सरकार की कोशिशों का ही नतीजा है कि स्पूतनिक वी की डोज भारत में आ गई हैं और जल्द ही भारत में इसका निर्माण भी शुरू हो जाएगा। हम सभी अंतर्राष्ट्रीय वैक्सीन निर्माताओं से भारत में आने और भारत और दुनिया के लिए वैक्सीन बनाने के अपने अनुरोध को दोहराते हैं।
2. मिथक- केंद्र ने विश्व स्तर पर उपलब्ध टीकों को मंजूरी नहीं दी है
तथ्य- केंद्र ने अप्रैल में भारत में यूएस एफडीए (FDA), ईएमए (EMA), यूके के एमएचआरए (MHRA), जापान के पीएमडीए (PMDA) और डब्ल्यूएचओ कीआपातकालीन उपयोग सूची द्वारा अनुमोदित टीकों को प्राप्त करने की प्रक्रिया को आसान बना दिया है। इन टीकों को पूर्व ब्रिजिंग परीक्षणों से गुजरने की आवश्यकता नहीं होगी। अन्य देशों में निर्मित, अच्छी तरह से स्थापित टीकों के लिए ट्रायल को पूरी तरह से समाप्त करने के लिए प्रावधान में अब और संशोधन किया गया है। औषधि नियंत्रक (ड्रग कंट्रोलर) के पास अनुमोदन के लिए किसी विदेशी विनिर्माता का कोई आवेदन लंबित नहीं है।
3. मिथक- सरकार घरेलू वैक्सीन उत्पादन बढ़ाने के लिए कुछ नहीं कर रही
तथ्य- केंद्र सरकार 2020 की शुरुआत से ही ज्यादा से ज्यादा कंपनियों से वैक्सीन बनवाने के लिए हर संभव सुविधा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। देश में केवल 1 भारतीय कंपनी (भारत बायोटेक) है जिसके पास आईपी है। भारत सरकार ने ये सुनिश्चित किया है भारत बायोटेक के अलावा 3 अन्य कंपनियां भी कोवैक्सिन का निर्माण करेंगी। भारत बायोटेक द्वारा कोवैक्सीन का उत्पादन अक्टूबर तक 1 करोड़ प्रति माह से बढ़ाकर 10 करोड़ माह किया जा रहा है। इसके अलावा, तीनों सार्वजनिक उपक्रमों का लक्ष्य दिसंबर तक 4.0 करोड़ खुराक तक उत्पादन करने का होगा। सरकार के निरंतर प्रोत्साहन के बाद से सीरम इंस्टीट्यूट प्रति माह 6.5 करोड़ खुराक के कोविशील्ड उत्पादन को बढ़ाकर 11.0 करोड़ खुराक प्रति माह कर रहा है। भारत सरकार रूस के साथ साझेदारी में यह भी सुनिश्चित कर रही है कि स्पूतनिक का निर्माण डॉ. रेड्डी के समन्वय के साथ 6 कंपनियों द्वारा किया जाएगा।
4. मिथक- केंद्र को अन्य कंपनियों को लाइसेंसिंग के लिए आमंत्रित करना चाहिए।
तथ्य- यह एक बहुत अच्छा आइडिया नहीं है कि कंपलसरी लाइसेंसिंग दी जाए। यह महज कंपनियों को फॉर्मूला देने की बात नहीं है बल्कि सक्रिय भागीदारी, मानव संसाधनों का प्रशिक्षण, कच्चे माल की सोर्सिंग और जैव-सुरक्षा प्रयोगशालाओं के उच्चतम स्तर की आवश्यकता है। प्रौद्योगिकी हस्तांतरण एक कुंजी है और यह उस कंपनी के नियंत्रण में होता है जिसने अनुसंधान और विकास किया है। वास्तव में, हम अनिवार्य लाइसेंसिंग से एक कदम आगे बढ़ चुके हैं और कोवैक्सीन के उत्पादन को बढ़ाने के लिए भारत बायोटेक और 3 अन्य संस्थाओं के बीच सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित कर रहे हैं। स्पूतनिक के लिए भी इसी तरह की व्यवस्था पर काम हो रहा है। इस बारे में सोचें: मॉडर्ना ने अक्टूबर 2020 में कहा था कि वह अपनी वैक्सीन बनाने वाली किसी भी कंपनी पर मुकदमा नहीं करेगी, लेकिन फिर भी एक भी कंपनी ने ऐसा नहीं किया है, जिससे पता चलता है कि लाइसेंसिंग एक बहुत ही छोटी समस्या है। अगर वैक्सीन बनाना इतना आसान होता, तो विकसित देशों में भी वैक्सीन की खुराक की इतनी कमी क्यों होती?
5. मिथक- केंद्र सरकार ने अपनी जिम्मेदारी राज्यों को सौंप दी है
तथ्य- वैक्सीन का उत्पादन बढ़ाने से लेकर विदेशी वैक्सीन भारत लाने के लिए जल्द से जल्द मंजूरी प्राप्त करवाने तक, हर भारी भरकम काम भारत सरकार कर रही है। राज्य सरकारें बखूबी वाकिफ हैं कि केंद्र राज्यों को लोगों में मुफ्त में टीके देने के लिए वैक्सीन सप्लाई कर रही है। भारत सरकार ने राज्यों को उनके स्पष्ट अनुरोध पर, स्वयं टीकों की खरीद का प्रयास करने में सक्षम बनाया है। राज्यों को पता है कि भारत की वैक्सीन उत्पादन क्षमता क्या है और विदेश से वैक्सीन मंगवाने में किस तरह की परेशानी हो रही है। भारत ने जनवरी से लेकर अप्रैल तक पूरा टीकाकरण अभियान चलाया गया जो की मई महीने के मुकाबले काफी बेहतर था। लेकिन वो राज्य जिन्होंने फ्रंटलाइन वर्कर्स और स्वास्थ्यकर्मियों के टीकाकरण में भी अच्छी कवरेज हासिल नहीं की है, वो चाहते हैं कि इस अभियान को और लोगों के लिए खोल दिया जाए।
6. मिथक- केंद्र राज्यों को पर्याप्त वैक्सीन नहीं दे रहा
तथ्य- केंद्र की ओर से राज्यों को तय दिशा-निर्देशों के अनुसार पारदर्शी तरीके से पर्याप्त टीके आवंटित कराया जा रहा है। राज्यों को भी वैक्सीन की उपलब्धता के बारे में पहले से ही सूचित किया जा रहा है। निकट भविष्य में वैक्सीन की उपलब्धता बढ़ने वाली है और बहुत अधिक आपूर्ति संभव होगी। गैर-सरकारी माध्यम में, राज्यों को 25% खुराक मिल रही है और निजी अस्पतालों को 25% खुराक मिल रही है। हालाँकि, राज्यों द्वारा लोगों को इन 25% खुराकों को देने में ही हो रही मुश्किलों और समस्याओं को बहुत अधिक करके बताया जाता है। हमारे कुछ नेताओं का व्यवहार, जो टीके की आपूर्ति पर तथ्यों की पूरी जानकारी के बावजूद, प्रतिदिन टीवी पर दिखाई देते हैं और लोगों में दहशत पैदा करते हैं, बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। यह समय राजनीति करने का नहीं है। हम सभी को इस लड़ाई में एकजुट होने की जरूरत है।
7. मिथक- केंद्र बच्चों के टीकाकरण के लिए कोई कदम नहीं उठा रहा
तथ्य- अभी तक दुनिया का कोई भी देश बच्चों को वैक्सीन नहीं दे रहा है। WHO ने भी बच्चों को वैक्सीन देने की बात नहीं कही है। भारत में बच्चों के लिए वैक्सीन का ट्रायल जल्द ही शुरू हो जाएगा। हालांकि, बच्चों का टीकाकरण व्हाट्सएप ग्रुपों में फैलाई जा रही दहशत के आधार पर तय नहीं किया जाना चाहिए और क्योंकि कुछ राजनेता इस पर राजनीति करना चाहते हैंष परीक्षणों के आधार पर पर्याप्त डेटा उपलब्ध होने के बाद ही हमारे वैज्ञानिकों द्वारा यह निर्णय लिया जाएगा।