आज नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती है। केंद्र सरकार ने नेता जी की जयंती को पराक्रम दिवस के रुप में मनाने का ऐलान किया है। आजाद हिंद फौज के संस्थापक और एक बहादुर स्वतंत्रता सेनानी नेताजी की ज़िंदगी के बारे में किताबों में लेकर उल्लेख है। लेकिन उनकी मौत आज भी एक पहेली है। 18 अगस्त, 1945 को ताइपेई में हुई एक विमान दुर्घटना के बाद नेताजी का क्या हुआ, वो कहां गायब हो पता ही नहीं चला। उनकी मौत हुई या फिर वो लापता हो गये या फिर उनके साथ कुछ और दुर्घटना घटी, कोई नहीं जानता। इस घटना को लेकर तीन जांच आयोग भी बैठे, छानबीन भी की गई। दो जांच आयोगों ने यह दावा किया कि विमान दुर्घटना ने उनकी जान लील ली थी। लेकिन इन दो आयोगों के दावे उनके चाहने वालों और परिजनों के गले नहीं उतरी। न्यायमूर्ति एमके मुखर्जी की अध्यक्षता वाले तीसरे जांच आयोग का दावा कुछ और ही था। इस आयोग की दावा था कि घटना के बाद नेताजी जीवित थे। 1999 में एमके मुखर्जी आयोग ने अपनी रिपोर्ट में ताइवान सरकार के हवाले से कहा कि 1945 में कोई प्लेन क्रैश की घटना ही नहीं हुई। इस प्लेन क्रैश का कोई रिकॉर्ड नहीं है। हालांकि, सरकार ने इस रिपोर्ट को अस्वीकार कर दिया था। आयोग के इस दावे ने नेताजी के परिवार के सदस्यों के बीच भी दीवार खड़ी कर दी थी।
गुमनामी बाबा थे नेताजी
नेता जी के निधन के सालों बाद तक देश के अलग-अलग हिस्सों में उन्हें देखे जाने के दावे किए जाते रहे। कई बार फैजाबाद में गुमनामी बाबा से लेकर उन्हें छत्तीसगढ़ में देखे जाने की खबरें आईं। छत्तीसगढ़ में तो ये मामला राज्य सरकार के पास भी गया, लेकिन राज्य सरकार ने इस मामले पर कोई पहल नहीं किया। माना गया कि बोस भारत लौट आए और अवध के फैजाबाद में एक अलग नाम (भगवानजी या गुमनामी बाबा) के साथ रहते थे। गुमनामी बाबा और नेता जी के बीच संबध को लेकर भी कई थ्योरी है जो कहती हैं कि दोनों एक ही व्यक्ति थे। गुमनामी बाबा के ही नेताजी होने का दावा किया जाता है। 1985 में गुमनामी बाबा की मृत्यु के बाद उनके पास से नेताजी के परिवार की तस्वीरें, पत्र-पत्रिकाओं में छपे नेताजी से जुड़े लेख, कई अहम लोगों के खत , नेताजी की कथित मौत के मामले की जांच के लिए गठित शाहनवाज आयोग एवं खोसला आयोग की रिपोर्ट जैसी चीजें मिलीं।
नेताजी की आखिरी उड़ान
18 अगस्त 1945 में स्थितियां कुछ ऐसी थीं कि जापान को दूसरे विश्व युद्ध में हार का सामना करना पड़ा था। अंग्रेज नेताजी की जान के दुश्मन बने हुए थे। ऐसे में उन्होंने रूस से मदद मांगने का मन बनाया। 18 अगस्त 1945 को उन्होंने मंचूरिया की तरफ उड़ान भरी जो उनकी आखिरी उड़ान साबित हुई। नेताजी इसके बाद फिर कभी नहीं दिखाई दिए।
इस बात के पांच दिन बाद टोक्यो रेडियो से मिली जानकारी के अनुसार नेताजी जिस विमान से जा रहे थे वो ताइहोकू हवाई अड्डे के पास क्रैश हो गया था। जानकारी मिली की हादसे में नेताजी बुरी तरह से जल गए और ताइहोकू सैनिक अस्पताल में उनका निधन हो गया। आज भी उनकी अस्थियां टोकियो के रैंकोजी मंदिर में रखी हुई हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार ताइवान में एक विमान दुर्घटना में नेता जी की मृत्यु हो गई थी और उसी दिन उनके शरीर का अंतिम संस्कार कर दिया गया। उनकी अस्थियां टोक्यो स्थित बौद्ध मंदिर में ले जाया गया।जो बाद में विवाद का कारण बना।
बोस पर लिखी किताब के छह पन्ने गोपनीय
बंगाल की सरकार लंबे समय तक केंद्र सरकार से नेता जी से जुड़ी जानकारियों को सार्वजनिक करने की मांग करती रही। 2016 में प्रधानमंत्री मोदी ने सुभाष चंद्र बोस से जुड़ी सौ गोपनीय फाइलों का डिजिटल संस्करण सार्वजनिक किया, ये दिल्ली स्थित राष्ट्रीय अभिलेखागार में मौजूद हैं। वहीं, तृणमूल सांसद सुखेंदु शेखर रॉय का कहना है नेताजी की ‘आजाद हिंद फौज’ को लेकर लिखी गई एक किताब यह उजागर कर सकती है कि नेताजी उस विमान दुर्घटना में मारे गये थे या फिर बच निकले थे।
बता दें कि भारत सरकार द्वारा संकलित इस किताब ‘ए हिस्ट्री ऑफ इंडियन नेशन आर्मी 1942-45’ के छह पन्नों को गृह मंत्रालय ने गोपनीय घोषित कर दिया था। उन छह पन्नों को लेकर बंगाल की सरकार केंद्र सरकार से मांग भी करती रही है कि इन पन्नों को उजागर किया जाये। यह किताब विवाद के घेरे में है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इन पन्नों में नेताजी के विमान हादसे से जुड़ी ऐसी जानकारियां हैं जो उनकी मृत्यु के 76 साल बाद भी रहस्य बनी हुई हैं।
आज नेताजी की 125वीं जयंती पर कई राजनीतिक दलों ने केंद्र सरकार से नेताजी पर संकलित पूरी किताब को सार्वजनिक करने की मांग उठाई है। जाने-माने इतिहासकार प्रफुल्ल चंद गुप्ता की निगरानी में तैयार इस किताब को रक्षा मंत्रालय के इतिहास विभाग ने दस्तावेज के तौर पर संकलित किया था। लेकिन भारत सरकार ने इस किताब के 186 से 191 पेज को गोपनीय करार दे दिया था।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मौत एक रहस्य
नेता जी सुभाष चंद्र बोस की मौत आज भी एक बहुत बड़ा रहस्य है। सरकारी दस्तावेजों से लेकर इतिहासकार अलग-अलग राय रखते हैं। प्लेन क्रैश से लेकर गुमनामी बाबा की बाते सामने आती हैं। एक अनसुलझी गुत्थी है नेताजी की मौत। लेकिन किस-किस तरह की बातें सामने आई हैं आईये आपके बताएं। प्लेन क्रैश से लेकर गुमनामी बाबा के अलावा जो और अवधारणाएं हैं-
जेल में मिली यातनाएं
रिटायर्ड मेजर जनरल जी डी बख्शी की किताब ‘बोस: द इंडियन समुराई’ के अनुसार, नेताजी की मौत विमान दुर्घटना में मृत्यु नहीं हुई थी। दरअसल यह भी माना जाता है कि उन्हें रूस भागने में सुविधा हो सके, इसके लिए यह सिद्धांत लाया गया था। इस पुस्तक ने यह दावा किया कि जेल में अंग्रेजों द्वारा यातना के दौरान उनकी मृत्यु हो गई।
पेरिस के इतिहासकार जेबीपी मोर ने कहा 1947 तक जीवित थे नेता जी
पेरिस के इतिहासकार जेबीपी मोर ने फ्रांस सीक्रेट सर्विस की रिपोर्ट्स का हवाला देते हुए कहा था कि सुभाष चंद्र बोस 1947 तक जीवित थे। रिपोर्ट में यह बात कही गई थी कि वह भारतीय स्वतंत्रता लीग के पूर्व प्रमुख थे और एक जापानी संगठन हारीरी किकान के सदस्य भी थे।