पंजाब कांग्रेस में नवजोत सिंह सिद्धू सियासत का केंद्र बने हुए हैं। पहले कैप्टन से तनातनी और फिर चरणजीत चन्नी के मुख्यमंत्री बनते ही प्रदेश कांग्रेस के प्रधान पद से अचानक इस्तीफा देकर सबको चौंका दिया। कुछ दिनों पहले तक जो सिद्धू कैप्टन से भिड़े हुए थे, 2022 में प्रदेश में पार्टी तो सत्ता दिलाने का दम भर रहे थे, अचानक ही इस्तीफा दे दिया। दरअसल सिद्धू के इतिहास को देखें तो यह समझ में आता है कि सिद्धू के इस रवैये के पीछे का सबसे बड़ा कारण उनका गुस्सैल होना है।
जी हां, शायद आपको यकीन ना हो। कॉमेडी शो में ठहाके लगाने वाले सिद्धू को खुद के टेंपरामेंट पर कंट्रोल नहीं है। वैसे तो सिद्धू भीड़ आकर्षित करने में माहिर हैं, एक बेहतरीन वक्ता हैं लेकिन तुनकमिजाजी उनकी छवि को धूमिल करती है। अब पंजाब के मौजूदा माहौल का ही उदाहरण ले लें तो दिखेगा कि कैप्टन और सिद्धू के बीच लंबे समय तक तनातनी को देखते हुए कांग्रेस ने सिद्धू पर भरोसा जताया। आहत होकर कैप्टन अमरिंदर सिंह ने सीएम पद इस्तीफा दे दिया। लेकिन अब सिद्धू का रवैया बिलकुल प्रोफेशनल नहीं दिख रहा। माना जा रहा है कि कांग्रेस को उन्होंने मुश्किल में डाल दिया है।
सिद्धू के जीवन की वो तीन घटनाएं जब सिद्धू गुस्से में बेकाबू हो गये।
सिद्धू पर लग चुका है हत्या का आरोप
खेल का मैदान हो या राजनीति का सिद्धू पाजी फ्रंट फुट पर ही खेलना पसंद करते हैं। बात उन दिनों की है जब सिद्धू क्रिकेट के मैदान पर जमे हुए थे। 1987 का वर्ल्डकप खेलकर सिद्धू भारत वापस आ चुके थे। उन दिनों सिद्धू पर हत्या का इल्जाम लगा। 27 दिसंबर 1988 को सिद्धू अपने दोस्त रुपिंदर सिंह के साथ पटियाला के शेरावाले गेट मार्केट पहुंचे। कार पार्किंग को लेकर उनकी 75 साल के एक बुजुर्ग गुरनाम सिंह के साथ झगड़ा हो गया। सिद्धू ने उस बुजुर्ग के साथ हाथापाई भी की। कुछ ऐसा हुआ कि बुजुर्ग की तबीयत खराब हो गई। अस्पताल में गुरनाम सिंह की मौत हो गयी। मामले ने तूल पकड़ा और सिद्धू विवादों में आ गये। हालांकि पोस्टमार्टम की रिपोर्ट में यह पता चला कि व्यक्ति की मौत हार्ट अटैक से हुई थी। गैर-इरादतन हत्या के मामले में पटियाला पुलिस ने सिद्धू को जेल भेज दिया। उन्हें 3 साल की सजा सुनाई गयी। हालांकि यह मामला बेहद लंबा चला और बाद में सबूतों के अभाव में 15 मई 2018 को अदालत ने उन्हें बरी कर दिया।
भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान अजहरुद्दीन से नहीं बनी
बतौर क्रिकेटर सिद्धू अपने कप्तान की भी नहीं सुनते थे। गुस्सा उनके नाक पर रहता था। एक बार 1996 में जब भारतीय क्रिकेट टीम इंग्लैंड के दौरे पर थी तो उनकी करप्तान अजहरुद्दीन से बहस हो गई। भारतीय टीम तीन वनडे मैच की एक सिरीज खेलने गई थी। लेकिन अजहरुद्दीन गुस्सा होकर सिद्धू ने अचानक ही सिरीज छोड़कर भारत लौटने का वापस कर लिया। हांलाकि कप्तान अजहरुद्दीन से उनके विवाद के बात की पुष्टि नहीं हो पायी थी लेकिन 2011 में बीसीसीआई के पूर्व सचिव जयवंत लेने ने अपनी किताब में इस घटना का ज़िक्र किया है।
अरुण जेटली को कभी गुरु मानने वाले सिद्धू की जेटली से ही ठन गई
नवजोत सिंह सिद्धू को सियासत का रास्ता दिखाने वाले नेता थे बीजेपी के दिवंगत वरिष्ठ नेता अरुण जेटली। वो जेटली ही थे जिन्होंने सिद्धू के लिए गुरनाम सिंह मामले में पैरवी की। सिद्धू को जमानत मिली। अरुण जेटली ने ही सिद्धू को बीजेपी में शामिल करवाया। लेकिन 2014 में जब बीजेपी ने अमृतसर सीट से अरुण जेटली को अपना उम्मीदवार बनाया, तो सिद्धू और जेटली की ठन गई। दरअसल यह सीट सिद्धू की हुआ करती थी। जेटली को अपना गुरु मानने वाले सिद्धू आक्रोश में आ गये। सिद्धू ने चुनाव लड़ने से मना कर दिया। यहां तक कि सिद्धू जेटली के चुनाव प्रचार के लिए भी अमृतसर नहीं गए। फिर बगावत का बिगुल फूंक दिया। 2016 में सिद्धू ने अचानक ही बीजेपी पार्टी से अलग होने का फैसला सुनाया और राज्यसभा सीट छोड़ने का एलान कर दिया।