स्मिथा सिंह, नई दिल्ली
नाम गुम जाएगा…. चेहरा ये बदल जाएगा…. लता दीदी की आवाज से सजे इस गीत में उनकी अपनी शख्सियत की वो वास्तविकता झलकती है जो सुरों के कानों में उतरने के साथ ही जहन में उनकी छवि भी बनाती है। ये गीत और इसका हर बोल लता दीदी की आवाज की सार्थकता सिद्ध करता है, अपनी आवाज से उन्होंने देश ही नहीं दुनिया में वो पहचान बनाई है जो अनंत-अमिट है। लता मंगेशकर वो शख्सियत हैं जिनके बारे में लिखने को शब्द भी कम पड़ते हैं। आज लता दीदी अपना 92वां जन्मदिन मना रही हैं। इस मौके पर पढ़िए ये स्पेशल आर्टिकल।
संघर्ष भरा बचपन
28 सितंबर, 1929 को इंदौर, मध्यप्रदेश के एक मिडिल क्लास मराठी फैमिली में जन्मी लता मंगेशकर ने छोटी सी उम्र से ही तमाम संघर्षों को झेला है। जब वो महज 13 साल की थी तभी उनके पिता, मशहूर संगीतकार दीनानाथ मंगेशकर का देहांत हो गया और उस नन्ही सी उम्र में लता दीदी ने अपने परिवार की जिम्मेदारियों का बोझ उठाया। परिवार के भरण पोषण का भार कंधों पर लिए वो परिवार सहित पुणे से मुंबई आ गई। फिल्मों में गाने से पहले लता मंगेशकर मराठी कंपनी प्रफुल्ल पिक्चर्स में काम करती थीं। इतना ही नहीं जब वो 14 साल की थीं तो फिल्मों में हीरो-हिरोइन की बहन का रोल भी किया, लेकिन कभी मुश्किलों के आगे हताश होकर नहीं बैठीं। हालांकि उन्होंने 5 साल की उम्र में ही गायन शुरु कर दिया था लेकिन उनकी गायकी के वास्तविक सफर की शुरुआत हुई साल 1945 में, जब उनकी मुलाकात संगीतकार गुलाम हैदर से हुई और उस दौर से उन्होंने हिन्दी सिनेमा के इतने गीतों में अपनी सुरीली आवाज से सजाया जो अपने आप में एक युग है।
गिनीज़ बुक रिकॉर्ड में नाम दर्ज़
संगीत के एक शतक में 7 दशक लता दीदी की आवाज से महकते हैं। फिल्म इंडस्ट्री में 75 साल से ज्यादा वक्त से एक्टिव लता दीदी ने 36 भाषाओं के गीतों को अपनी आवाज से सजाया है। साल 1974 में दुनिया में सबसे ज्यादा गीत गाने का गिनीज़ बुक रिकॉर्ड भी लता दी के नाम है जिन्होंने अब तक 50,000 से ज्यादा गाने गाए हैं। लता बॉलीवुड की एक ऐसी गायिका हैं जिन्होंने अपने गायन से इतने रिकॉर्ड बनाए हैं जो आज भी कोई गायक नहीं तोड़ सका। उनके इसी अमूल्य योगदान के लिए साल 2001 में देश से सबसे बड़े सम्मान भारत रत्न से उन्हें सम्मानित किया गया है। ये भारतवर्ष के लिए भी गौरव की बात है कि लता मंगेशकर ऐसी जीवित शख्सियत हैं जिनके नाम से पुरस्कार दिए जाते हैं।
खाने में जहर देकर मारने की हुई थी कोशिश
ये भारत का सौभाग्य है कि सुरों की शहजादी, सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर के गीतों से जहानभर के गीत महक रहे हैं, लेकिन जब वो 33 साल की थीं तब उन्हें स्लो पॉइजन देकर मारने की कोशिश की गई थी। लता मंगेशकर ने खुद इसका खुलासा एक इंटरव्यू में किया था उन्हें मालूम है कि किसने उन्हें जहर देकर मारने की कोशिश की, लेकिन उसके खिलाफ कोई पुख्ता सबूत न होने की वजह से वो कुछ नहीं कर सकीं, हां इस वाक्ये ने उन्हें सचेत जरूर कर दिया। एक दिन उन्हें पेट में तेज दर्द हुआ और हरे रंग की उल्टियां होने लगीं, डॉक्टर को बुलाया तो पता चला कि उन्हें खाने में स्लो पॉइजन दिया जा रह है। जिस दिन उनकी तबीयत बिगड़ी उसी दिन उसका कुक गायब हो गया और इस घटना के सामने आने के बाद लता दीदी की छोटी बहन ऊषा मंगेशकर ने किचन खुद संभाली। हालांकि लता मंगेशकर को दिए गए उस जहर का असल काफी लंबे वक्त रहा, उस वक्त तीन महीने तक लता दीदी बिस्तर पर रहीं और उनके फैमिली डॉक्टर ने ही लता दीदी का इलाज किया।
कभी गलती से भी बेसुरा नहीं गाती
लता मंगेशकर की आवाज में वो जादू है कि उनके कंठ से निकले शब्द खुद ही साजों से संवरे हुए सुनाई देते हैं। तभी तो उनकी आवाज के चाहने वालों की संख्या अनंत है जो लता दीदी को मां सरस्वती का दर्जा देते हैं। छोटी सी उम्र से ही लता दीदी ने संगीत को अपना जीवन बना लिया था, उन्हें संगीत में वो महारथ हासिल है कि आज तक कोई दूसरा गायक उनकी गायकी का मुकाबला नहीं कर सका।उनके बारे में ‘उस्ताद बड़े गुलाम अली खां’ ने कहा था कि ‘कम्बख्त कभी गलती से भी बेसुरा नहीं गाती’।
स्पेशल बर्थडे गिफ्ट
आज लता दीदी अपना 92वां जन्मदिन मना रही हैं, इस खास मौके पर फिल्ममेकर विशाल भारद्वाज और गीतकार गुलजार लता दीदी को एक खास तोहफा दिया है। इन दोनों हस्तियों ने लता मंगेशकर के जन्मदिन पर उनका गाया वो गीत रिलीज किया है जो आज तक रिलीज नहीं हुआ। जी हां, साल 1996 में लता ने ऐश्वर्या राय की एक फिल्म में अपनी सुरीली आवाज से एक गीत को सजाया था लेकिन किसी वजह से वो फिल्म रिलीज ही नहीं हुई, इसी गाने को गुलजार और विशाल ने आज रिलीज करने का फैसला लिया है।