स्मिथा सिंह, नई दिल्ली
1 अक्टूबर की तारीख को वैश्वित स्तर पर एक साथ दिन मनाया जाता है, International Day of the Older person यानि अंतर्राष्ट्रीय बुजुर्ग दिवस। इस दिन को मनाने की जरूरत क्यों पड़ी, पढ़िए ये आर्टिकल।
“Age in just a number. It carries no weight….. लेकिन क्या बुजुर्गियत के दौर में पहुंचने वालों के अलावा दूसरे लोग इस वाक्य की सार्थकता को समझ पाते हैं, बेशक नहीं क्योंकि अगर समझ पाते तो इस विषय के प्रति जागरुक करने की जरूरत ही क्यों पड़ती, लेकिन क्योंकि आज की आधुनिक आबादी कुछ विषयों के प्रति पूरी तरह ज्ञानवान होकर भी अज्ञान है या उन्हें समझ कर भी अनसमझ और अनदेखी करने की आदि है, इसलिए ऐसे विषयों के प्रति आवाम को जगाना, उन्हें जागरुक बनाना वैश्विक स्तर पर बेहद जरूरी हो जाता है। बस इसलिए साल के एक दिन यानि 1 अक्टूबर को मनाया जाता है अंतरराष्ट्रीय बुजुर्ग दिवस जिसे आपर अंतरराष्ट्रीय वरिष्ठ नागरिक दिवस, विश्व प्रौढ़ दिवस या अंतर्राष्ट्रीय वृद्धजन दिवस कह सकते हैं।
ढलती उम्र के बुजुर्ग और नन्हे मासूमों की मनस्थिति में कोई खास अंतर नहीं होता, बस इतना सा फर्क होता है कि एक अपना लंबा सफर तय करने के बाद थकान के दिनों में सहारा मांगता है और एक नई दुनिया में जीने के लिए सहारा चाहता है। न बच्चा अकेले रह सकता है न बुजुर्ग। दोनों को ही प्यार, स्नेह और अपनेपन की जरूरत होती है। दो अलग उम्र के इऩ बच्चों में 1 से शुरु होने वाले बच्चे सौभाग्यशाली रहते हैं, जिन्हें सहारा स्वत मिलता है, लेकिन बहुत से बुजुर्ग बच्चे इस सौभाग्य से वंचित रह जाते हैं, जिन्हें ढलती उम्र में अपनों से वो आदर, प्यार और अपनापन नहीं मिलता जिसकी उन्हें चाहत औरर जरूरत होती है।
वैसे ये विषय ऐसा नही है जिसके लिए लिखना पड़े कि अपने बड़ों से आदर से पेश आइये, उन्हें बुजुर्गियत के दिनों में अकेना न महसूस होने दीजिए,,,, क्योंकि इस बात को समझाने की जरूरत ही नहीं है, ये ठीक वैसे हैं जैसे भूख लगने पर खाने का बंदोबस्त करना अपना स्वभाव है तो जाहिर है उम्र के सफर में थकान के पायदान पर पहुंचे अपनों को आराम और मन भर स्नेह देना छोटों का फर्ज। हां,,,, कई बार हम जानते समझते इस विषय के प्रति जागरुक नहीं रहते, इसलिए जागरुता फैलाने को मनाया जाता है ये एक दिन ताकि हम हर दिन अपने इस फर्ज के प्रति जागरुक और सजग बने रहें।
अब बात करें इस दिन के इतिहास की, कि बुजुर्ग दिवस मनाने की शुरुआत कब हुई, तो इस विषय को गंभीरता से लेते हुए संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 14 अक्टूबर 1990 को वृद्धजनों के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय दिवस घोषित किए जाने की बात रखी जिसके जिसके बाद 1 अक्टूबर को अंर्तराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस के रूप में मनाये जाने की घोषणा हुई और हर साल 1 अक्टूबर को अंर्तराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस मनाया जाने लगा। जिसका उद्देश्य था विश्व के हर उम्रदराज व्यक्ति को आदर, सम्मान और स्नेह दिलाना। विश्व के तमाम देशों में बुजुर्ग लोग अपनों के हाथों ही अपमान, भेदभाव, उपेक्षा और अन्याय का शिकार हो रहे हैं, ऐसे व्यवहारों पर अंकुश लगे, वृद्धावस्था में उन्हें अपनों से वो आदमी मिले जिसके बुजुर्ग हकदार हैं इसी उद्देश्य से इस दिन की शुरुआत हुई, और ये दिन इसी उद्देश्य की दिशा में हर साल कदम दर कदम आगे बढ़ रहा है, ताकि दुनिया का कोई बुजुर्ग बुढ़ापे में खुद को असहाय और लाचार न समझे।
हर साल विश्व बुजुर्ग दिवस के मौके पर सरकारें, स्वयं सेवा संस्था व तमाम निजी संस्थानों द्वारा विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन कर, लोगों को बुजुर्गों के साथ हो रहे अन्याय-अत्याचार व भेदभाव के प्रति जागरुक किया जाता है, इसके लिए खास तौर पर जागरुकता अभियान चलाए जाते हैं कि वयस्क आज अपने बुजुर्गों के प्रति अपने कर्तव्यों को ईमानदारी से निभाएं, ताकि कल वो खुद भी ढलती उम्र में अपनों से वही सम्मान पाएं।
दोस्तों इस दिन को मनाना तभी सार्थक है जब हम इस दिन के वास्तविक आधार को पहचानें। आदर-सम्मान, स्नेह-अपनापन ये हमारी कमाई ऐसी पूंजी हैं जो बांटने से बढ़ती हैं, जो हम आज अपने बड़ों को देंगे कल हमें अपने छोटों से बदले में वहीं मिलेगा। इसलिए बुजुर्गों के प्रति हीनता या कटुता नहीं बल्कि आदर और स्नेह का भाव लाएं और यही अपनी अगली पीढ़ी को भी सिखाएं, ताकि कल आप भी ये सम्मान पाएं।