स्मिथा सिंह, नई दिल्ली
सुधार तो संभव नहीं, लेकिन जो रह गया है उसे बचाया जा सकता है
बढ़ते वैश्विक तापमान को हम जितना नजरंदाज करेंगे, अपने भविष्य के आधार को उतनी ही तपिश और प्राकृतिक आपदाओं की तरफ धकेलेंगे। अगर अपने अपने स्तर पर हर देश और आवाम के हर व्यक्ति ने अपनी जिम्मेदारी इस विषय के प्रति न समझी तो भविष्य में चमोली जैसी तबाही जीवन का हिस्सा होंगी। आंकड़ों के फेर में न उलझाते हुए एक बार फिर इस विषय को सादगी से आप तक पहुंचाने की कोशिश है, क्योंकि गंभीरता से इस पर विचार करना आज वक्त की मांग है।
IPCC यानि इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज ने चेतावनी दी है कि अगर ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम नहीं किया गया तो प्राकृतिक चमोली जैसी आपदाओं में बढ़ोत्तरी होगी। IPCC की बात को आधार बना कर विषय पर प्रकाश दालने से पहले आपको बता दूं की IPCC की स्थापना 1988 में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम और विश्व मौसम विज्ञान संगठन द्वारा की गई थी। इसका मिशन वैश्विक नीति निर्धारकों को राष्ट्रीय और वैश्विक नीतियों का मार्गदर्शन करने के लिए जलवायु परिवर्तन का वैज्ञानिक आकलन देना है।
जलवायु परिवर्तन पर IPCC की रिपोर्ट महत्वपूर्ण इसलिए हो जाती है क्योंकि हम सभी देख रहे हैं कि जलवायु परिव्रत में हाल के कुछ सालों में तेजी से बदलाव आए हैं। रिकॉर्ड तोड़ सर्दी-गर्मी के अलावा बाढ़ और जंगलों में पसरती आग की घटनाएं भी बढ़ी हैं। और इन तमाम चुनौतीपूर्ण घटनाओं को पैदा करने का श्रेय जाता है पृथ्वी के सबसे बुद्धिमान प्राणी, मानव को। जो न अपनी गलती स्वीकारने में रुचि दिखा रहा है, न सुधार में…खैर,आईये विषय को समझते हैं।
वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी, या कहिए ग्लोबल वॉर्मिंग ऐसा मुद्दा नहीं है जिस पर अकेला कोई एक देश काम करे तो स्थिति नियंत्रित हो जाए या सुधर जाए, वैसे सुधार की गुंजाइश तो कम ही नजर आती हैं, हा वक्त रहते यदि हम बढ़ते तापमान को काबू करने के लिए ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के प्रति सजग हो जाएं तो भी गनीमत होगी।
इंसानी गतिविधियों की वजह से जलवायु में आ रहे बदलाव हमें बाढ़, सूखा और गर्म हवाओं का भविष्य मिलेगा, गवर्नमेंटल पैनल फॉर क्लाइमेट चेंज द्वारा क्लामेट चेंज पर जारी की गई रिपोर्ट- द फिजिकल साइंस बेसिस की कुछ बड़ी बातों पर नजर डालें तो भविष्य चुनौतियों के भरा नजर आता है। आप इस रिप्रोट को तसल्लीबक्श बैठ करे जरूर पढ़ें।
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि हमारी अपनी गितिविधियों के चलते जलवायु आज इतनी गर्म है जो बीते 2 हजार सालों में नही रही, और 1990 के बाद से समुद्र का औसत स्तर तेजी से बढ़ रहा है। साल 2030 तक पृथ्वी का तापमान 1.5 डिग्रीस सेल्सियस तक बढ़ने की आशकां है। जलवायु परिवर्तन की वजह से ही वॉटर साइकिल तेज हो रही है, नतीजा, कहीं ज्यादा बरसात तो कहीं बिल्कुल सूखा। रिपोर्ट के मुताबिक, 21वीं सदी के दौरान तटीय इलाकों में समुद्र के स्तर में लगातार इजाफा होगा, और समुद्र के बढते स्तर के चलते होने वाली जलवायु घटनाएं जो पहले सदी में सिर्फ एक बार होती थीं अब साल में एक बार देखी जा सकती हैं।
स्टडी की ये एक ही लाइन सिहरन और शिकन पैदा करने के लिए पर्याप्त है कि हमारी गतिविधियों ने सदी में होने वाली घटना को सिर्फ साल तक पहुंचा दिया है, हमारे कदम कितनी तेजी से विनाशकारी विकास की ओर बढ़ रहे हैं,इसे और विस्तार से समझने समझाने की शायद जरूरत भी नहीं है।
UN प्रमुख एंटोनियो गुटेरेस ने क्लाइमेट चेंज की इस रिपोर्ट को मानवता के लिए खतरे की घंटी बताया है, उन्होंने कहा, अगर हम अभी से एक हो जाएं, तो हम जलवायु संकट को टाल सकते हैं, लेकिन, जैसा कि इस रिपोर्ट से साफ होता है कि देरी के लिए समय नहीं है और बहाने के लिए कोई जगह नहीं है।
दूसरे देशों को छोड़ आज हम अकेले अपने देश की बात करें तो स्थिति इतनी खराब है कि महज आधा घंटे की बारिश तमाम इलाकों को जलमग्न कर देती है, बढ़ती गर्मी में सांसे तपिश लेने लगती हैं, सर्दी घटती जा रही है, और गर्मियां अपना चरम दिखा रही हैं, बरसात आती है तो बाढ़, भूस्खन की घटनाएं कोहराम मचाती हैं सो अलग। इस रिपोर्ट के मुताबिक भी, आने वाले सालों में भारत और उप महाद्वीपों में बरसात, सूखा, हीटवेव और चक्रवात की घटनाओं में बढ़ोत्तरी देखी जाएगी, साथ ही इस सदी में वार्षिक और ग्रीष्म दोनों मानसून वर्षा में बढ़ोत्तरी देखी जाएगी। रिपोर्ट के मुताबिक 20वीं सदी के सेकेंड हाफ में दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशियाई मॉनसून, मुख्य रूप से मानवीय गतिविधियों के चलते एरोसोल और पार्टिकुलेट मैटर में हुई बढ़ोत्तरी की वजह से कमजोर हुआ है। इतना ही नहीं हिमालय समेत दुनियाभर में ग्लेशियर पिघलने से ये घट रहे हैं, जिसे बदलना अब नामुमकिन है।
अब हम यदि ये कहें कि वैश्विक तापमान की बढ़ोत्तरी से भला क्या लेना देना, तो वास्तविकता ये है कि जलवायु परिवर्तन के लिए करीब करीब पूरी तरह इंसानी गतिविधियां की जिम्मेदार हैं, लेकिन जब आपदाएं आती हैं तो हम इश्वर को कोसने हैं। जैसे वेट लैंड पर बड़ी बड़ी इमारतें और रिहाइशें बनाने का काम खुद ईश्वर ने धरती पर किया हो। थोड़ी कीचड़ बरदाश्त न करने की हमारी ही आदतों ने कच्ची जमीन का नामो निशान मिटा दिया है, ड्रेनेज व्यवस्था कितनी दुरुस्त है, हम और आप भलिभांति जानते हैं, और जिनती है भी उसे आधे से ज्यादा हम ही प्लास्टिक
पॉल्य़ुशन से पाट रहे हैं। नतीजा, 10 मिनट की बारिश सड़को को तालाब बना देती है।
रेत का खनन समुद्रों के जलस्तर को बढ़ा रहा है, जिसकी वजह से तटीय इलाकों में रहने वालों का जीवन खतरे में है। बेलगाम बढ़ते शहरीकरण ने हालात ऐसे कर दिए हैं कि न हम आसमान पर पहुचे हैं ना जमीन रहने लायक छोड़ रहे हैं, सोचिए ऐसा विकास अधर का विकास नहीं तो क्या है। वो इंसानी विकास जो विनाशकारी भविष्य की इबारत लिख रहा है, यदि उसे वक्त रहते विराम दे दिया जाए, तो शायद स्थिति को बेहतर नहीं सही कम-स-कम स्थिर/नियंत्रित तो किया ही जा सकता है, और इसमें हम सभी यानि विश्व के हर देश-हम मानव की भागीदारी महत्वपूर्ण है।
और हां,,,, “कर लेंगे हम भी, जब ये करेगा” इस सोच से ऊपर उठने की जरूरत है, खुद से शुरुआत कर, दूसरों को प्रेरित करें, विषय की गंभीरता को समझें और समझाएं, पर्यावरण को विनाश की और बढ़ने से बचाएं। मानव होने का फर्ज निभाएं।