आज है अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी की पुण्य तिथि, 30 जनवरी, सन 1948 ई को सत्य और अहिंसा के पुजारी राष्ट्रपिता गांधी की हत्या कर दी गई थी। वैसे तो इस दिन को देश शहीद दिवस के रूप में मनाता है और बापू को मौन के माध्यम से श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है, लेकिन आज देश का किसान इसे सद्भावना दिवस के रूप में मना रहा है। किसान और महात्मा गांधी का रिश्ता बहुत पुराना है, क्योंकि किसान के लिए ही तो मोहनदास करम चंद गांधी, बापू बने थे। ये बहुत ही रोचक, विशेष और जानने योग्य बात है कि महात्मा गांधी को बापू क्यूं कहा जाने लगा, तो इस सावल का जवाब जुड़ा है किसान से। वो किसान ही तो है जिसने महात्मा गांधी को बापू कहकर संबोधित किया और आज जमाना उन्हें नाम से नहीं बापू कह कर बुलाता है।
देश के किसान से है बापू का पुराना रिश्ता, बापू की पुण्य तिथि पर किसान मना रहा है सद्भावना दिवस
बापू और किसान के बीच की कड़ी को जानने के लिए चलिए इतिहास के पन्ने पलटते हैं, और लिए चलते हैं 100 साल पीछे। चंपारण सत्याग्रह तो आपको याद ही होगा, और ये भी पता होगा कि ये सत्याग्रह राष्ट्र पिता महात्मा गांधी के नेतृत्व में किस उद्देश्य की पूर्ति के लिए चलाया गया, यदि नहीं जानते तो ये आर्टिकल पूरा पढ़ें।
साल था 1907, जब देश पर अंग्रेसी हुकूमत थी, और किसान की स्थिति बेहद दयनीय। चंपारण सत्याग्रह से एक दशक पहले इस वाकये की शुरुआत कुछ यूं हुई कि बिहार के उत्तर-पश्चिमी इलाके में स्थित चंपारण में अंग्रेजी हुकूमत ने किसानों के लिए एक प्रणाली की शुरुआत की, तीन कठिया प्रणाली। जिसके तहत चंपारण के हर किसान को अपनी प्रति बीघा जमीन पर तीन कट्ठा खेत में नील की खेती करनी थी, पूरे देश में बंगाल के अलावा सिर्फ चंपारण ही ऐसी जगह थी जहां नील की खेती होती थी, लेकिन किसानों को इस खेती में मुनाफा होता नहीं था और मेहनत ज्यादा लगती थी, इसलिए किसान इसे लगाने से बचते थे, लेकिन तीन कठिया प्रणाली के तहत किसान को नील की खेती के लिए बाधित कर दिया गया। बेबस, लाचार किसान करता भी क्या, प्रणाली के तहत नील की खेती उसकी मजबूरी थी लेकिन जुल्म की इंतेहा आक्रोश का सैलाब ले ही आती है, हुआ भी वही। साल 1907 में इस शोषण से तंग आ चुके किसानों ने हरदिया कोठी के प्रबंघक ब्रूमफील्ड को घेरा और पी-पीटकर उसे मार डाला। इस वाकये के बाद अंग्रेजी हुकूमत किसानों के प्रति और सख्ती से पेश आने लगी, लेकिन आक्रोश की चिंगारी जो एक बार धधक चुकी थी वो फिर शांत नहीं हुई, हां इसे मशाल बनने के लिए एक सबल नेतृत्तव की दरकार होने लगी।
शुरुआत में किसानों के नेतृत्व में उतरे शेख गुलाम, इन्हें ब्रूमफील्क की हत्या के बाद गिरफ्तार कर लिया गया औऱ नेतृत्व आया राकुमार शुक्ल के हाथों में। राजकुमार शुक्ल चंपारण के एक समृद्ध किसान थे लेकिन किसान के शोषण को भलीभांति जानते थे, इसलिए उन्होंने इस तीन कठिया प्रणाली का पुरजोर विरोध किया, लेकिन गुलामी की जंजीरें इतनी मजबूत थीं कि आवाज बुलंद न हो सकी, लेकिन सिसकियां उम्मीद की आस में चलती रहीं और शुक्ल ने इस शोषण के खात्मे के लिए बाल गंगाधर तिलक की मदद का मन बनाया, जिसके लिए उन्होंने लखनऊ कांग्रेस में भाग लिया। वहां पहुंचकर समस्या बताने पर उन्हें सुझाया गया गहात्मा गांधी का नाम। बस फिर क्या था शुक्ल ने गांधी जी से इस शोषण से छुटकारा पाने के लिए संपर्क साधा।
वो दिन था 15 अप्रैल 1917 का, जब महात्मा गांधी ने बिहार के मोतीहारी में कदम रखा और यहीं नील किसानों के शोषण के खात्मे के सफर की शुरआत हुई। अब नेतृत्व भी मजबूत था और भरोसा भी क्योंकि साथ था सत्य और अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी का। महात्मा गांधी जिस दृढ़ निश्चय से जन मानस से रूबरू होते थे, लोगों के मनों में प्रास के साथ-साथ आदर और सम्मान भाव भी स्वत ही उजागर हो उठता था। बस कुछ ऐसा ही हुआ गांधी जी के इस सफर के दौरान। जब अंग्रेजी हुकूमत के अत्याचारों से बोझिल किसानों ने गांधी जी में शोषण से मुक्ति दिलाने वाले मसीका को देखा तो उन्हें बाबू कहकर संबोधित किया, और इसके बाद से महात्मा गांध बाबू के नाम से संबोधित किए जाने लगे।
किसानों के समर्थन में शोषण के खिलाफ आवाज बुलंद करते हुए बापू ने चंपारण में सत्याग्रह की शुरुआत की, जो चंपारण सत्याग्रह के नाम से इतिहास के पन्नों में दर्ज है। बापू के नेतृत्व में गुलाम हिन्दुस्तान में ये पहला सत्याग्रह था जिसमें सत्ता हारी और किसान ने फतह पाई। बापू ने किसानों के बीच घूम-घूमकर स्थिति का जायजा लिया और अंग्रेजी हुकूमत के सियासतदानों द्वारा किसानों पर हुए जुल्मों की लिखित फेहरीस्त तैयार की और 4 जून 1917 को जुल्मों की इस लिखित दासतां को लेफ्टिनेंट गवर्नर सर एडवर्ड गैट को सौपा गया। किसानों के इन्ही लिखित बयानों के आधार पर 10 जून 1917 को चंपारण कृषि जांच समिति का गठन किया गया, इस समिति के एक सदस्य हमारे बापू भी थे। लंबे विचार विमर्श के बाद चंपारण जांच समिति ने अक्टूबर महीने में अपनी रिपोर्ट जमा की। जांच समिति द्वारा तैयार कर सौंपी गई इसी रिपोर्ट के आधार पर 4 मार्च 1918 को गवर्नर जनरल ने चंपारण एग्रेरियन बिल पर साइन कर शोषण भरी प्रणाली से देश के किसान को आजाद किया और इस तरह दशकों से चली आ रही नील की जबरन खेती व्यवस्था का अंत हुआ।
एक सीधा-सादे, शांति प्रिय लेकिन स्वभाव से दृढ निश्चयी महात्मा गांधी ने सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए गुसलाम हिस्दुस्तान के किसान को अंग्रेजों के शोषण से मुक्त कराया, पूरे सत्याग्रह में सत्य-अहिंसा का दामन थामे ही बापू ने अंगेजी सियासत को किसानों की मांग के सामने झुकने पर मजबूर कर दिया। आखिरकार सत्य जीता और अहिंसा ने जुल्मों पर फतह पाई और बापू सदा के लिए शोषण से आजाद हुए चंपाणर किसानों महीसा हो गए। सफल हुए संपारण सत्याग्रह के बाद बापू सिर्फ चंपारण ही नहीं देशबर में बापू कहे जाने लगे और जन-जन, जहान उन्हें बापू बुलाया है। शहीद दिवस व बापू की पुण्य तिथि पर नेशनल खबर सत्य-अहिंसा के पुजारी को शत-शत नमन करता है।