मिल्खा सिंह, एक ऐसा नाम जो किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं, उनका नाम लेते ही जहन में जो छवि उभरती है वो इस शख्सियत को अपने आप में एक सलाम है। फख्र से लिया जाने वाला ये नाम आज अपने साथ दिवंगत लगा रहा है, क्योंकि फ्लाइंग सिख मिल्खा अब हमारे बीच नहीं रहे।
कोरोना काल के इस लंबे दुखद वक्त में हमने बहुत सी कोहिनूर हस्तियों को खोया है, इन्हीं महान हस्तियों में एक थे फ्लाइंग सिंह मिल्खा सिंह। जिनका कल, शुक्रवार रात 11.30 बजे कोरोना महामारी के चलते निधन हो गया। 20 नवंबर 1929 को पाकिस्तान के गोविंदपुरा के एक सिख परिवार में जन्मे मिल्खा सिंह को बचपन
से ही खेल और देश से बहुत लगाव था। उन्होंने देश के बंटवारे का दंश भी झेला मुश्किलों का दौर भी देखा। देश के बंटवाके के बाद मिल्खा भारत भाग आए और यहां उन्होंने इंडियन आर्मी ज्वाइन की भारतीय सेना में शामिल हो गए।
आर्मी ज्वाइन करने को लेकर उन्होंने कहा था कि मुझे आर्मी से 3 बार रिजेक्ट किया गया। मेरी हाइट ठीक थी, दौड़ा भी। मेडिकल टेस्ट भी पास किया, मगर मुझे रिजेक्ट कर दिया गया। उस दौर में भी पैसे और सिफारिश चलती थी। ये सब मेरे पास नहीं था। लिहाजा मैं 3 बार रिजेक्ट हुआ। मगर ये भी सच है कि मैं इसके बाद जो कुछ बना वो आर्मी के कारण ही बना। वहां स्पोर्ट्स की ट्रेनिंग मिली, कोच मिले। तब कहीं जाकर मैं ये सब कर पाया। मिल्खा इंडियन आर्मी में शामिल तो हो गए थे, लेकिन देश प्रेम के साथ साथ उनका खेल प्रेम भी उन्हें बेचैन किए रहता था और दौड़ के धुरंधर होने की वजह से उन्होंने क्रॉस कंट्री दौड़ में हिस्सा लिया। जिसमें 400 से ज्यादा सैनिकों ने दौड़ लगाई। इस क्रॉस कंट्री दौड़ में मिल्खा ने छठा स्थान हासिल किया और इस तरह भारतीय सेना का एक जांबाज खेलों की दुनिया की एक नई उड़ान भरने को तैयार हुआ।
साल 1956 में मेलबर्न में हुए ओलिंपिक खेल में मिल्खा सिंह ने भाग लिया। वे यहां कुछ खास तो नहीं कर पाए, लेकिन उनके लिए आगे के कॉम्पटीशन्स की राहें तैयार हो गई। फिर साल 1958 में उन्होंने कटक में हुए नेशनल गेम्स में 200 और 400 मीटर में कई रिकॉर्ड बनाए औऱ इसी साल टोक्यो में हुए एशियाई खेलों में भी 200 मीटर, 400 मीटर के कॉम्पटीशन और राष्ट्रमंडल में 400 मीटर की रेस में उन्होंने गोल्ड मेडल जीते। फिर साल 1964 में उन्होंने एशियाई खेल में 400 मीटर और 4×400 रिले में गोल्ड मेडल जीते। मिल्खा सिंह की काबलियत और उनकी सफलता को देखते हुए, भारत सरकार ने उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मानों में एक पद्मश्री से सम्मानित किया।
मिल्खा लिंह को फ्लाइंग सिख नाम मिला, पाकिस्तान की एक दौड़ में जीत का परचम लहराने पर। पाकिस्तान में आयोजित हुई दौड़ में जब मिल्खा सिंह ने दमदार प्रदर्शन किया तो उनके प्रदर्शन को देखकर पाकिस्तान के जनरल अयूब खान ने उन्हें ‘द फ्लाइंग सिख’ नाम दिया था। फ्लाइंग सिख के नाम से मशहूर मिल्खा ने अपने शुरुआती दौर को याद करते हुए एक बार कहा था, नहीं जानता था कि ओलिंपिक गेम्स होते क्या हैं, एशियन गेम्स और वन हंड्रेड मीटर और फोर हंड्रेड मीटर रेस क्या होती है? मिल्खा सिंह तब दौड़ता था जब पैरों में जूते नहीं होते थे। न ही ट्रैक सूट होता था। न कोचेस थे और न ही स्टेडियम। 125 करोड़ है देश की आबादी। मुझे दुख इस बात का है कि अब तक कोई दूसरा मिल्खा सिंह पैदा नहीं हो सका।
वैसे तो आज बच्चा बच्चा मिल्खा सिंह की काबलियत और संघर्ष की कहानी मुंह जुबानी कह सकता है, साथ ही इस शख्सियत से मिली प्ररेण भी बहुतों में उत्साह भरती है, क्योंकि मिल्खा सिंह के जीवन पर बनी फिल्म भाग मिल्खा भाग ने देश ही नहीं दुनिया हे हर छोटे बड़े के जहन में उनकी जो स्वर्णिम छवि बनाई है, राकेश ओमप्रकाश मेहरा के निर्देशन में साल 2013 में बनी इस फिल्म में मिल्खा के रोल में थे फरहान अख्तर। ये फिल्म 2014 में 61वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में ये फ़िल्म सर्वश्रेष्ठ मनोरंजक फिल्म के पुरस्कार नवाजी गई। मिल्खा यूं भी किसी परिचय के मोहताज नहीं थे लेकिन फिल्म के जरिए वे मासूमों के भी सुपर फ्लाइंग सिख बने। उनकी जो छवि हमारे मनों में है वो अमिट है, जीवंत है। मिल्खा हमारे बीच ना रह कर भी सदा हमारी यादों में अमर रहेंगे।