19 साल पहले आज ही के दिन यानी 27 फरवरी 2002 को कुछ ऐसा घटा था जिसे भारत के इतिहास में एक काला दिन कहा जाता है। उस दिन गुजरात के गोधरा स्टेशन से रवाना हो रही साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन की S-6 बोगी में हिंसा को उतारू भीड़ ने आग लगा दी थी। आग लगने से मारे गये 59 लोगों में सभी कारसेवक थे, जो अयोध्या से लौट रहे थे। ट्रेन की इस बोगी की आग की लपटें पूरे गुजरात में फैल गई जिसके बाद राज्य में दंगे भड़क उठे थे।
पूरे गुजरात में सांप्रदायिक तनाव
गोधरा कांड में कार सेवकों की मौत से भड़के गुस्से के कारण गुजरात में सांप्रदायिक तनाव फैल गया। हालात बिगड़ गये। बेकाबू होते हालात को देखते हुए कर्फ्यू लगा दिया गया। गोधरा में सभी स्कूल-दुकानें बंद करने के आदेश दे दिये गये। हिसंक भीड़ और एक-दूसरे की जान के दुश्मन बने दंगाइयों 1,044 लोगों को मौत के घाट उतार डाला था। मारे गये लोगों में 790 मुसलमान और 254 हिंदू थे।
पुलिस को आदेश दे दिये गये थे कि दंगाइयों को देखते ही गोली मार दिया जाए। तब गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी थे।
गोधरा कांड के अगले ही दिन, यानी 28 फरवरी को अहमदाबाद की गुलबर्ग हाउसिंग सोसायटी में भी ऐसी घटना को अंजाम दिया गया जिसकी दहशत से यहां के लोग शायद ही कभी उबर पायें। हिंसक भीड़ ने 69 लोगों की हत्या कर दी थी। भीड़ ने कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफरी को भी मौत के घाट उतार दिया था। वो गुलबर्ग हाउसिंग सोसायटी में ही रहते थे। जब दंगों पर काबू पाना मुश्किल हो गया तो तीसरे दिन सेना उतारनी पड़ी थी।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक गुजरात दंगों में 1200 लोगों ने जान गंवाई थी।
दंगो के दाग मोदी पर
2002 में दंगों के दौरान गुजरात पुलिस पर इस मामले में ढिलाई के आरोप लगे थे। तीन दिन तक चली हिंसा में 790 मुस्लिम और 254 हिंदू मारे गए। 223 लोग लापता हो गए। राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पर भी आरोप लगे थे कि उन्होंने दंगो को रोकने के लिए तत्परता नहीं दिखाई, ना ही दंगाइयों को रोकने के लिए जरूरी कार्रवाई की।
गोधरा की घटना में 1500 लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई थी।। दंगे (गोधरा) की जांच के लिए लिए 6 मार्च 2002 को नानावटी-शाह आयोग का गठन किया। हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज केजी शाह और सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज जीटी नानावटी इसके सदस्य बनाये गये। आयोग द्वारा पेश की गई पहली रिपोर्ट में सितंबर 2008 को गोधरा कांड को सोची-समझी साजिश बताया गया था। नरेंद्र मोदी, राज्य के कई मंत्रियों और सीनियर अफसरों को क्लीन चिट दी गई थी। 2009 में जस्टिस केजी शाह के निधन के बाद गुजरात हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस अक्षय मेहता को आयोग का सदस्य बनाया गया। इसके बाद यह आयोग नानावटी-मेहता आयोग हो गया। दिसंबर 2019 में आयोग के रिपोर्ट का दूसरा हिस्सा पेश किया गया। तब भी वही बात रखी गई, जो रिपोर्ट के पहले हिस्से में सामने आई थी। आयोग ने 1,500 से अधिक पन्नों की अपनी रिपोर्ट में कहा , ‘ऐसा कोई सबूत नहीं मिला कि राज्य के किसी मंत्री ने इन हमलों के लिए उकसाया या भड़काया। कुछ जगहों पर भीड़ को नियंत्रित करने में पुलिस अप्रभावी रही क्योंकि उनके पास पर्याप्त संख्या में पुलिसकर्मी नहीं थे या वे हथियारों से अच्छी तरह लैस नहीं थे।’
गोधरा कांड के लिए 31 मुसलमानों को दोषी ठहराया गया था। 2011 में SIT कोर्ट ने 11 दोषियों को फांसी और 20 को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। लेकिन अक्टूबर 2017 में गुजरात हाईकोर्ट ने 11 दोषियों की फांसी की सजा को भी उम्रकैद में तब्दील कर दिया था।