कांग्रेस की परेशानियां दिन ब दिन बढ़ती जा रही हैं, पंजाब और राजस्थान में आंतरिक कलह से जूझ रही कांग्रेस की अब केरल में मुश्किलें बढ़ रही हैं। केरल में पार्टी दो धड़ों में बंटी नजर आ रही है। दल का एक हिस्सा जो यह महसूस कर रहा है कि उनकी उपेक्षा हो रही है वहीं सीनियर और नये नेताओं के बीच मामला गरम है। उपेक्षित वर्ग यह महसूस कर रहा है कि पार्टी हाईकमान ने भी मामले की सुनवाई नहीं की।
दरअसल, 2 मई को विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद पार्टी की किरकिरी के कारण प्रदेश अध्यक्ष ए. रामचंद्रन को पदमुक्त कर दिया गया था। साथ ही विपक्ष के नेता रमेश चेन्निथला को भी जिम्मेदारी से हटा दिया गया। रमेश चेन्नीथला के समर्थकों का कहना है कि भले ही उन्हें पद से हटा दिया गया लेकिन विदाई सम्मानजनक नहीं रही क्योंकि सोनिया गांधी से मुलाकात के लिए आग्रह के बावजूद अपॉइंटमेंट नहीं मिला। चेन्नीथला की जगह पर अब वीडी सतीशन को नेता विपक्ष बनाया गया है और के. सुधाकरण को नेता विपक्ष की जिम्मेदारी दी गई है।
केरल कांग्रेस में विरोध की लहर के पीछे एक बहुत बड़ा कारण यह भी है कि नए प्रदेश अध्यक्ष और नेता विपक्ष के चयन के लिए पार्टी के सदस्यों से विचार-विमर्श तक उचित नहीं समझा गया। यहां तक की पूर्व मुख्यमंत्री ओमान चांडी की भी सलाह लेना भी गंवारा नहीं समझा गया। एक कांग्रेस नेता ने दावा किया कि ज्यादातर विधायक चाहते थे कि चेन्नीथला बने रहें। वहीं कुछ नेताओं ने उनकी बात को खारिज किया है। अधिकांश युवा विधायकों (विधान सभा के सदस्य) और पार्टी के सांसदों (संसद सदस्य) ने बदलाव की मांग की। राज्य के कांग्रेस प्रभारी तारिक अनवर ने विधायकों, सांसदों और संगठन के नेताओं के साथ व्यापक चर्चा के बाद निर्णय किया।
केरल में पार्टी के अंदर की कलह उतनी बड़ी नहीं जितनी की चुनाव वाले राज्य पंजाब या राजस्थान में है। लेकिन केरल कांग्रेस के भीतर गुटबाजी को लेकर पार्टी आलाकमान के माथे पर चिंता की लकीरें हैं। समय रहते अगर गुटबाजी का समाधान नहीं हुआ तो फिर इस मुश्किल को खत्म करना मुश्किल होगा। इस साल की शुरुआत में, केरल में कांग्रेस के एक नेता पीसी चाको ने गुटबाजी का आरोप लगाते हुए पार्टी छोड़ दी थी।
केरल कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि 65 वर्षीय चेन्नीथला राजनीतिक रूप से अभी भी बेहद सक्रीय हैं और उनके पास अभी भी पार्टी को देने के लिए बहुत कुछ है। लेकिन सवाल यह है कि उन्हें कौन सी जिम्मेदारी सौंपी जाए इसे तय नहीं किया गया है। फिलहाल राज्य में यूडीएफ गठबंधन के संयोजक का पद रिक्त है, लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री के करुणाकरण के बेटे के मुरलीधरन को इस पद की दौड़ में सबसे आगे देखा जा रहा है। केरल की राजनीति में कांग्रेस के भीतर पैदा हुआ यह बवाल इसलिए भी कांग्रेस के लिए संकट का सबब बन सकता है क्योंकि खुद राहुल गांधी इसी प्रदेश की वायनाड सीट से लोकसभा के सांसद हैं। ऐसे में उनकी भूमिका को लेकर भी सवाल उठते हैं।