श्वेता रंजन, नई दिल्ली
देश में कोरोना वायरस के मामलों में कमी बताई जा रही है, लेकिन दूसरे वेव मौतों का आंकड़ा कम नहीं हुआ है। ऑक्सीजन की किल्लत और वैक्सीन की कमी से त्राहिमाम का माहौल है। ऐसे में विदेशी पर्यटकों के पसंदीदा स्थल गोवा में अचानक से कोरोना संक्रमितों की संख्या में इजाफा कोरोना विस्फोट का संकेत देता है। पर यह कैसे हुआ कि देश का सबसे छोटा राज्य गोवा कोरोना के चंगुल में फंस गया। ये लापरवाही हुई कैसे, क्या यह राज्य सरकार की अनदेखी का नतीजा है या फिर तमाम आयोजनों का जो राज्य में लगातार चलती रही।
वैसे तो देश के तमाम राज्य कोरोना की गिरफ्त में हैं लेकिन गोवा में इन दिनों करोना का प्रकोप भयावह है। राज्य में संक्रमितों की Positivity Rate 35 प्रतिशत है, मृत्यु दर भी दूसरे राज्यों के मुकाबले कहीं अधिक है। महज़ 15 लाख की आबादी वाले इस राज्य में अबतक 2100 लोगों के मौत की पुष्टि हुई है। शनिवार को गोवा में 58 लोगों की मृत्यु हो गयी और रविवार तक यह आंकड़ा 83 तक पहुंच गया। सबसे ज्यादा मौत गोवा मेडिकल कॉलेज (GMC) अस्पताल में हुईं, वो भी ऑक्सीजन की किल्लत से। GMC में कोविड मरीजों के लिए 900 बेड हैं।
कोरोना के पहली लहर की बात करें तो, तब राज्य में संक्रमण दर बहुत ही कम था। राज्य पर्यटकों के लिए खोल दिया गया था, शूटिंग जारी थी। यानी की राज्य सरकार ने सरासर अनदेखी की। कोरोना की दूसरी लहर के लिए कोई तैयारी नहीं की गई। हालांकि तब भी टूरिस्ट की संख्या में गिरावट तो आई थी, जिस कारण गोवा की अर्थव्यवस्था चरमरा गयी। गिरती आर्थिक स्थिती को देखते हुए गोवा एक बार फिर पर्यटकों के लिए खोल दिया गया।
जाहिर सी बात है, बेधड़क पर्यटकों का गोवा आना शुरू हो गया। विदेशी नहीं, लेकिन अपने ही देश के लोग कोरोना की पहली लहर में लगे लॉकडाउन के बाद दिल बहलाने के लिए गोवा का सहारा लेने लगे। बिना रोकटोक गोवा की गाड़ी पटरी पर दोबारा दौड़ने तो लगी लेकिन सरकार ने गोवा में प्रवेश के लिए कोरोना टेस्ट रिपोर्ट तक को अनिवार्य नहीं किया। पड़ोसी राज्य कर्नाटक और महाराष्ट्र में कोरोना तेजी से पांव फैला रहा था लेकिन गोवा सुप्तावस्था में दिखी। गोवा आने-जाने वालों के लिए कोई पाबंदी नहीं थी। और अब आलम यह है कि गोवा बारूद की ढ़ेर पर बैठा है।
गोवा के मौजूदा सरकार को ही देख लीजिए, आंख मूंदे बैठी रही। दूसरी लहर के लिए ना कोई योजना, ना कोई तैयारी। मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत 2022 में आने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जो जुटे थे। वक्त कहां था कि यह देख लें कि राज्य में कोरोना का बम फूटने वाला है। और अब जो तस्वीरें सामने आ रही हैं वो गोवा की चरमराई स्वास्थ्य व्यवस्था को उजागर कर रही है।
GMC में ऑक्सीजन की कमी से, रातोंरात दर्जनों की संख्या में लोगों का दम तोड़ना, जमीन पर पड़े, तड़पते, बेहाल मरीज की तस्वीरें सामने आने लगीं। इस बात पर सरकार की फजीहत तो तब हुई जब बॉम्बे हाई कोर्ट की गोवा बेंच को सरकार ने एक अजीब सी दलील दी। सरकार ने कहा कि समय पर ऑक्सीजन सिलिंडर पहुंचने में देरी इसलिय हो रही है क्योंकि अस्पताल के पास सड़क चौड़ी नहीं है और ऑक्सीजन सिलिंडर लाने वाले ट्रक ड्राइवरों को ट्रक को रिवर्स कर के अन्दर लाने में काफी समय लग जाता है।
बात इतनी सहज भी नहीं है जितनी दिख रही है। यह सियासत का गेम है। मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत और स्वास्थ्य मंत्री विश्वजीत राणे की अनबन की बातें भी सामने आ रही हैं। स्वास्थ्य मंत्री पर आरोप है कि उनकी ऑक्सीजन की कम्पनी से सांठगांठ है, जिस कारण वो किसी और कम्पनी को आक्सीजन सप्लाई करने का ठेका नहीं देना चाहते। दबी जुबान में यह भी कहा जा रहा है कि प्रमोद सावंत का मुख्यमंत्री बनना विश्वजीत राणे को नहीं भाया। कोरोना महामारी के दौरान भी दोनों के मनमुटाव की बातें सामनें आईं।
जीवन के अधिकार की रक्षा करना राज्य का कर्तव्य: बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट ने बुधवार को कहा कि जीवन के अधिकार की रक्षा करना राज्य का कर्तव्य है। हाई कोर्ट ने कहा, “संविधान का अनुच्छेद 21 सभी को जीवन का अधिकार देता है और सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि राज्य को ऐसी परिस्थितियां बनानी होंगी ताकि जीवन के इस अधिकार की रक्षा हो सके। इसकी रक्षा करना राज्य का कर्तव्य है और अगर ऑक्सीजन की कमी से लोगों की मौत होती है तो इसका पूरी तरह से उल्लंघन होगा।
उच्च न्यायालय ने कहा कि गोवा मेडिकल कॉलेज (जीएमसी) में जहां कोविड -19 रोगियों के इलाज के लिए लगभग 700 बिस्तर हैं, वहीं 1,000 रोगियों को इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया था। “तो स्पष्ट रूप से 300 बिस्तरों के लिए बिस्तरों की कमी है,” अदालत ने कहा।
बॉम्बे हाईकोर्ट में जनहित याचिका
गोवा में कोरोना के बढ़ते मामलों के मद्देनजर, एक स्थानीय निवासी ने बॉम्बे हाईकोर्ट की गोवा पीठ में एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की है। पीआईएल में कोरोनोवायरस संक्रमण की तीसरी लहर के लिए राज्य सरकार की तैयारियों का विवरण मांगा गया है।
याचिकाकर्ता, नंदगोपाल कुडचाडकर ने तर्क दिया कि जनवरी में प्रति दिन केवल 50 मामलों से, मई में राज्य के रोजाना आने वाले मामलों की संख्या बढ़कर 4,000 मामले प्रति दिन हो गई है। “संक्रमण के मामलों में इतने बड़े उछाल ने राज्य की तैयारियों की कमी को उजागर किया है।”
उन्होंने कहा, “पिछले कुछ हफ्तों में, गोवा मेडिकल कॉलेज के साथ-साथ जिला अस्पतालों में ऑक्सीजन, ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर्स और वेंटिलेटर की भारी कमी हो गई है”। याचिका में कहा गया है कि कोविड -19 की तीसरी लहर अपरिहार्य है, और यह ज्यादातर बच्चों को प्रभावित करेगी। तीसरी लहर से बचने के लिए, गोवा सरकार को दूसरी लहर के दौरान उपलब्ध स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे की तुलना में बेहतर स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे को सुनिश्चित करना होगा।