स्मिथा सिंह, नई दिल्ली
एक्टर, डायलॉग राइटर और डायरेक्टर के तौर पर हिन्दी सिनेमा में अपनी एक अमिट छाप कायम करने वाले कादर खान आज भले हमारे बीच नहीं, लेकिन उनका हुनर उन्हें सदा अमर बनाए रखेगा, आज उनके जन्मदिन के मौके पर पढ़िए उनसे जुड़ी कुछ खास बातें।
90 के दशक में दर्शकों के चेहरों को मुस्कान से सजाने का श्रेय जिस फिल्मी सितारे को जाता है, वो हैं कादर खान, किरदार कॉमेडी हो तो कहने ही क्या लेकिन अपने हुनर के दम पर उन्होंने कभी नकारात्मक भूमिकाओं को भी बोझिल नहीं बनने दिया।
काबुल में हुआ था जन्म
22 अक्टूबर 1937 को अफगानिस्तान के काबुल में जन्मे कादर खान अपने माता पिता की चौथी औलाद थे। जिनके पैदा होने के बाद उनके माता-पिता काबुल छोड़ भारत आ बसे थे, क्योंकि उनकी संताने 8-9 साल की उम्र में ही मर जाती थी इसलिए उन्हें लगा कि काबुल उनकी औलाद के लिए ठीक नहीं है, सो वो भारत आ गए। यहां उन्होंने अपना ठिकाना बनाया मुंबई में, लेकिन आर्थिक तौर पर कमजोर होने की वजह से वे मुंबई के सबसे गरीब इलाके कमाठीपुरा में आ बसे।
सिविल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर थे कादर खान
आर्थिक तंगी के दौर में पले कादर खान ने अपनी पढ़ाई के लिए खूब मेहनत की, ताकि वो बड़े होकर अमीर बन सकें। इसी ख्वाब के साथ कादर खान ने बॉम्बे यूनिवर्सिटी के इस्माइल यूसुफ कॉलेज से इंडजीनियरिंग में ग्रेजुएकशन किया। कॉलेज के दिनों में वो नाटक लिखा करते थे, और लेक्चरर बनने के बाद भी उन्होंने नाटक लिखने का अपना सिलसिला जारी रखा। कम ही लोग शायद ये जानते होंगे कि फिल्मों में करियर बनाने से पहले कादर खान एमएच सैबू सिद्दिकी कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग में सिविल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर थे।
खुद लिखते थे अपनी फिल्मों के डायलॉग्स
कादर खान अपने लिखे हुए नाटकों की एक्टिंग भी खुद करते थे, उनकी एक्टिंग को देखकर एक बुजुर्ग ने उन्हें 100 रुपये दिए थे, कादर खान उस सौ के नोट को ट्राफी मानकर सहेज कर रखते थे, लेकिन मुफ्लिसी के चलते उन्हें वो नोट खर्च करना पड़ा। इसी दौरान उनका लिखा एक नाटक डायरेक्टर नरेन्द्र बेदी को इतना पसंद आया कि उन्होंने अफनी फिल्म जवानी दीवानी के लिए कादर खान को काम करने का मौका दिया। कादर खान ने इस फिल्म के डायलॉग्स तो लिखे ही, फिल्म में एक्टिंग भी की, जिसके लिए उन्हेंन 1500 रुपये मिले। ये 1500 रुपये उस दौर में कादर खान के लिए किसी स्वर्णिम स्वप्न जैसे थे, क्योंकि कादर खान ने पहली बार इतने रुपये एक साथ देखे थे।
एक से बढ़कर एक फिल्में की
इसके बाद कादर खान ने अपनी मेहनत और काबिलियत के बल पर हिन्दी सिनेमा में अपनी खास जगह बनाई, ऐसी कि देखने वाले उनके अभिनय के कायल हो गए। बतौर अभिनेता कादर खान ने अपने सफर की शुरुआत साल 1973 में की, और फिल्म दाग में अपनी प्रतिभा का जौहर दिखाया। इसके बाद नसीब, सत्ते पे सत्ता, मव्वाली, हिम्मतवाला, मकसद, तोहफा सरफरोश, बलिदान, मेरा जवाब और पत्थर दिल में काम किया और देखते ही देखते वो हिन्दी सिनेमा की शान हो गए। 90 के दशक में कादर खान तमाम फिल्मों में नजर आने लगे, मानो फिल्मों की जान हो गए। अंगार, बोल राधा बोल, सूर्यवंशी, दौलत की जंग, आशिक आवारा, आँखें, राजा बाबू, कुली नंबर वन, मिस्टर एंड मिसेज खिलाड़ी, दीवाना मस्ताना, नसीब, कुदरत, हीरो हिन्दुस्तानी, बड़े मिया छोटे मिया, धडकन, जोरू का गुलाम, क्रोध जैसी फिल्में की।
अपने फिल्मी करियर में कादर खान ने 400 से ज्यादा फिल्में कीं, और ढाईसौ करीब फिल्म के डायलॉग्स लिखे, अपनी की हुई अधिकतर फिल्मों के डायलॉग्स वो खुद ही लिखते थे। दमदार प्रतिभा की धनी इस शख्सियत को साल 2013 में फिल्म जगत में उनके योगदार के लिए
साहित्य शिरोमणि अवॉर्ड से नवाजा गया था। उन्हें साल 1982 और 1993 में बेस्ट डायलॉग्स, 1991 में बेस्ट कॉमेडियन और 2004 में बेस्ट सपोर्टिंग रोल के फिल्म फेयर पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।
बेहतरीन और अंतर्मन को झकझोर देने वाले सीधे सटीक संवाद लिखने वाले कादर खान बतौर लेखक बहुत जल्द सफल हुए हालांकि उन्हें डबल मीनिंग डायलॉग्स के लिए कई बार आलोचनाओं से भी दोचार होना पड़ा। इस प्रतिभा को जमाने से सिर्फ इतनी शिकायत रही कि बीमार होने के बाद लोगों ने न सिर्फ उनसे दूरी बनाई, उन्हें काम देना भी बंद कर दिया। साल 2019 में 81 साल की उम्र में ये प्रतिभा इस दुनिया को अलविदा कह गई, लेकिन उनके डायलॉग, उनकी कॉमेडी आज भी दर्शकों का मनोरंजन करतें हैं और इन्हीं में सदा के लिए अमर हो गए हैं कादर खान।