श्वेता रंजन, नई दिल्ली
बिहार का चर्चित बाहुबली मोहम्मद शहाबुद्दीन (Mohammad Shahabuddin) का आज कोरोना से निधन हो गया। सीवान से आरजेडी के पूर्व सांसद शहाबुद्दीन की कभी बिहार में तूती बोला करती थी। खौफ का पर्याय बन चुका शहाबुद्दीन कोरोना संक्रमण के चलते दिल्ली के एक अस्पताल में भर्ती थे। देश-विदेश के किसी भी कोने में बैठ कर वो अपनी आपराधिक गतिविधियों को अंजाम दिया करता था।
वैसे तो शहाबुद्दीन दहशत का दूसरा नाम था। 2004 में सिवान के दो भाइयों को तेजाब से नहलाकर हत्या के मामले में उसे सजा हुई थी लेकिन इसने कई संगीन अपराधो को अंजाम दिया है।
10 मई 1967 को सीवान जिले के प्रतापपुर में शहाबुद्दीन का जन्म हुआ था। शुरुआती शिक्षा प्रतापपुर और फिर सीवान शहर में हासिल करने वाले शहाबुद्दीन ने सीवान के डीएवी कॉलेज से स्नातक की डिग्री हासिल की। राजनीति शास्त्र में एमए की पढ़ाई करने के बाद उसने 2000 में मुजफ्फरपुर के बीआर अंबेडकर बिहार विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि प्राप्त की।
कॉलेज से ही हो गई थी अपराध और राजनीति से सांठगांठ
वैसे तो शहाबुद्दीन के पास कई डिग्रियां हैं लेकिन अपराध की दुनिया से उसका जुड़ाव कॉलेज से ही हो गया था। साथ ही राजनीतिक मंशाएं भी पैदा होने लगी थीं।
1980 में वो राजनीति में कदम रख चुके थे। कॉलेज के दिनों में ही उनकी पहचान भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा माले) तथा भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ बना चुके थे। 1986 में उनके खिलाफ पहला मुकदमा दर्ज हुआ। हुसैनगंज थाने में उनके खिलाफ रिपोर्ट लिखाई गई। उधर शहाबुद्दीन का दबदबा बढ़ रहा था और दूसरी ओर उसके खिलाफ दर्ज होने वाले मुकदमे भी। एक ऐसा समय भी आया जब उसका नाम हिस्ट्रीशीटर की लिस्ट में शामिल हो गया।
1990 में मो. शहाबुद्दीन लालू प्रसाद की राष्ट्रीय जनता दल से जुड़ गये। पार्टी के युवा मोर्चा में शामिल हो कर शहाबुद्दीन ने सीवान विधानसभा क्षेत्र से 1990 और 1995 में चुनाव भी जीता। बिहार विधानसभा के सदस्य बने फिर 1996 में जनता दल के टिकट पर सीवान लोकसभा सीट से चुनाव जीतने के बाद उन्हें कंद्रीय गृह मंत्रालय में राज्य मंत्री बनाया गया। तब देश में एचडी देवगौड़ा की सरकार थी। आपराधिक रिकॉर्ड के कारण बहुत दबाव पड़ने पर उन्हें पद से इस्तीफा देने पड़ा। सीवान लौटने के बाद मो. शहाबुद्दीन ने बिहार में दहशत का नया इतिहास लिखा।
लालू के खास बन गये शहाबुद्दीन
लालू के खास बन चुके शहाबुद्दीन को 1997 में राष्ट्रीय जनता दल के गठन के साथ ही पार्टी में खास तवज्जो दी गई। शहाबुद्दीन और उसके गुर्गे कानून को ठेंगे पर रखने लगे। बिहार पुलिस उस दिन (16 मार्च 2001) को कभी नहीं भूलेगी जब राजद नेता मनोज कुमार की गिरफ्तारी के दौरान शहाबुद्दीन ने अपना खूंखार रूप दिखाया। उसने सीवान पुलिस को रोककर झन्नाटेदार थप्पड़ जड़ दिया, जिसकी गूंज आज भी बिहार पुलिसकर्मियों को सुनाई देती है। इस थप्पड़ ने शहाबुद्दीन के लिए बहुत कुछ बदल दिया। पुलिस और दबंगों के बीच फायरिंग हुई, कई जानें गई। मो. शहाबुद्दीन फरार हो गया। वह नेपाल गया। मनोज कुमार भी गायब हो गया। पुलिस ने शहाबुद्दीन के घर से कई विदेशी हथियार और विदेशी पासपोर्ट जब्त किए।
शहाबुद्दीन 2000 के दशक तक सीवान जिले में समानांतर सरकार चलाया करते थे। फिरौती, अपहरण, मर्डर हर काम की फीस तय होती था। भूमि विवादों का निपटारे से लेकर जिले के डॉक्टरों की फीस भी शहाबुद्दीन के इशारे पर तय होती थी। 2004 मो. शहाबुद्दीन को गिरफ्तार कर लिया। उन पर आरोप था कि उन्होंने साल 1999 में माकपा माले के एक सदस्य का अपहरण किया था। बिगड़ते स्वास्थ्य का हवाला देकर शहाबुद्दीन जेल नहीं बल्कि सीवान जिला अस्पताल में रहने लगे। दरअसल वो 2004 में होने वाले चुनाव की तैयारियों को अंजाम दे रहे थे। साल 2004 में लोकसभा चुनाव से ठीक आठ महीने पहले शहाबुद्दीन को गिरफ्तार कर लिया गया था। नवंबर 2005 में बिहार पुलिस की स्पेशल टीम ने दिल्ली में शहाबुद्दीन को दोबारा गिरफ्तार किया। पुलिस को इस गिरफ्तारी से पहले शहाबुद्दीन के सीवान के पैतृक घर से अवैध आधुनिक हथियारों की खेप मिली थी। पुलिस ने हथियारों के साथ ही सेना के नाइट विजन डिवाइस और पाकिस्तानी आर्म्स फैक्ट्रियों में बने हथियार भी बरामद किये थे।
शहाबुद्दीन पर 56 मुकदमे दर्ज हैं। भाकपा माले के कार्यकर्ता छोटेलाल गुप्ता के अपहरण व हत्या के मामले में वह आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे थे।
दो भाइयों को तेज़ाब से नहला दिया था
16 अगस्त 2004 की सुबह भूमि-विवाद के चलते लगी पंचायत में मारपीट हो गई थी। तभी किसी ने सिवान के व्यवसायी चन्द्रकेश्वर प्रसाद उर्फ चंदा बाबू के घर में रखा तेजाब फेंक दिया। जब शहाबुद्दीन को इस बात की भनक लगी तो उसने चंदा बाबू के तीन बेटों गिरीश, सतीश व राजीव रोशन का अपहरण कर लिया। दो भाइयों गिरीश कुमार व सतीश कुमार की हत्या कर दी गई। अजाम देने वालों ने शवों के टुकड़े कर बोरियों में भर ठिकाने लगा दिया गया था। शहाबुद्दीन पर आरोप लगा कि उसने दोनों की तेजाब से नहलाकर हत्या की थी। बाद में तीसरे भाई, इस कांड का चश्मदीद गवाह राजीव रौशन, की भी गोली मारकर हत्या कर दी गई। सीवान में हुए इस चर्चित तेजाब कांड के खिलाफ चंदा बाबू ने लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी। शहाबुद्दीन ने आरोपित शहाबुद्दीन के खिलाफ कानून लड़ाई लड़ कर उसे तिहाड़ जेल भिजवाया।