बिहार में चुनावी हलचल के बीच पूर्व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान का निधन से शोक की लहर फैल गई है। लोजपा के मुखिया चिराग पासवान पर जैसे गाज गिरा हो। अब सवाल यह उठता है कि क्या बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों पर इसका असर पड़ सकता है।
पिछल कई दिनों से चिराग पासवान चर्चा में रहे हैं। नीतीश सरकार के खिलाफ लगातार बेबाकी से बोल रहे हैं। खुली चेतावनी दी है कि वो इस चुनाव में नीतीश कुमार की सरकार को उखाड़ फेंकेंगे। भाजपा का साथ लेकिन नीतीश से बैर पर वो लगातार बोलते रहे हैं। ऐसे में पिता रामविलास पासवान का सानिध्य खोने से आगामी चुनाव में उनकी पार्टी पर क्या असर पड़ेगा यह बात जरूर उठ रही है। रामविलास पासवान के निधन से लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) को सहानुभूति के तौर पर वोट जरूर मिल सकता है। पासवान के जाने से दुसाध वोट चिराग की ओर मुड़ सकते हैं। रामविलास पासवान लंबे समय से दुसाधों के सबसे बड़े नेता माने जाते रहे हैं। यह हमेशा दुसाधों की भागीदारी ही रही है कि पासवान हर चुनाव में मजबूती से उभरते रहे हैं। रामविलास पासवान की यह ताकत अब चिराग के साथ खड़ी हो सकती है।
राजनीतिक विशेषज्ञ पहले से ही इस पर विचार कर रहे थे कि रामविलास पासवान ने जितनी मजबूती से दुसाधों को अपने साथ जोड़े रखा था तो क्या उसी तरह चिराग यह कर पाएंगे। लेकिन रामविलास पासवान के निधन के बाद यह साफ दिख रहा है कि दुसाधों का वोट और सहानुभूति उन्हें जरूर मिलेगी। यही लग रहा है कि दुसाध एकजुट होकर एलजेपी के लिए वोट कर सकते हैं।
चिराग ने पिता की बीमारी के दौरान उनके स्वास्थ्य के बारे में सभी को बताते रहे हैं। उन्होंने पहले भी जिक्र किया था कि वह पिता के राजनीतिक काम को आगे बढ़ाना चाहते हैं।
सीनियर पासवान के निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शोक व्यक्त करते हुए कहा भी उन्होंने एक दोस्त खो दिया। पीएम मोदी के अलावा बीजेपी के लगभग हर बड़े नेता ने शोक व्यक्त किया है। ऐसे में एक अजीब सी स्थिति सामने है। चुनावी मैदान में बीजेपी और जेडीयू एक साथ हैं। एलजेपी विरोधी की भूमिका में है। अब जब हालात यह कह रहे हैं कि बीजेपी के कहने पर एलजेपी ने खुद को अकेले ही चुनावी रण में उतारा है तो विचित्र से हालात बन हुए हैं। चुनाव प्रचार पुरजोर तरीके से चल रहा है। बीजेपी पासवान को श्रद्धांजलि दे रही है लेकिन एलजेपी के विरोध में चुनाव लड़ रही है।
एक बात और है कि रामविलास पासवान की मौत के बाद चिराग पर चौतरफा दवाब बन गया है। खुद को साबित की चुनौती सामने है। मौसम वैज्ञानिक माने जाने वाले रामविलास पासवान किसी भी तरह से जीत की तरफ होते थे। उन्होंने वाजपेयी सरकार में मंत्रालय बदलने पर एनडीए का साथ छोड़ दिया था और फिर यूपीए में मंत्री बने थे। लेकिन उनकी जरूरत हर पार्टी को होती थी। वो राजनीतिक चाल चलने में माहिर माने जाते थे। हर पार्टी के साथ उनके संबंध मधुर होते थे। एनडीए से अलग होने के बावजूद उन्होंने बीजेपी से हाथ मिलाया और 2014 में फिर केंद्र में मंत्री पद हासिल किया।
पासवान के निधन के कुछ घंटे पहले ही एलजेपी ने एक पत्र भी सार्वजनिक किया था। वो पत्र 24 सितंबर को चिराग ने बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा को लिखी थी। चिट्ठी में उन्होंने लिखा था कि उनके पिता राज्यसभा सीट के लिए नामांकन दाखिल करने से पहले नीतीश से मुलाकात कर समझाने गए थे। लेकिन नीतीश का व्यवहार ठीक नहीं था। इस चिट्ठी को सार्वजनिक करके भी लोजपा ने लोगों के दिलों में उतरने का प्रयास किया था।
चिराग पासवान ने खुद को अपने पिता की तरह मंझा राजनेता बनाने की पूरी चेष्टा की है। तभी तो चिराग ने वोटर्स और पार्टी कार्यकर्ताओं से अपील में कहा था कि ‘पापा का अंश हूं इसलिए उन्हें पता है कि कैसे विपरीत परिस्थितियों में सफल होते हैं।
अब अपने पिता के अधूरे सपनों को पूरा करने की बात करने को तैयार चिराग जाहिर तौर पर वोटरों की सहानुभूति बटोर सकेंगे।