अक्सर कुछ लोगों के साथ ऐसा होता है कि सब जानते हुए भी कुछ पल के लिए अचानक
से कुछ भूल जाते हैं, जरूरी काम करने उठते हैं लेकिन फिर अचानक से सोचते हैं क्या
करना था, जो रास्ते आंखें तो छोड़िए पैरों को भी पता होते हैं कई बार चलते चलते दिमाग
से गायब हो जाते हैं, किचन में घुसने की बजाय बाथरुम पहुंच जाते हैं, ताला लगाने के तुरंत
बाद उसे फिर से उसे चैक करते हैं। अक्सर लोग इस तरह की आदत को आम बात समझ
कर टाल देते हैं लेकिन अगर चींजें भूलने की ये समस्या आपके साथ हमेशा होती है तो हो
सकता है कि आप इस नजरअंदाज करने वाली आदत की आड़ में डिमेंशिया या अल्जाइमर
का शिकरा हो रहे हों।
डिमेंशिया यानि मनोभ्रंश एक ऐसी बीमारी या कहें सिंड्रोम है जिसकी शुरुआत छोट-मोटी
भूलने की आदत से होती है जैसे घर या जानी पहचानी जगह का रास्ता भूलना, किसी भी
घटनाक्रम को पूरा याद न रख पाना। पैसों के प्रबंधन में दिक्कत होना, फैसले लेने में
समस्या और चीजों की सही जगह भूलना आदि। वहीं बीमारी का दूसरा पड़ाव दिमाग को
इतना प्रभावित करता है कि जाने-पहचाने लोगों के नाम याद नहीं रहते, बातचीत में दिक्कत,
खुद में खोया खोया रहना, एक ही बात को कई-कई बार पूछना आदि, वहीं बीमारी की लास्ट
स्टेज में बीमारी से ग्रसित व्यक्ति पूरी तरह दूसरों पर निर्भर हो जाता है, समय और जगह
से पूरी तरह अनजान रोगी अपने खुद के दोस्तों-रिश्तेदारों को भी नहीं पहचानता। दिमाग
पर बीमारी यूं काबिज हो जाती है कि व्यक्ति अपनी देखभाल भी खुद नही कर पाता और
दिमाग पर बीमारी का गंभीर असर उसे आक्रामक भी बना देता है, लेकिन डिमेंशिया के
शिकार व्यक्ति को आफ मंदबुद्धि या पागल नहीं कह सकते साथ ही ये कहना भी गलत
होगा कि ये सिर्फ बुजुर्गों में होता है 40 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों को भी डिमेंशिया
प्रभावित कर सकता है।
सरल शब्दों में इस बीमारी को समझें या परिभाषित करें तो डिमेंशिया बीमारी न होकर कुछ
ऐसे लक्षणों का समूह है जिनकी वजह से व्यक्ति की याददाश्त कमजोर होती जाती है,
जिसके चलते व्यक्ति अल्जाइमर और पारकिंसन जैसे रोगों से घिर जाता है। डिमेंशिया भी
कई प्रकार का होता है जैसे – वैसकुलर डिमेंशिया, लेवी बॉडी डिमेंशिया और फ्रंट टेंपोरल
डिमेंशिया। वैसकुलर डिमेंशिया में दिमाग तक रक्त प्रवाह करने वाली धमनियां अवरुद्ध हो
जाती है और ऑक्सीजन की कमी के चलते दिमाग का कुछ भाग मृत हो जाता है। लेवी
बॉडी डिमेंशिया में रोगी में अल्जाइमर और पारकिंसन दोनों रोगों के लक्षण पाए जात हैं और
रोगी को कंपन, शरीर में अकड़न व चलने में दिक्कतें आती हैं। जबकि फ्रंट टेंपोरल डिमेंशिया
में याददाश्त के साथ-साथ व्यक्ति के व्यक्तित्व पर भी गहरा असर होता है, बीमारी के
शुरुआती पड़ाव में यदि पहचान हो जाए तो इलाज से बचाव संभव है लेकिन उपचार में देरी
के बाद ये समस्या लाइलाज हो जाती है। WHOके मुताबिक, डिमेंशिया से पीड़ित 60 फीसदी
लोग कम और मध्यम इनकम वाले देशों में पाए जाते हैं, विश्वभर में डिमेंशिया के लगभग
5 करोड़ मरीज हैं और ये गिनती साल दर साल बढ़ती ही जा रही है क्योंकि लोगों में इस
बीमारी के प्रति जागरुकता का अभाव है इसी कारण इस बीमारी की पहचान और इलाज में
दिक्कतें आती हैं।
अब जहां तक बात है इस बीमारी के कारणों की तो मस्तिष्क में ट्यूमर या सिर में किसी
चोट के चलते भी व्यक्ति डिमेंशिया का शिकार हो सकता है इसके अलावा किडनी, लीवर या
थायराइड की समस्या, विटामिन्स कमी, नशे की आदत और भरपूर पोषण का अभाव
व्यक्ति को इस समस्या से ग्रसित कर सकता है। तनाव, पूरी नींद न लेना, धुम्रपान, डिप्रेशन
की दवाओं का ज्यादा सेवन औऱ पोषक आहार की कमी भी एक साम्नय व्यक्ति को इस
समस्या से ग्रस्त कर सकती गै।
ऐसे में क्या करें कि आपकी सामान्य भूलने की आदत डिमेंशिया या अल्जाइमर में न बदले।
तनाव – अवसाद से बचें, नींद पूरी लें, धुम्रपान से बचें, ज्यादा दवाओं के सेवन से बचें,
पोषण से भरपूर आहार लें। दिन की शुरुआत योग, व्यायाम व ध्यान करें। बढ़ती उम्र में भी
अपने काम स्वयं करने की आदत न छोड़ें, इससे इस तरह की समस्य़ाओं का खतरा भी कम
होगा औऱ याददाश्त भी दुरुस्त रहेगी। यदि आपको ऐसा लगता है कि आपकों चींजें याद
रखने में दिक्कत होती है या आप अक्सर भूलने की आदत के शिकार हैं तो हो सकता है कि
ये डिमेंशियै के शुरुआती लक्षण हों, ऐसे में इन्हें नजरअंदाज किए बिना अपने दैनिक जीवन
में ये बदलाव लाएं और शुरुआती दौर में ही इस समस्या को बढ़ने से रोकें औऱ यदि आप
इश समस्या का शिकार हो चुकें हैं और दिक्कतें बढ़ रही हैं तो तुरंत एक अच्छे डॉक्टर से
संपर्क कर डिमेंशिया का इलाज शुरु करें क्योंकि उपचार में देरी इस बीमारीं को ना केवल
गंभीर बल्कि लाइलाज भी बना सकती है।