डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने आज के ही दिन यानी 14 अक्टूबर 1956 को हिंदू धर्म को छोड़कर बौद्ध धर्म अपना लिया था। इस घटना को इतिहास में धर्म परिवर्तन की सबसे बड़ी घटना के तौर पर याद किया जाता है। उस दिन नागपुर में अंबेडकर ने अपने 3.65 लाख समर्थकों के साथ धर्म परिवर्तन किया था।
यह कोई सामान्य घटना नहीं थी। इतनी बड़ी संख्या में लोगों का हिंदू धर्म को छोड़कर बौद्ध धर्म अपनाने के पीछे कुछ तो वजह रही होगी। चलिए आज आपको रुबरु करवाते हैं उस घटना के पीछे की वजह से।
14 भाइयों में सबसे छोटे थो अंबेडकर। उनका जन्म मध्यप्रदेश के इंदौर के पास छोटे से कस्बे महू में हुआ था। एक दलित परिवार में जन्म लेने के कारण उन्हें बचपन से ही कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। जाति आधारित भेदभाव उनकी जिंदगी के साथ साये की तरह जुड़ गया था। स्कूल के दिनों से ही उनके साथ भेदभाव होता रहा। कक्षा में उन्हें सबसे आखिरी पंक्ति में बैठने की जगह मिलती थी। अंबेडकर के बाल मन में भेदभाव की इस व्यवस्था के खिलाफ बीज पनप चुके थे।
आगे चलकर अंबेडकर ने बौद्ध धर्म को अपना लिया, उसकी शिक्षाओं का पालन किया। वो नहीं चाहते थे कि देश से ऊंच-नीच और छूआछूत की व्यवस्था रहे।
लेकिन यह सवाल अक्सर लोगों के मन में आता है कि आखिर हिंदू धर्म छोड़ने के बाद डॉ. बी.आर. आंबेडकर ने बौद्ध धर्म ही क्यों अपनाया। क्यों नहीं ईसाई, इस्लाम या सिख धर्म अपनाया?
इस बात का उत्तर हमें 13 अक्तूबर 1935 में महाराष्ट्र के येवला में कही उनकी बात से मिल सकता है। उन्होंने कहा था, “मैं हिंदू के रूप में पैदा हुआ हूं, लेकिन हिंदू के रूप में मरूंगा नहीं, कम से कम यह तो मेरे वश में है।”
वो कहते थे, “मुझे वह धर्म पसंद है जो स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व सिखाता है। मैं एक समुदाय की प्रगति को उस डिग्री से मापता हूं जो महिलाओं ने हासिल की है; धर्म मनुष्य के लिए है न कि मनुष्य धर्म के लिए”।
अंबेडकर जाति व्यवस्था के इस कदर खिलाफ थे कि उन्होंने शुरुआत में हिंदू धर्म में व्याप्त वर्ण व्यवस्था को खत्म करने के लिए कानून का भी सहारा लिया। आगे चलकर उन्हें महसूस होने लगा था कि जो बदलाव वो चाहते हैं, वे शायद संभव नहीं है। तो उन्होंने बौद्ध धर्म को अपनाने का फैसला लिया।
अंबेडकर के 1935 के भाषण पर निगाह डालें तो उनकी सोच समझ में आएगी। उन्होंने कहा था, “आप एक सम्मानजनक जीवन चाहते हैं तो आपको अपनी मदद खुद करनी होगी और यही सबसे सही मदद होगी… अगर आप आत्मसम्मान चाहते हैं, तो धर्म बदलिए. अगर एक सहयोगी समाज चाहते हैं, तो धर्म बदलिए. अगर ताकत और सत्ता चाहते हैं, तो धर्म बदलिए. समानता .. स्वराज .. और एक ऐसी दुनिया बनाना चाहते हैं, जिसमें खुशी-खुशी जी सकें तो धर्म बदलिए।
तभी अंबेडकर ने हिंदू धर्म छोड़ने की घोषणा भी कर दी थी इस भाषण के करीब 20 साल बाद डॉ. अंबेडकर ने हिंदू छोड़कर बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया था। तब उन्होंने कहा था ‘मैं हिंदू धर्म में पैदा ज़रूर हुआ, लेकिन हिंदू रहते हुए मरूंगा नहीं।’
साल 1940 में अपने अध्ययन के आधार पर अंबेडकर ने “द अनटचेबल्स” में लिखा था – भारत में जिन्हें अछूत कहा जाता है, वो मूल रूप से बौद्ध धर्म के अनुयायी थे। ब्राह्मणों ने इसी कारण उनसे नफरत पाली।
1944 में मद्रास में एक भाषण के दौरान अंबेडकर ने कहा था कि बौद्ध धर्म सबसे ज़्यादा वैज्ञानिक और तर्क आधारित धर्म है। बता दें कि आज़ादी के बाद संविधान सभा के प्रमुख बनने के बाद बौद्ध धर्म से जुड़े चिह्न अंबेडकर ने ही तय किए थे।
डॉ. आंबेडकर के लेख ‘बुद्ध और उनके धर्म का भविष्य’ से पता चलता है बौद्ध धर्म उनकी नजरों में श्रेष्ठ था। बौद्ध धम्म को उन्होंने संपूर्ण मनुष्य जाति के लिए कल्याणकारी माना था। कलकत्ता की महाबोधि सोसाइटी की मासिक पत्रिका में 1950 में यह लेख प्रकाशित हुआ था। लेख में विश्व में सर्वाधिक प्रचलित चार धर्मों बौद्ध धम्म, हिंदू धर्म, ईसाई धर्म और इस्लाम की तुलना करते हुए उन्होंने लिखा था। ‘ईसाई धर्म के संस्थापक ईसा मसीह खुद को ईश्वर का बेटा घोषित करते हैं और अनुयायियों से कहते हैं कि जो लोग ईश्वर के दरबार में प्रवेश करना चाहते हैं उन्हें उनको ईश्वर का बेटा स्वीकार करना होगा। इस्लाम के संस्थापक मुहम्मद खुद को खुदा का पैगम्बर (संदेशवाहक) घोषित करते हुए घोषणा करते हैं कि मुक्ति चाहने वालों को न केवल उन्हें खुदा का पैगम्बर मानना होगा, बल्कि यह भी स्वीकार करना होगा कि वह अन्तिम पैगम्बर हैं।’ इसके बाद डॉ. आंबेडकर हिंदू धर्म की बात करते हैं. हिंदू धर्म के बारे में वे कहते हैं कि ‘इसके अवतारी पुरुष ने तो ईसा मसीह और मुहम्मद से भी आगे बढ़कर खुद को ईश्वर का अवतार यानी परमपिता परमेश्वर घोषित किया है।’
जबकि बुद्ध को लेकर उनका दष्टिकोण कुछ ऐसा था, ‘उन्होंने ( बुद्ध) एक मानव के ही बेटे के तौर पर जन्म लिया, एक साधारण पुरुष बने रहने पर संतुष्ट रहे और वह एक साधारण व्यक्ति के रूप में अपने धर्म का प्रचार करते रहे। उन्होंने कभी किसी अलौकिक शक्ति का दावा नहीं किया और न ही अपनी किसी अलौकिक शक्ति को सिद्ध करने के लिए चमत्कार दिखाए। बुद्ध ने मार्ग-दाता और मुक्ति-दाता में स्पष्ट भेद किया।’
देश के शोषितों और वंचितों की आवाज बने अंबेडकर का 6 दिसंबर 1956 को निधन हो गया था। 1990 में उन्हें मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया था।