15 अगस्त अर्थात् भारत के लिए वो दिन जो आजादी लेकर आया- स्वतंत्रता दिवस। हर वर्ष इस मौके पर तिरंगा झंडा फहरा कर, लाल किले के प्राचीर से प्रधानमंत्री देश के नाम संबोधन देते हैं। क्या आपने कभी सोचा है कि आजादी के जश्न के लिए लाल किले को ही क्यों चुना गया है?
क्या है लाल किले की महत्ता जो इसे आजादी के जश्न से जोड़ता है।
सत्ता व आजादी का प्रतीक है लाल किला-
दिल्ली में यमुना के तट पर बना लाल किला, सत्ता के केंद्र के तौर पर स्थापित रहा है। किले का निर्माण, मुगल बादशाह शाहजहां ने 1638 से 1649 के दौरान करवाया था।
लाल किले पर राज करने वाले के हिंदुस्तान का शासक माना जाता था। हर आक्रमणकारी लाल किले पर कब्ज़ा करने की हसरत रखता था। 18 वीं सदी की बात करें तो 1739 में ईरान के शासक नादिर शाह का हमला हो या फिर मराठाओं, सिखों, जाटों, गुर्जरों के हमले, इन सभी का केंद्र लाल किला ही था।
सत्ता का केंद्र था लाल किला
19वीं सदी में भी लाल किला सत्ता का केंद्र बना रहा। 1857 की क्रांति यानि पहले स्वतंत्रता संग्राम का केंद्र भी लाल किला ही था। मेरठ से निकले क्रांतिकारियों ने भी दिल्ली चलो, लाल किला चलो का ही नारा दिया था। आखिरी मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर इन क्रांतिकारियों का नेतृत्व कर रहे थे।
‘दिल्ली चलो‘ का नारा लाला किले से जुड़ा था-
आज़ादी की मांग कर रहे महान क्रांतिकारी सुभाष चंद्र ने जब रंगून में ‘दिल्ली चलो’ का नारा दिया था। 1940 में यह नारा सीधे लाल किले से जुड़ा था जो इस यह बताता था कि दिल्ली का केंद्र लाल किला ही था।
आज़ादी के बाद लाल किले से ही पहली बार प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने देश को संबोधित किया था-
आज़ादी के उपरांत 16 अगस्त, 1947 को लाल किले की प्राचीर से ही प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने देश को संबोधित किया और तिरंगा फहराया। दरअसल उस दौर में लाल किले से विशाल और प्रतीकात्मक तौर पर महत्वपूर्ण कोई दूसरी गैर-औपनिवेशिक इमारत नहीं थी जिस कारण इसे ही आज़ादी के बाद पहले संबोधन के लिए चुना गया।