आज है World Soil Day यानि विश्व मृदा दिवस, यानि हर साल दिसंबर की पांच तारीख
को मिट्टी के स्वास्थ्य के प्रति जागरुकता फैलाने के लिए चुना गया है, लेकिन क्या आपने
कभी सोचा है कि इस मिट्टी के स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए एक विशेष
तारीख तय करने की जरूरत क्यों पड़ीं? इसलिए क्योंकि धरती की ऊपजाऊ मिट्टी धीरे-धीरे
बंजर होती जा रही है, एक तरफ खेती के बदलते तरीके, फसलों के ज्यादा उत्पादन के लिए
अंधाधुंध रसायनों व कीटनाशकों का इस्तेमाल और दूसरी तरफ आधुनिकीकरण के चलते बढ़
रहा विभिन्न प्रकार का प्रदूषण, इन सब वजहों से पृथ्वी की स्वस्थ मिट्टी दिन-ब-दिन
बीमार होकर बंजर हो रही है, जो कि चिंता का विषय है, इसलिए क्योंकि हमारे पेट भर
भोजना का 95 फीसद हमें फसलों के माध्यम से इसी मिट्टी से प्राप्त होता है, ऐसे में यदि
मिट्टी की सेहत यूंही बिगढ़ती रही तो विश्व एक गंभीर खाद्यान्न संकट की चपेट में आ
सकता है।
मृदा स्वास्थ्य की इस गंभीरता को समझते हुए धरा के प्रत्येक मानव को इस मुद्दे से रूबरू
कराने के उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र ने साल 2013, दिसंबर में ये घोषणा की कि हर साल 5
दिंसबर को विश्व मृदा दिवस के रूप में मनाया जाएगा और जागरुकता कार्यक्रमों के माध्यम
से लोगों को मिट्टी के महत्व से अवगत कराने की मुहिम चलाई जाएंगी। संयुक्त राष्ट्र की
इस आधिकारिक घोषणा के बाद 5 दिसंबर 2014 को पहला मृदा दिवस मनाया गया।
मौजूदा समय में धरती की कुल मृदा यानि मिट्टी का 33 फीसदी पहले से ही बंजर है।
जनसंख्या विस्तार, आधुनिकीकरण औऱ बढ़ती औद्योगिक इकाइयों के चलते बहुत सी
उपजाऊ जमीन आज खत्म हो गई है, और जिस उपजाऊ जमीन पर खेती की जा रही है
उसमें से ज्यादातर भूमि की क्षमता रसायनों के चलते कमजोर हो रही है, ऐसे में मिट्टी के
स्वास्थ्य के प्रति सिर्फ किसान या कृषि क्षेत्र के लोगों को नहीं बल्कि हर आमौखास को
चिंतित और गंभीर होने की जरूरत है।
वैसे देखा जाए तो इस विषय पर लोगों को ज्यादा समझाने की जरूरत होनी नहीं चाहिए
क्योंकि हम सभी जानते हैं कि पंच तत्व सृष्टि का आधार हैं इन पांच तत्वों में से किसी भी
एक तत्व की कमी या क्षीणता मानव अस्तित्व को समाप्त करती है, मिट्टी उन्हीं पंच तत्वों
में एक अहम तत्व है, ऐसे में मिट्टी का स्वास्थ्य अपने आप में खास हो जाता है, लेकिन
कई बार लोग ऐसे अहम मुद्दों पर विचार करना या ध्यान देना वक्त की बर्बादी समझते हैं
इसलिए इस विषय को एक दिन समर्पित कर ऐसे लोगों का ध्यान भी इस ओर आकर्षित
करने की कोशिशें की जा रही हैं जो मिट्टी के महत्व को समझना नहीं चाहते।
ये बेहद दुखद है कि संसारभर की आबादी को पेटभर खाद्यान्न उपजाकर देने वाली मिट्टी
के उपकार को इंसान अनदेखा कर रहा है। जल, जंगल, जमीन चर्चाओं में सुनाई तो देते हैं
लेकिन घंटे दो घंटे के लिए। वास्तविक धरातल पर उतरकर इन विषयों पर गंभीरता से न तो
कोई बात करता है न ही काम। सृष्टि पर जीवन के लिए सबसे जरूरी इसी मिट्टी के महत्व
को बरसों पहले समझ लिया था थाईलैंड के राजा भूमिबोल अदुल्यादेज ने। एक ऐसा किसान
हीतैषी शासक जिसने दशकों पहले कह दिया था कि अगर दुनिया का पेट भरना है तो मिट्टी
की कद्र करो, इसे बीमार होने से बचाओ अगर ऐसा नहीं किया तो भविष्य में किसान बर्बाद
हो जाएंगे। मिट्टी से संबंधित जिन विषयों पर लोग अबतक गंभीर नहीं हुए हैं उन विषयों
की गंभीरता को समझते हुए थाइलैंड़ सम्राट भूमिबोल ने 3 दशक पहले ही उनपर काम करना
शुरु कर दिया था। राजा भूमिकोबल के मिट्टी के दर्द को समझ उपचार के प्रति गंभीर होने
का ही सकारात्मक नतीजा रहा कि 80 के दशक में जिस पेचाबुरी प्रांत की वनस्पतियां खत्म
हो गई थी, आज वहां न सिर्फ घने जंगल हैं बल्कि खेत, बाग, बगीचे भी फलफूल रहे हैं।
पूरा आर्टिकल पढ़ने के बाद भी एक सवाल और आपके मन में होगा, कि आखिर 5 दिसंबर
को ही मृदा दिवस क्यों तो ये उत्सुकता भी शांत कर ही लीजिए। मिट्टी को बेमोल समझने
वालों को मिट्टी का महत्व और सही मोल समझाने वाले थाइलैंड के राजा भूमिबोल के
जन्मदिन को ही मृदा दिवस का नाम दिया गया है। जिन्होंने दशकों पहले मिट्टी के
स्वास्थ्य सुधार के लिए सैकड़ों नहीं हजारों प्रोजेक्ट्स चलाए और खेती व किसान से संबंधित
ऐसी तमाम समस्याओं का निदान किया, जिनके हल ढूंढना असंभव सा जान पड़ता था।
अपने इस अभूतपूर्व योगदान के लिए उन्हें साल 2012 में इंटरनैशनल यूनियन ऑफ सॉइल
सांइस की ओर से First Humanitarian Soil Scientist का अवॉर्ड मिला और साल 2014
से भूमिबोल के जन्म दिवस को World Soil Day के रूप में मनाया जाने लगा। हर साल
इस दिन को एक खास थीम के साथ सैलिब्रेट किया जाता है और इस साल यानि 2020 की
थीम है Keep soil alive, protect soil biodiversity यानि मिट्टी को जीवित रखें, मिट्टी
की जैवविविधता को सुरक्षित रखें।