सबसे पहले तो चिराग पासवान के बिहार एनडीए से अलग होने पर एंटी इनकंबेंसी का मुद्दा बड़ा रूप ले लेगा। वैसे भी चिराग पासवान लगातार बाढ़, कोरोना जैसे मुद्दों को लेकर नीतीश सरकार की नाकामियों पर सवाल उठाते रहे हैं। ऐसे में चिराग पासवान अलग होने से विपक्ष को एक बड़ा मुद्दा बैठे-बिठाए हाथ लग जाएगा। पहले से ही नीतीश के खिलाफ पनपते एंटी इनकंबेंसी का मुद्दे को और बल मिलेगा।
बिहार की राजनीति में दलितों का सबसे बड़ा नेता राम विलास पासवान को माना जाता है। इस बात को एनडीए में शामिल हुए पूर्व सीएम जीतन राम मांझी भी मानते हैं। मांझी ने हाल ही में कहा था कि मैं सदैव मानता रहा हूं कि रामविलास पासवान दलितों के बड़े नेता हैं। ये जरूर कहूंगा कि उनसे कुछ गलतियां हुई हैं, जिसे मैंने इंगित किया है। लेकिन इसका कतई मतलब नहीं है मैं उनको बड़ा नेता नहीं मानता।
एलजेपी का यह दाव बहुत ही अच्छा है। चिराग की प्लानिंग तो यही लगती है कि उनके इस फैसले से जेडीयू को नुकसान होगा और चुनाव बाद बीजेपी और एलजेपी सरकार बना लेंगे।
एलजेपी के इस कदम का एक असर यह भी हो सकता है कि पार्टी कई उन बीजेपी नेताओं को भी उन सिटों पर टिकट दे सकती है, जिन्हें जेडीयू की सीटों पर चुनाव लड़ने का मौका नहीं मिलेगा। एलजेपी ने यह तो साफ कर ही दिया है कि वो पीएम नरेंद्र मोदी के नाम पर भी वोट मांगेगी।
एलजेपी के इस चाल से यह भी साफ हो जाता है कि चिराग नीतीश को करारा जवाब देने के पूरे मूड में हैं। इससे महागठबंधन को मौका मिल रहा है इस मुद्दे से राज्य में आधे से अधिक सीटों पर जो सियासी टकराव व उलझन दिखेगी। जिससे एनडीए वोट का बंटवारा हो जाएगा। साफ है कि जिन सीटों पर एलजेपी के प्रत्याशी होंगे, वहां महागठबंधन को जीतने के आसार बढ़ जाएंगे।
चिराग की राजनीतिक समझ को देखते हुए तो यही प्रतीत होता है कि वो दूर की देख रहे हैं। जेडीयू को नुकसान और बीजेपी का फायदा। अगर चुनावी परिणाम के तहत बीजेपी बेहतर प्रदर्शन करती है तो बीजेपी का चेहरा ही प्रदेश में मुख्यमंत्री बन कर उभरेगा। चिराग की रणनीति तो काबिल ए तारीफ है पर नीतीश कुमार की राजनीतिक समझ को देख कर तो यही कहा जा सकता है कि उन्होंने धूप में बाल थोड़े ही सफेद किये हैं।
नीतीश कुमार (Nitish Kumar) चिराग की चाल को तो समझ ही रहे हैं। जेडीयू अब अपनी चाल चलने को तैयार है। वो बीजेपी पर दबाव बना कर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) के साथ संयुक्त रूप से चुनाव प्रचार करेंगे। एक अजीब सी स्थिती बन जाएगी। जहां से चिराग पासवान जेडीयू के खिलाफ उम्मीदवार उतारेंगे वहां वो भाजपा के साथ संयुक्त प्रचार करेंगे। इसका फायदा यही होगा कि वोटर के मन में पनप रहे दुविधाओं का अंत हो जाएगा और जेडीयू के उम्मीदवार को ही वोट मिलेगा।
यह भी समझना जरूरी हो जाता है कि बिहार पासवान की आबादी राज्य में करीब पांच फीसदी है। अब इसे समझने के लिए 2015 के विधानसभा चुनाव की बात करते हैं। तब एनडीए में रहते हुए रामविलास पासवान की पार्टी ने 42 सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे, जिसमें उन्हें 2 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। एलजेपी को इन सीटों पर 28.79 फीसदी वोट मिले थे, जो की राज्य स्तर पर 4.83 फीसदी हैं। 2005 के विधानसभा चुनाव में एलजेपी को राज्य में 11.10 फीसदी वोट मिले थे। ऐसे में चिराग का यह फैसला जेडीयू की वोट बैंक में सीधे-सीधे सेंध लगा सकता है। यानि की जेडीयू को चुनाव में सीधे-सीधे करीब पांच प्रतिशत वोट का नुकसान।