स्मिथा सिंह, नई दिल्ली
बच्चों को तनाव में जाने से रोक सकता है माता-पिता का प्यार
घर में दो दिन बंद रहें तो बोर महसूस करने लगते हैं, ऐसे में आपने सोचा है कि आपके बच्चे 10 महीने से कैसे रह रहे हैं, वैश्विक संकट के इस दौर में जब हर कोई सबकुछ भूलकर केवल कोरोना से बचाव पर फोकस कर रहा है, मासूमों के दिलो दिमाग कई तरह के विकारों से घिर रहे हैं, महामारी के इस दौर में बच्चों को अहतियातन घरों में रहने की हिदायतें हैं, लेकिन घरों में महीनों से बंद बच्चे कई तरह की मानसिक दिक्कतों का सामना कर रहे हैं।
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शुरुआती दौर में कम से कम ये राहत थी कि बच्चों के साथ-साथ माता-पिता भी लॉकडाउन के चलते घर में थे, अधिकतर ऑफिसेज में वर्क फ्रॉ होम ही चल रहा था, लेकिन जैसे जैसे दफ्तर खुले हैं और माता-पिता ने घर ने निकलना शुरु किया है, बच्चे घरों में अकेलेपन का शिकार हो रहे हैं। खासकर एकल परिवारों के बच्चे। जिसके चलते बच्चों की आदतों में चिड़चिड़ापन, चीखना-चिल्लाना, बात-बात पर नाराज होना जैसे बदलाव देखे जा रहे हैं। मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि कोरोना से बचाव के लिए अहतिय़ातन अभिभावकों द्वारा बच्चों से ज्यादा रोकटोक करना, घर में रहने के लिए समझाना जैसी बातें ही उन्हें चिड़चिड़ा और आक्रामक बना रही हैं।
बढ़ रहा है मेंटल स्ट्रेस
एक समस्या ये भी है कि स्कूल बंद होने की वजह से ऑनलाइन क्लासेज चल रही हैं, ऐसी स्थिति में बच्चे पढ़ाई से इतर एंटरटेनमेंट के लिए भी फोन, कंप्यूटर या लैपटॉप से ही चिपके रहते हैं इससे बच्चों की आंखों पर तो असर पड़ ही रहा है मेंटल स्ट्रेस भी बढ़ रहा है। इसके अलावा आंखों में खुजली, सिर दर्द, नींद न आना, आलस जैसी समस्याएं भी हो रही हैं। ऐसे में बच्चों की मन स्थिति को समझने की जरूरत है क्योंकि बढ़ती उम्र के बच्चों में चिड़चिड़ापन उनके भविष्य के लिए काफी घातक हो सकता है।
बच्चों में तनाव हमारे लिए एक गंभीर मुद्दा है और होना भी चाहिए क्योंकि दुनिया भर में बच्चों की जितनी आबादी है उसका करीब 19 फीसदी बच्चे भारत में हैं यानि कुल आबादी में 45 करोड़ से ज्यादा बच्चे हैं। यही बच्चे हमारे आने वाले कल का आधार हैं, इनकी मानसिक सबलता ही देश को सबल और सशक्त बनाएगी, ऐसे में जरूरी है कि कोरोना से बचाव के साथ साथ बच्चों को तनाव और अवसाद जैसी समस्याओं का शिकार होने से बचाव पर भी खासा ध्यान दिया जाए।
अनुशासन और रुटीन का पालन करें, बच्चों को वक्त दें
बच्चों का सामान्य रुटीन पूरी तरह गड़बड़ा गया है, रोजाना स्कूल जाना, पढ़ना, खेलकूद करना, दोस्तों से मिलना, ये सब उनके दैनिक जीवन का हिस्सा था, लेकिन लॉकडाउन के चलते वो इस सुख का अभाव महसूस कर रहे हैं। पढ़ने से कुछ बच्चे भले कतराते हों लेकिन घर में रहना तो किसी बच्चे को रास नहीं आता। ऐसी स्थिति में क्या करें, कि बच्चे खुद को सामान्य स्थिति में महसूस करें। तो जब तक स्थिति सामान्य नहीं हो जाती यानि स्कूल फिर से नहीं खुल जाते, उन्हें पहले जैसा महसूस कराएं। जैसे उनका- सोना, जगना, नहाना, खाना ये तमाम दैनिक कार्य पहले की तरह टाइम से होने चाहिए। ताकि उनके स्वास्थ्य पर कोई नकारात्मक असर न हो। दफ्तर के कामों के बाद या दफ्तर से लौटकर बच्चों को भी वक्त दें, ताकि उन्हें अकेलापन महसूस न हो। उनकी बातों को सुनें उनसे खुलकर बातचीत करें। कोरोना के विषय में बच्चों द्वारा पूछे गए सवालों के सकारात्म जवाब दें, ताकि वो किसीं टेंशन में न आएं। बच्चों को खाली वक्त में क्रिएटिव एक्टिविटीज के लिए प्रेरित करें।
मनोचिकित्सक से बात करने से ना घबराएं
बच्चों को फोन, टैब या लैपटॉप पर टाइम पास करने की सलाह बिल्कुल न दें, मन बहलाने के लिए हर वक्त बच्चों के हाथ में गैजेट्स थमाना उनके साथ साथ आपके लिए भी परेशानी का सबब बन सकत है। घर में शांत सकारात्मक माहौल बनाए रखें। फिर भी यदि ऐसा महसूस करें कि आपका बच्चा सामान्य व्यवहार नहीं कर रहा या आप यह महसूस कर रहे हैं कि वह किसी चिंता या तनाव में है तो किसी अच्छे मनोचिकित्सक से संपर्क करें। ध्यान रहे बच्चों की आदतों में आने वाले बदलावों की अनदेखी उसे किसी गंभीर समस्या का शिकार बना सकती है।