स्मिथा सिंह, नई दिल्ली
बुजुर्ग हैं हमारे अस्तित्व का आधार, दुर्व्यवहार नहीं, वे हैं आदर-सम्मान के हकदार 15 जून को दुनिया भर में मनाया जाता है World Elder Abuse Awareness Day यानि विश्व बुजुर्ग दुर्व्यवहार जागरुकता दिवस। इस दिन को मनाने और इस विषय के प्रति लोगों को जागरुक करने की जरूरत क्यों पड़ी होगी, ये बताने या समझाने की जरूरत तो शायद नहीं है, फिर भी चलिए World Elder Abuse Awareness Day के मौके पर आपको इस विषय और इस दिन से संबंधित कुछ बातों से अवगत कराते हैं।
माता-पिता के लिए उनके जीवन का परम सुख होती है संतान, जिसकी परवरिश, लालन-पालन में माता-पिता अपनी खुशियों के साथ भी समझौता करते हैं, लेकिन संतान के सुख में कोई कमी नहीं छोड़ते, उसे बेहतर शिक्षा दिला कर एक आत्मनिर्भर व्यक्ति बनाने की वो हर कोशिश करते हैं, और बच्चों की सफलता देख खुद को खुशनसीब महसूस करते हैं, गर्वान्वित होते हैं अपनी जिन्दगी भर की मेहनत पर कि उनके त्याग, और समझौतों ने उनकी औलाद के भविष्य को उज्जवल बनाया, लेकिन वही माता-पिता तब बोझिल हो जाते हैं जब उनकी संतान उनके तमाम बलिदानों को भूल उन्हें बिसार देती है, जिस बच्चे के लिए माता-पिता जी जान लुटाते हैं वही संतान यदि माता पिता को तिरस्कृत
निगाहों से देखे तो माता-पिता के लिए जिन्दगी कितनी नीरस हो जाती है, ये वही समझ सकते हैं जो इस दर्द में जीते हैं या जी रहे हैं।
मौजूदा समय की बात करें तो कोरोना महामारी के दौरान बुजुर्गों से दुर्व्यवहार के मामलों में बढ़ोत्तरी हुई है। बात भारत की करें तो कोरोना काल के लॉकडाउन में देश के 70 फीसदी से ज्यादा बुजुर्गों ने अपने ही घरों में हिंसा और दुर्व्यवहार झेला है। ये आंकड़े सामने आए हैं एजवेल फाउन्डेशन द्वारा हाल ही में किए गए एक सर्वे में। जिसमें 5 हजार बुजुर्गों से संपर्क कर उनसे सवाल किए गए तो 80 फीसद से ज्यादा ने कहा कि लॉकडाउन की वजह से उनकी जिन्दगी पहले से भी बदतर हो गई है, 73 फीसद ने कहा कि लॉकडाउन के दौरान उनके अपने ही घरों में उनके साथ दुर्व्यवहार की घटनाएं बढ़ी हैं। जबकि 61 फीसदी ने कहा कि संयुक्त परिवारों में रहने की वजह से बीमारी के दौरा घर के बच्चों ने ही उन्हें बोझ माना। 65 फीसदी लोगों ने कहा कि वे अपने ही घरो में नजरंदाज किए जाते हैं, 58 प्रतिशत ऐसे थे जिन्होंने कहा कि कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर के बाद से ही वे परिवार और समाज दोनों के लिए उपेक्षित हैं, यानि बुजुर्गों की करीब एक तिहाई आबादी या कहें 35 फीसदी बुजुर्ग अपने ही घरों में हिसां का सामना करने को मजबूर हैं, ललेकिन इतनी ज्यादतियों के बाद भी वे कहीं शिकायत नही करते क्योंकि समाज में भी उन्हें असुरक्षा की भावना और खुद के लिए सहयोग की कमी नजर आती है।
उंगली पकड़ कर चलना सीखने वाली औलाद ही जब हाथ पकड़ कर बेबस बुजुर्ग माता-पिता को घर से बाहर का रास्ता दिखाए तो माता-पिता के लिए इससे बड़ा शायद ही कोई दर्द होगा, कुछ औलादें तो अपने बुजुर्ग माता-पिता से ऐसे दुर्व्यवहार करती हैं कि इंसानियत भी शर्मिंदा हो जाए। बुजुर्गों के साथ होने वाले ऐसे ही दुर्व्यवहारों को रोकने के उद्देश्य से दुनियाभर में 15 जून को World Elder Abuse Awareness Day मनाया जाता है, ताकि लोगों को इस विषय के प्रति जागरुक किया जा सके, क्योंकि जैसे जैसे विश्व में बुजुर्गों की आबादी बढ़ रही है वैसे वैसे उनके साथ होने वाले दुर्व्यवहार की घटनाएं भी बढ़ रही हैं।
ये एक वैश्विक सामाजिक मुद्दा है जो दुनिया भर के लाखों बुजुर्गों के स्वास्थ्य और मानव अधिकारों को प्रभावित करता है, इसीलिए इस विषय के प्रति जागरुकता फैलाने के लिए विश्व बुजुर्ग दुर्व्यवहार जागरुकता दिवस मनाने की शुरुआत संयुक्त राष्ट्र द्वारा की गई। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने
दिसंबर 2011 में संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव 66/127 को पारित करके INPEA यानि इंटरनेशनल नेटवर्क फॉर द प्रिवेंशन ऑफ एल्डर एब्यूज के अनुरोध के बाद आधिकारिक रूप से इस दिन को मान्यता दी।
एक अनुमान के मुताबिक दुनियाभर में 60 साल से ज्यादा उम्र के लोगों की आबादी, जो 2015 में 900 मिलियन थी वो 2050 तक करीब 2 बिलियन तक हो जाएगी यानि बुजुर्गों की वैश्विक आबादी युवाओं से ज्यादा होगी, जाहिर है बुजुर्गों के सामने आने वाली समस्याएं और चुनौतियां और बढ़ेंगी। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के मुताबिक 4 से 6 प्रतिशत बुजुर्ग किसी न किसी रूप में दुर्व्यवहार से पीड़ित हैं। ऐसे में इस विषय के प्रति जागरुकता समय की मांग भी है। World Elder Abuse Awareness Day को हर साल पूरी दुनिया में एक स्पेशल थीम के साथ
मनाया जाता है। इस साल 2021 में इस दिन के लिए थीम रखी गई है Understand and End Financial Abuse of Older people यानि वृद्धों के वित्तीय दुर्व्यवहार को समझें और उसे खत्म करें। इस विषय के चुनाव का उद्देश्य है कि वित्तीय समस्याओं के चलते परेशानियों में जीवन जी रहे बुजुर्गों की मुश्किलें कम हों।
बुजुर्ग हमारे जीवन का आधार हैं, जिसने हमारा अस्तित्व है उनके अस्तित्व को धूमिल करने की कल्पना भी अपराध है, जिस तरह संतान माता-पिता से स्नेह और दुलार के अधिकारी हैं ठीक उसी तरह हमारे बुजुर्ग भी हमसे आदर-सम्मान और बुढ़ापे में उनकी देखभाल का अधिकार रखते हैं, बुजुर्ग संस्कारों की वो कुंजी हैं जो हमारी अगली पीढ़ी में हमारी परंपराओं और संस्कारों की बगिया सींचते हैं, घर के न्नहे मुन्हे, घर के बुजुर्गों से ऐसी बहुत सी अच्छी बातें सीखते हैं जो शायद भागमभाग भरी जिंदगी में माता-पिता उन्हें नहीं समझा पाते, इसलिए बुजुर्गों के सुर्व्यवहार नहीं, आदर और स्नेह भरा व्यवहार करें जिसके वे हकदार हैं।