स्मिथा सिंह, नई दिल्ली
हर साल 16 नवंबर की तारीख को International Day for Tolerance यानि अंतर्राष्ट्रीय सहिष्णुता दिवस के रूप में मनाया जाता है। क्यों और किस उद्देश्य से इस दिन को मनाने की शुरुआत कब की गई। पढ़िए International Day for Tolerance से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें।
International Day for Tolerance यानि अंतर्राष्ट्रीय सहिष्णुता दिवस इस दिन को मनाने के लिए चुनी गई है 16 नवंबर की तारीख। उद्देश्य है पृथ्वी के प्रत्येक मानव की प्रवृत्ति में धैर्य, उदारता या कहें सहिष्णुता सदा बनी रहे। इस दिन लोगों को वैश्विक सहिष्णुता के महत्व और असहिष्णुता के दुष्प्रभावों के प्रति अवगत और जागरुक किया जाता है, ताकि विश्व में शांति और सामंजस्य सदा कायम रह सके।
सहिष्णऩुता कह लीजिए या धैर्य, उदारता और सहनशीलता… ये वो सकारात्मक स्वभाव है जो हमें इंसान कहलाने योग्य बनाता है। धरती का हर व्यक्ति में ये भाव सदा संपन्न बना रहे इसी ध्येय के साथ UNESCO ने 16 नवंबर 1995 को अंतरराष्ट्रीय सहिष्णुता दिवस मनाने की परिकल्पना की थी और जिसके बाद साल 1996 में UNO ने 16 नवंबर को हर साल अंतरराष्ट्रीय सहिष्णुता दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की, और ये दिन हर साल एक खास विषय के साथ विश्व के विभिन्न देशों में मनाया जाने लगा। अंतर्राष्ट्रीय दिवस सहिष्णुता दिवस हर साल यूनेस्को और कई अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों द्वारा 16 नवंबर को मनाया जाता है।
इसके साथ ही सहिष्णुता और अहिंसा के प्रचार के लिए हर साल यूनेस्को द्वारा मदन जीत सिंह पुरस्कार प्रदान किया जाता है औऱ पुरस्कार के विजेता को एक लाख अमेरीकी डालर की पुरस्कार राशि प्रदान की जाती है। ये पुरस्कार विज्ञान, कला, संस्कृति अथवा संचार के क्षेत्र में सहिष्णुता और अहिंसा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से किए गए काम के लिए दिया जाता है। यूनेस्को ने इस पुरस्कार की स्थापना साल 1995 में राष्ट्र पिता महात्मा गांधी की 125वीं जयंती के मौके पर सहिष्णुता और अहिंसा को बढ़ावा देने के लिए की थी।
वैसे कम ही लोग शायद है जानते हों कि जिन मदन जीत सिंह के नाम पर सहिष्णुता और अहिंसा के प्रचार के पुरस्कार का नाम रखा गया, वो कौन थे??? तो आपको बता दें कि मदन जीत सिंह एक भारतीय राजनयिक थे। जिनका जन्म 1924 में लाहौर में हुआ था, इन्होंने 1942 में भारत छोड़ों आंदोलन में अहम भूमिका निभाई, साल 1953 मे वे भारतीय विदेश सेवा में शामिल हो गए और ग्रीस, यूगोस्लाविया, स्वीडन, स्पेन, यूएसएसआर, स्वीडन और डेनमार्क जैसे विभिन्न देशों में अपनी सेवाएं दीं। इसके बाद साल 1982 में वे भारत के राजदूत के रूप में यूनेस्को में शामिल हुए और साल 2000 में वे यूनेस्को के सद्भावना राजदूत बने।
सहिष्णुता जैसे विषय के प्रति वैश्विक स्तर पर जागरुकता फैलाना इसलिए जरूरी था और है क्योंकि विरोधी विचारों और परिस्थितियों में यदि आप उलझे रहेंगे तो अपने सामर्थ्य और क्षमता का इस्तेमाल खुद के विकास के लिए नहीं कर सकेंगे वहीं नकारात्मक विचारों के बीच मन की शांति, विद्रोह और अशांति में बदलेगी सो अलग। अक्स देखा भी जाता है कि परिस्थितियों के हाथों मजबूर होकर धैर्यवान व्यक्ति भी अपना आपा खो बैठता है और उस रोष में जो घटाएं घटित होती हैं वो ना सिर्फ उस व्यक्ति के नी जीवन को बल्कि समाज देश यहां तक कि विश्व के लिए भी हानिकारक सिद्ध होती हैं, क्योंकि उदारता से उग्रता और सहिष्णुता छोड़ असहिश्णुता की राह ही मानव के विकास को बाधित करती है और बैर के बीज बोती है।
आज इस दिन को खास तौर पर मनाने और सहिष्णुता के अर्त को सही तरीके से समझने की जरूरत है, क्योंकि आज की जीवन शैल में हम देखते हैं कि धैर्य, संयम, और सहनशक्ति जैसे शब्दों से अब लोगों का वास्ताकम ही रह गया है, नतीजा समाज. देश, विश्व में हिंसक घटनाएं बढ़ रही हैं ऐसे में सहिष्णुतो को अपने जीवन में उतारना इन घटनाओं पर विराम लगा सकता है। वहीं सही मायने में वास्तविक सहिष्णुता दिवस होगा, और तभी इस दिन को मनाना भी सार्थक सिद्ध होगा।