International Human Rights Day: तारीखों के कैलेंडर में ऐसे तमाम दिन हैं जो किसी न किसी विषय को समर्पित हैं, हर विषय के लिए एक विशेष दिन का चुनाव इस उद्देश्य से किया गया है कि लोग उस विषय के प्रति जागरुक हों, गंभीरता से उस विषय पर विचार करें, लेकिन क्या वाकई हम ऐसा करते हैं, शायद नहीं। यही वजह है कि जानकारियां का अभाव हमें कई बार हमारे अधिकारों से ही वंचित कर देता है, क्योंकि जो हम जानते ही नहीं उसके अधिकार के लिए आवाज कैसे उठाएंगे, तो आवाम को अपने अधिकार का पूर्ण ज्ञान हो और लोग मानवाधिकार के विषय से वाकिफ हो, इसके प्रति जागरुक हों इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए भी एक विशेष तारीख तय की गई है, 10 दिसंबर, इस दिन संपूर्ण विश्व में मनाया जाता है विश्व मानवाधिकार दिवस।
इस दिन के महत्व को समझने से पहले ये समझना जरूरी है कि मानवाधिकार क्या है? ऐसे अधिकार जिनपर सृष्टि के हर मानव के हैं, जीवन, सम्मान, समानता और सोच, विवेक व धर्म की स्वतंत्रता। ये वो मूल मानवाधिकार हैं, स्वास्थ्य, आर्थिक सामाजिक व शिक्षा का अधिकार भी मानवाधिकार में शामिल हैं जो व्यक्ति को सामान्य जीवन व्यतीत करने के लिए अनिवार्य भी हैं और धरती के हर बाशिंदे को स्वत ही प्राप्त होते हैं। ये वो मौलिक अधिकार हैं जिनका हर मानव स्वाभाविक रुप से हकदार है और कानून द्वारा संरक्षित किए जाने के बाद अब इन मौलिक अधिकारों का हनन एक गंभीर अपराध की श्रेणी में आता है, लेकिन फिर भी बहुत से लोगों के इन मौलिक अधिकारों का न सिर्फ हनन होता है बल्कि कई लोग अपने इन मूल मानवाधिकारों के प्रति अनभिज्ञता के चलते कई प्रताड़नाओं-यातनाओं का शिकार होते हैं, न्याय और हक के ज्ञान की कमी में लंबे वक्त तक अन्याय की चपेट में रहते हैं, जो कि एक गंभीर विषय है।
अपने इन वास्तविक, जन्मजात और मूल अधिकारों के ज्ञान, अपने अधिकारों को पाने के लिए संघर्ष और हक की लड़ाई को मजबूत बनाने के लिए नियम-कानूनों की पूर्ण जानकारी जैसी बातों से जनमानस को रूबरू कराने के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 10 दिसंबर 1948 को विश्व मानवाधिकार घोषणा पत्र जारी किया और साल 1950 में अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस मनाने की आधिकारिक घोषणा कर संयुक्त राष्ट्र महासभा ने विश्व के सभी देशों को इसकी शुरुआत के लिए आमंत्रित किया।
महासभा की इस घोषणा के बाद भी मानवाधिकार को कानूनी संरक्षण देने में भारत को कई दशक लगे। भारत में मानवाधिकार कानून 28 सितंबर 1993 को अमल में लाया गया, और मानव के मौलिक अधिकारों को मिला कानूनी संरक्षण। भारतीय संविधान में इस अधिकार को कानून का रूप देकर देश के हर नागरिक को इस अधिकार की गारंटी दी गई, साथ ही मानवाधिकार का हनन करने वाले, व इस कानून को तोड़ने वाले व्यक्ति को सजा का भी प्रावधान है। लोगों को उनके अधिकारों के प्रति जागरुक कराने के लिए 12 अक्टूबर 1993 को सरकार द्वारा मानवाधिकार आयोग का गठन किया गया।
मानवाधिकार को विभिन्न कानूनों के संरक्षण, इन अधिकारों के गलत इस्तेमाल की निगरानी के लिए संस्थाओं और सरकारी व गैर सरकारी संगठनों के कार्यरत होने के बाद भी विश्वभर में तमाम लोग सामाजिक असंतुलन का शिकार हो रहे हैं, जिसकी एक बड़ी वजह है सुदृढ़ व्यवस्था की कमी। भारत में मानवाधिकार की स्थिति भी बहुत स्वस्थ नही कही जा सकती, क्योंकि यहां आज भी मानवाधिकार को ताक पर रखकर, व्यक्ति की आर्थिक सबलता और निर्बलता के आधार पर उसके अधिकार तय हो जाते हैं, और जहां पढ़ी-लिखी जनता की कमी है, लोगों को अपने इन अधिकारों का ज्ञ्ना जहां तिनका मात्र भी नही है वहां आज भी मानवाधिकारों का हनन कोई बड़ी बात नही है। कई बार तो प्रशासन द्वारा ही आम आदमी के मानवाधिकारों का हनन होता है और जागरुकता की कमी के चलते ऐसे लोग अपने अधिकारों के लिए लड़ नहीं पाते।
अज्ञान और जानकारकियों के अभाव की इसी खाई को भरने के लिए हर साल एक खास विषय के साथ 10 दिसंबर को विश्व मानवाधिकार दिवस मनाया जाता है। इश वर्ष यानि साल 2020 का विषय है Recover Better – Stand Up for Human Rights. मानवाधिकारों के हनन का मूल कारण है गरीबी, इसलिए विश्व मानवाधिकार दिवस के दिन कई संस्थाओं द्वारा गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं, शोषित समाज के लोगों को उनके अधिकारों से अगवत करना के साथ साथ उनके मौलिक अधिकारों के प्रति जागरुक कराया जाता है। हर मानव को अपने मौलिक की जानकारी हो इसके लिए सम्मेलनों, बैठकों, प्रदर्शनियों व विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन जागरुकता फैलाई जाती है।
इस दिन के उद्देश्य को एक वाक्य में यूं समझ सकते हैं कि किसी एक व्यकित के साथ अन्याय हर किसी के लिए एक खतरा है, इसलिए किसी भी अन्याय को सहना या अनदेखा करना झेलने वाले व्यक्ति के लिए तो दुखद है ही बाकियों के लिए भविष्य का संघर्ष है। किसी व्यक्ति विशेष द्वारा किसी आम आदमी पर अत्याचार जितना दुर्भाग्यपूर्ण है उससे कहीं ज्यादा दुखद और चिंता का विषय है, दूसरों का उस अत्याचार को होते देखना और मौन रहना। हर किसी के अधिकार सुरक्षित रहें इसके लिए हर व्यक्ति को कर्तव्यों और अधिकारों में संतुलन को बरकरार रखना होगा, क्योंकि एक व्यक्ति के अधिकार वहां खत्म हो जाते हैं जब वो दुसरे की स्वतंत्रता में बाधा बनता है, इसलिए खुद की स्वतंत्रता का इस्तेमाल दूसरों के प्रोत्साहन व उत्थान के लिए करें, हनन के लिए नहीं, ताकि हर मानव के अधिकार स्वत ही सुरक्षित रहें।