स्मिथा सिंह, नई दिल्ली
कैलाश खेर, ये नाम आज किसी परिचय का मौहताज नहीं है, लेकिन कैलाश खेर के लिए इस बुलंदी तक पहुंचने का सफर आसान नहीं था। आज सुरों के सरताज कैलाश खेर अपना 48वां जन्मदिन मना रहे हैं, पढ़िए फर्श से अर्श तक का सफर तय करने वाले कैलाश खेर अपनी जिंदगी में किन हालातों से होते हुए इन बुलंदियों तक पहुंचे हैं।
7 जुलाई 1973 को उत्तर प्रदेश के मेरठ में जन्मे कैलाश खेर को संगीत विरासत में मिला। कैलाश खेर के पिता पंडित मेहर सिंह खेर कश्मीरी पंडित थे और घरों में होने वाले कार्यक्रमों में ट्रेडिशनल फोक सॉन्ग गाते थे, पिता से ही उन्होंने संगीत की शुरुआती शिक्षा भी ली और 13 साल की उम्र में परिवार से बगावत कर संगीत की बेहतर शिक्षा के लिए दिल्ली आ गए, और संगीत सीखने के साथ साथ जीविका चलाने के लिए विदेशी लोगों को संगीत भी सिखाया।
जिंदगी के तमाम उतार चढ़ावों को पार कर सफलता के आसमानों तक पहुंचे कैलाश खेर के जीवन में एक वक्त ऐसा भी आया जब उन्होंने सुसाइड करने का भी मन बनाया, एक्सोप्रट के बिजनेस में हुए घाटे से वो इस कद्र टूट गए कि डिप्रेशन में चले गए लेकिन किसी तरह उस दौर से निकले और काम की तलाश में सिंगापुर-थाइलैंड का रुख किया। गए। वहां से लौटे तो ऋषिकेश में साधु संतों के बीच रहे। यहां रहकर कैलाश खेर में वो आत्म विश्वास जगा, जो उऩ्हें संगीत की दुनिया में नाम कमाने के ख्वाब को पूरा करने के लिए मुंबई ले आया।
साल 2001 में मुंबई आकर भी कैलाश खेर ने तमाम मुश्किलों का सामना किया लेकिन हार नहीं मानी और आखिरकार एक दिन उन्हें एक विज्ञापन में जिंगल गाने का मौका मिला, जिसके लिए उन्हें 5 हजार रुपये फीस मिली। लंबे वक्त के संट्रगल के बाद कैलाश खेर को फिल्म अंदाज के लिए गाने का मौका मिला। गाना था रब्बा इश्क न होवे, लेकिन बॉलीवुड में धमाल मचाया उनके गाए गाने अल्लाह के बंदे ने। वैसा भी होता है फिल्म का ये गाना इतना हिट हुआ कि कैलाश खेर की सफलता में आने वाले सब रोड़े हट गए और देखते ही देखते अपने हुनर के दम पर कैलाश ने सफलताओं का कैलाश फतह किया।
सफलता की राह पर चलने की शुरुआत हुई तो फिर कैलाश खेर ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। इसके बाद कैलाश ने रब्बा, ओर सिकंदर, चांद सिफारिश जैसा गाने गाए। दो गानों के लिए कैलाश खेर को फिल्मफेयर के बेस्ट मेल प्लेबैक सिंगर के अवॉर्ड से नवाजा गया। तेरी दीवानी और सैय़ां जैसे रुहानी गीतों ने उन्हें हर दिल अजीज बनाया। देश ही नहीं, बल्कि दुनिया के हर हिस्सें में लोग उनकी रुहानी आवाज पर झूमते हैं।
अपनी उम्दा गायकी के लिए पद्मश्री सम्मान से नवाजे जा चुके कैलाश खेर सैकड़ों बॉलीवुड गीतों में आवाज देने के साथ साथ नेपाली, तमिल, तेलुगू, मलयालम, कन्नड़, बंगाली, उड़िया और उर्दू समेत 18 भाषाओं में गाने गा चुके हैं। आज उनका कैलाशा नाम से खुद का बैंड है जो नेशनल और इंटरनेशनल शोज करता है। कैलाश एक ऐसे कामयाब सूफी सिंगर हैं जिनकी आवाज को पसंद करने वालों में हर उम्र के लोग हैं। कैलाश खेर के मुश्किल दिनों की दासतां किसी भी हारे हुए के लिए प्रेरणादायी कहानी से कम नहीं, जो ये सिखाती है कि हुनर के साथ साथ हौंसला हो तो हार को भी हार माननी पड़ती है।