स्मिथा सिंह, नई दिल्ली
देश में कानून की प्रक्रिया इतनी जटिल है कि न्याय मिलने-पाने या दिलाने में बरसों बीत जाते हैं, कभी-कभी तो इतनी देर हो जाती है कि आरोपी का दोष, या निर्दोष को बेगुनाह साबित करने की इस प्रक्रिया में वो जिंदगी की जंग हार जाता है। इस विषय पर अभी लिखने का ख्याल आया इसलिए, क्योंकि हाल ही में एक बेकसूर, बिना किसी अपराध 20 बरस सलाखों के पीछे गुजारकर आया। 20 बरस बाद इसे निर्दोष पाए जाने के बाद बाइज्जत रिहा कर दिया गया, लेकिन क्या वाकई ये रिहाई उसे उसके वो बीस बरस वापस कर सकती है, जो उसने काल कोठरी में गुजारे। बेशक नहीं और ना ही कोई मुआवजा ऐसे निर्दोषों के जख्मों को मरहम दे सकता है। फिर क्या ऐसा हो कि कानून की न्याय प्रक्रिया में कोई मासूम ऐसे खेलों की बलि ना चढ़े। विषय गंभीर भी है औऱ पेचीदा भी, और इस विषय पर हाल ही में गंभीर हुई है देश की सर्वोत्तम अदालत, जहां ऐसे विक्टिम्स के लिए याचिका के माध्यम से दिशा निर्देष बनाए जाने की मांग उठी।
उत्तर प्रदेश के विष्णु तिवारी इन दिनों इस विषय का ताजा उदाहरण हैं, जो फर्जी केस में फंसे एक ऐसे बदनसीब विक्टिम रहे, जिन्हें अपनी बेगुनाही साबित करने में 20 बरस लग गए। ये वही विष्णु तिवारी हैं जिन्हें सितंबर 2000 में दुष्कर्म के आरोप में गिरफ्तार किया गया था, केस में एफआईआर के पीछे जमीन विवाद को कारण पाया गया और 20 साल जेल में बिताने के बाद 28 जनवरी 2021 को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने विष्णु तिवारी को निर्दोष करार दिया। फर्जी मामलों में फंसाए जाने वाले ऐसे विक्टिम्स, जो बिना किसी गुनाह की सजा पाते हैं उन्हें मुआवजा दिए जाने को लेकर दिशा-निर्देश जारी करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में भाजपा नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय द्वारा एक पीआईएल दायर की गई। विष्णु तिवारी केस का हवाला देते हुए कोर्ट में गुहार लगाई गई कि केन्द्र व राज्य सरकारों को निर्देश दिए जाएं कि ऐसे विक्टिम्स को मुआवजा देने के लिए दिशा निर्देश तैयार कर इसे लेकर लॉ कमिशन की रिपोर्ट लागू करें। कोर्ट में याचिकाकर्ता ने कहा कि कोई प्रभावी वैधानिक और कानूनी व्यवस्था न होने के कारण झूठे मुकदमे, गलत अभियोजन और निर्दोष लोगों को जेल में डालने के मामलों में बढ़ोत्तरी हो रही हैं। जो देश की न्यायिक व्यवस्था पर एक धब्बा है। इसलिए ऐसे मामलों को ध्यान में रखते हुए सर्वोच्च अदालत गलत अभियोजन के पीड़ित को मुआवजे के लिए दिशा-निर्देश तैयार करने के अपने संवैधानिक अधिकार का प्रयोग करे और इस संबंध में विधि आयोग की सिफारिशें सख्ती से लागू हो जाने तक इनके क्रियान्वयन के लिए केंद्र एवं राज्यों को निर्देश दे।
अक्सर हम देखते हैं कि गरीब, अशिक्षित वर्ग के लोगों को निर्दोष होते हुए भी न्याय नहीं मिल पाता, या न्याय होते होते कई बार बहुत देर हो जाती है। कई बार लोग शिक्षित होते हैं लेकिन पैसे की कमी या आर्थिक रूप से सक्षम न होने के चलते भी इस समस्या से दो-चार होते हैं। हर किसी के लिए कानूनी दांव पेंच को समझना टेढ़ी खीर हो जाता है। ऐसे में उन लोगों के लिए वाकई ऐसे दिशा निर्देशों की दरकार है, जो बिना दोष या गुनाह के एक अरसे तक मुजरिम का जीवन व्यतीत करते हैं।