मंत्रालय ने कहा है कि आईपीसी और सीआरपीसी के प्रावधान के तहत राज्य/केंद्र शासित प्रदेश यह सुनिश्चित करें कि कार्यवाही हो। अगर किसी प्रकार की ढिलाई दिखती है तो अधिकारियों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। गृह मंत्रालय ने कहा, ‘‘सख्त कानूनी प्रावधानों और भरोसा बहाल करने के अन्य कदम उठाए जाने के बावजूद अगर पुलिस अनिवार्य प्रक्रिया का अनुपालन करने में असफल होती है तो देश की फौजदारी न्याय प्रणाली में उचित न्याय देने में बाधा उत्पन्न होती है।’’ राज्यों को जारी परमार्श में कहा गया, ‘‘ऐसी खामी का पता चलने पर उसकी जांच कर और तत्काल संबंधित जिम्मेदार अधिकारी के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए।’’
महिला सुरक्षा पर क्या कहती है एडवाइजरी-
एडवाइजरी में कहा गया है कि संज्ञेय अपराध की स्थिति में एफआईआर दर्ज करना अनिवार्य है। साथ ही कानून में ‘जीरो एफआईआर’ का भी प्रावधान है (अगर अपराध थाने की सीमा से बाहर हुआ हुआ हो)।
IPC की धारा 166 A(c) के तहत, एफआईआर दर्ज न करने पर लापरवाही बरतने वाले अधिकारियों को सजा का प्रावधान है।
CRPC की धारा 173 में बलात्कार से जुड़े मामलों की जांच दो महीनों में होनी चाहिए जिसके लिए MHA एक ऑनलाइन पोर्टल बनाया है जहां से मामलों की मॉनिटरिंग होगी।
CRPC सेक्शन 164-A के अनुसार, बलात्कार/यौन शोषण की मामले की सूचना मिलने पर 24 घंटे के भीतर ही एक रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्टिशनर मेडिकल जांच करेगा। ऐसा पीड़िता की सहमति से ही होगा।
इंडियन एविडेंस ऐक्ट की धारा 32(1) के अनुसार, मृत व्यक्ति के बयान को जांच में अहम तथ्य माना जाएगा।
फोरेंसिंक साइंस सर्विसिज डायरेक्टोरेट ने यौन शोषण के मामलों में फोरेंसिंक सबूत इकट्ठा करने, स्टोर करने की गाइडलाइंस बनाई हैं। एडवाइजरी में गाइडलाइंस के अनुपालन पर जोर दिया है।
पुलिस द्वारा इन प्रावधानों के पालन में अगर लापरवाही दिखती है तो अधिकारियों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।