तालिबान ने अफगानिस्तान में अपनी नई सरकार का ऐलान कर दिया है। इस सरकार का नाम ‘इस्लामिक अमीरात ऑफ अफगानिस्तान’ होगा। इसके प्रमुख यानी प्रधानमंत्री मुल्ला मोहम्मद हसन अखुंद होंगे। उनके दो डिप्टी PM होंगे, जिनमें मुल्ला बरादर भी शामिल हैं। सरकार में शामिल एक बड़ा नाम है सिराजुद्दीन हक्कानी। सिराजुद्दीन हक्कानी हमेशा से ही भारत विरोधी रहा है। यह वही हक्कानी है जिसने साल 2008 में अपने पिता जलालुद्दीन हक्कानी के साथ मिलकर काबुल के भारतीय दूतावास पर हमला कराया था। हमले में 58 लोगों कीजान चली गई थी। 2011 में अमेरिका के जॉइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ रहे जनरल माइक मुलेन ने हक्कानी नेटवर्क को पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI का दायां हाथ और एजेंट बताया था।
दहशतगर्द हक्कानी की बर्बरता का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अमेरिका ने उस पर 50 लाख डॉलर यानी भारतीय करेंसी के मुताबिक करीब 37 करोड़ रुपए का इनाम घोषित कर रखा है। अब यह खूंखार आतंकी अफगानिस्तान की नई सरकार का हिस्सा बनने वाला है।
हक्कानी की क्रूरता और वहशीपने ने इसे आतंकी गुट का लीडर बनाया। अफगानिस्तान में फिदायीन या आत्मघाती हमले शुरू करने वाला शख्स कोई और नहीं बल्कि सिराजुद्दीन हक्कानी ही था। माना जाता है। हजारों बेगुनाहों के खून से रंगे इस खूंखार आतंकी ने ही अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई की हत्या की साजिश रची थी। हालांकि ये कोशिश नाकाम रही।
कहा जाता है कि सिराजुद्दीन का बाप और हक्कानी नेटवर्क की स्थापना करने वाला जलालुद्दीन हक्कानी 2013 या 2015 के बीच मारा गया, लेकिन सिराजुद्दीन 2001 के बाद से ही हक्कानी नेटवर्क का सरगना बना हुआ है। सिराजुद्दीन पाकिस्तान के वजीरिस्तान में ही रहता है।
सिराजुद्दीन हक्कानी ने 2001 में नेटवर्क का सरगना बनने के बाद वैसे को कई फिदायीन हमले करवाये, खूब खून बहाया लेकिन 2008 में काबुल में भारतीय दूतावास पर किया गया हमला भारत कभी नहीं भूलेगा। दहशतगर्दी और खून खराबे की दास्तां लिखने वाले इस नेटवर्क को अमेरिका ने 2012 में बैन कर दिया। 2014 में पेशावर के एक स्कूल पर हमला भी इस नेटवर्क ने किया था। इस हमले में 200 बच्चों के चिथड़े उड़ गये थे। 2017 में काबुल में एक हमले के जरिये इस नेटवर्क ने 150 से अधिक लोगों की जान ले ली थी।
आपको बता दें कि जब 1980 के आसपास सोवियत सेना ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया तो अमेरिका को यह बात रास नहीं आई। अमेरिका ने पाकिस्तान के साथ मिलकर हक्कानी नेटवर्क का इस्तेमाल किया, इसे पाला पोसा। साथ ही स्थानीय कबीलों को भी हथियार और पैसा दिया ताकि उनका इस्तेमाल रूस यानी USSR के खिलाफ हो सके। इसी दौरान तालिबान का गठन हुआ और अमेरिका ने इन गुटों से दूरी बनानी शुरू कर दी, लेकिन पाकिस्तान इन्हें पालता-पोसता रहा। ISI ने हक्कानी नेटवर्क का इस्तेमाल अफगानिस्तान और अमेरिका दोनों के खिलाफ किया। ये एजेंसी पैसे भी लेती और हमले भी कराती। अमेरिका की ये नाकामी ही कही जाएगी कि वो पाकिस्तान पर दबाव डालकर हक्कानी नेटवर्क को खत्म नहीं करा सका।
तालिबान और हक्कानी नेटवर्क अपनी सुविधा के हिसाब से एक-दूसरे का इस्तेमाल करते हैं। अफगानिस्तान में दहशतगर्दों को सत्ता तक पहुंचानें में हक्कानी नेटवर्क का साथ मिला। और अब इस गुट का सरगना यानि सिराजुद्दीन हक्कानी अफगानिस्तान का होम मिनिस्टर होगा।