स्मिथा सिंह, नई दिल्ली
इंडियन फिल्म इटस्ट्री के जानेमाने कलाकार अन्नू कपूर आज अपना 65वां जन्मदिन मना रहे हैं, 20 जनवरी 1956 को मध्यप्रदेश के भोपाल में जन्मे अन्नू कपूर, कभी चाय बेचकर अपना गुजारा करते थे, लेकिन आज वो बॉलीवुड का एक चर्चित चेहरा हैं, आईये उनके जन्मदिन पर उनके जीवन से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें आपको बताते हैं। हर किरदार में जान फूंकने वाले अन्नू कपूर आज किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं, लेकिन
अन्नू कपूर का वास्तविक नाम शायद कम ही लोगों को पता होगा, क्योंकि उनका असली नाम है अनिल कपूर। उनके अनिल से अन्नू बनने के बीच भी एक दिलचस्प कहानी है। 80 के दशक में जब अन्नू कपूर ने अपने फिल्मी सफर की शुरुआत की, उस समय अनिल कपूर बॉलीवुड में एक उभरते स्टार थे। इसी दौरान अन्नू को फिल्म मशाल में उनके साथ काम करने का मौका मिला। फिल्म मशाल में अन्नू कपूर को केवल चार लाइनें बोलनी थीं और इसके लिए उन्हें 4 हजार रुपये दिए जा रहे थे, लेकिन मिल गए 10 हजार। जबकि फिल्म के हीरो अनिल कपूर को मिले सिर् 4 हजार। बाद में पता चला कि दोनों के नाम अनिल कपूर होने की वजह से चैक एक दूसरे को पहुंच गए थे। इस वाकये के कई सितारों ने अन्नू कपूर को सुझाव दिया कि उन्हें अपना नाम बदल लेना चाहिए, क्योंकि एक ही पेशे में दो अनिल कपूर नहीं हो सकते। इसके बाद अन्नू कपूर ने खुद का नाम बदल कर अनिल से
अन्नू कर लिया।
आर्थिक तंगी से बेहाल बचपन
अन्नू कपूर की मां कमला, बंगाली थी जबकि उनके पिता मदनलाल कपूर पंजाबी। अन्नू कपूर के पिता एक पारसी थियेटर कंपनी चलाते थे, जो अलग-अलग शहरों में जाकर गली-नुक्क में परफॉर्म करती थी, जबकि मां एक टीचर थीं। अन्नू कपूर ने अपने बचपन में काफी आर्थिक तंगी का दौर देखा है, इसी के चलते उन्हें 10वीं के बाद पढ़ाई बी छोड़नी पड़ी थी। कागजों में उनकी शिक्षा भले 10वीं तक हो लेकिन अन्नू कपूर की याददाश्त बेमिसाल हैं। उनके साथ काम करने वाले जानते हैं कि अन्नू कपूर के पास यादों का अनमोल खजाना है। नौटंकी में उनके द्वार किया गया हर किरदार उनको अब भी जुबानी याद है। इतना ही नहीं खुसरो, कबीर, रूमी, रहीम आदि की हजारों रचनाएं अन्नू कपूर को जुबानी याद है, साथ ही इतनी बेहतरीन जानकारी है कि अन्नू इनके दर्शन पर किसी के साथ भी घंटों बहस कर सकते हैं। अन्नू कपूर की देश के हर प्रांत और भाषा के लोक गीतों पर गजब की पकड़ है। सैकड़ों लोक गीत तो उन्हें जुबानी याद हैं। जिसकी दमदार झलक देखने को मिली थी लोकप्रिय टीवी शो माटी के लाल में। शो की शुरूआत में दर्शक इला अरुण को ही लोक गीतों का ज्ञानी समझते रहे, लेकिन जैसे जैसे शो आगे बढ़ा दर्शकों को इस शो में अन्नू कपूर का एक अलग रंग ही देखने को मिला।
गुस्सा नाक पर रहता है
अन्नू कपूर का ख्वाब तो था एक सर्जन या आईएएस बनने का, लेकिन आर्थिक रूप से कमजोर परिवार में अन्नू के ये सपने पूरे नहीं हो सके। अपने जीवन आपने के लिए उन्हगोंने न सिर्फ चाय की दुकान पर किया बल्कि पटाखे, चूरन और लॉटरी के टिकट तक बेचे हैं, और फिर इसी कमाई से एनएसडी तक भी पहुंचे। अन्नू कपूर स्वभाव से बेहद सहज और शालीन लगते हैं लेकिन अन्नू कपूर को गुस्सा बहुत आता है। इस उम्र में भी वह गुस्से में हो तो आगा पीछा कुछ नहीं सोचते। दूरदर्शन के लिए बन रहे शो फोक स्टार्स- माटी के लाल के दौरान अन्नू कपूर ने शो के क्रिएटिव हेड को गुस्से में कुछ कह दिया तो क्रिएटिव हेड ने भी पलटकर जवाब दे दिया। इससे अन्नू कपूर का पारा इतना चढ़ा कि वह कपड़े उतार कर वैनिटी वैन में जा बैठे और शो करने से इंकार कर दिया। बाद में अन्नू कपूर को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने स्टूडियो में आकर सारे कलाकारों और टेक्नीशियन्स के सामने क्रिएटिव हेड से माफी मांगी।
थियेटर से एक्टिंग की शुरुआत
अन्नू कपूर को बचपन से ही एक्टिंग और संगीत का शौक था वे जिस प्रतिभा के धनी थे कभी लोग उस प्रतिभा की कीमत महज 5 रुपये भी दिया करते थे। अन्नू लखनऊ और आसपास के इलाकों में 5 मिनट का गाना और स्टेज शो किया करते थे जिसके लिए उन्हें पांच-पांच रुपये मिलते थे लेकिन अन्नू कुछ बेहतर करना चाहते थे इसलिए उन्होंने अपने पिता का पारसी थिएटर ज्वाइन किया लेकिन उनका मन नहीं लगा और कुछ वक्त बाद
उन्होंने दिल्ली के नेशनल स्कूल ऑप ड्रामा में एडमिशन ले लिया। साल 1979 में अन्नू रूप ने स्टेज एक्टर के तौर पर अपने करियर की शुरुआत की और मात्र 23 साल की उम्र में उन्होंने एक 70 साल के आदमी की भूमिका निभाई, लोग इस किरदार में अन्नू कपूर की एक्टिंग को देखते रह गए। इसी दौरान श्याम बेनेगल उनके अभिनय से काफी इंप्रेस हुए और उन्हें फिल्म ‘मंडी’ ऑफर की। इसके बाद 1983 में श्याम बेनेगल की
फिल्म ‘मंडी’ से अन्नू कपूर ने हिन्दी सिनेमा में कदम रखा लेकिन उन्हें पहचान मिली 1984 में आई फिल्म ‘एक रुका हुआ फैसला’ से, इस फिल्म के डायरेक्टर थे बासु भट्टाचार्य।
अन्नू कपूर ने 30 साल से ज़्यादा के फिल्मी करियर में बिग स्क्रीन पर कई अहम फ़िल्मों में यादगार रोल निभाये हैं जिन्हें दर्शकों ने खूब सराहा है। बिग स्क्रीन की तरह ही स्मॉल स्क्रीन पर भी अन्नू कपूर घर घर में पहचाने गए।
अन्नू कपूर ने कई टीवी शो होस्ट किए और दर्शकों पर अपनी प्रतिभा की छाप छोड़ी। 90 के दशक में टीवी पर आया शो ‘अंताक्षरी’, अन्नू कपूर का सबसे ज्यादा पसंद किया जाने वाला टीवी शो बना। इसके अलावा उन्होंने कई टीवी शोज में एक्टिंग भी की। मौजूदा वक्त में भी अन्नू कपूर टीवी शोज होस्ट करते खूब पसंद किए जाते हैं। एक्टिंग और होस्टिंग के अलावा अन्नू कपूर एक दमदार डायरेक्टर भी हैं। फिल्म अभय के डायरेक्शन के लिए उन्हें अवॉर्ड से सम्मानित भी किया गया। फिल्म के अलावा ने अन्नू कपूर कई म्यूजिकल शो, भक्ति एलबम और नाटकों का भी डायरेक्शन और प्रोडक्शन किया है।
वैवाहिक जीवन उथल-पुथल भरा
अन्नू कपूर ने अपने जीवन में आर्थिक संघर्ष तो झेला ही उनका वैवाहिक जीवन में भी ऐसे कई मोड़ आए, जो खबरों में शामिल हुए। अन्नू कपूर ने दो शादियां कीं, उनकी पहली पत्नी थीं अनुपमा, जो उनसे 13 साल छोटी थीं। 17 साल साथ रहने के बाद अन्नू और अनुपमा का तलाक हो गया। इसके बाद अंताक्षरी के सेट पर उनकी मुलाकात हुई अरुणिता से,जिनसे उन्होंने 1995 में शादी की, 2001 में दोनों की एक बेटी अराधिता भी हुईं लेकिन ये शादी ज्यादा वक्त चली नहीं। दूसरी पत्नी से तलाक के बाद अन्नू कपूर ने अपनी पहली पत्नी अनुपमा से ही 2008 में दोबारा शादी की। अनुपमा और अन्नू के तीन बेटे हैं- अवाम, अवान और माहिर हैं।
दर्शकों को खूब भाता है इनका हर किरदार
आज उनकी एक्टिंग की दुनिया कायल है, किरदार कॉमेडी हो या गंभीर। फिल्म में उनका रोल कितना ही छोटा क्यूं ना हो, दर्शकों का ध्यान अपनी ओर खींच ही लेता है। अन्नू कपूर ने अपने फिल्मी करियर में एक से एक बेहतरीन किरदार किए हैं। फिर चाहें वो फिल्म ‘बेताब’ का चेलाराम हो या फिल्म ‘मि. इंडिया’ में अखबार के संपादक गायतोंडे। फिल्म ‘राम लखन’ में शिव चरण माथुर हों या मुकुल आनंद की फिल्म ‘हम’ में हवलदार अर्जुन सिंह या फिर ‘जॉली एलएलबी 2’ में एडवोकेट प्रमोद माधुर का किरदार। ‘चमेली की शादी’, ‘तेज़ाब’, ‘मिस्टर इंडिया’, ‘राम लखन’, ‘जमाई राजा’ जैसी फ़िल्मों में अन्नू अहम किरदारों में दिखे। उनके ये सभी किरदार हिंदी सिनेमा के यादगार किरदारों में गिने जाते हैं। फिल्म ‘मंडी’ से लेकर ‘तेजाब’ तक, अन्नू कपूर ने हिंदी सिनेमा में अपने दमदार अभिनय से अपनी मजबूत पहचान कायम की। इसके बाद हिंदी सिनेमा में अन्नू कपूर को जॉन अब्राह्मम के प्रोडक्शन हाउस की फिल्म ‘विकी डोनर’ से मानो पुनर्जीवन मिला। 2012 में रिलीज हुई फिल्म ‘विकी डोनर’ में डॉ. बलदेव चड्ढा के रोल के लिए अन्नू कपूर लोगों ने खूब पसंद किया, इस किरदार के लिए अन्नू कपूर को सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला।
अन्नू कपूर हिन्दी सिने जगत में अभिनय का वो चमकता कोहिनूर हैं, जिसपर उम्र का बढ़ता नंबर कोई असर नहीं करेगा। वे सदा अपने बेजोड़ अभिनय से दर्शकों के दिलों पर राज करते रहेंगे। अन्नू कपूर को उनके 65वें जन्मदिन पर नेशनल खबर दिली शुभकामनाएं देता है।