विवाहित बेटी को अनुकंपा के आधार पर नौकरी दी जाये या नहीं, इस पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि पुत्र की तरह पुत्री भी परिवार की सदस्य होती है चाहे वह विवाहित हो या अविवाहित इसलिए अनुकंपा के आधार पर सरकारी सेवा में नियुक्ति के लिए एक बेटी को मृतक सरकारी कर्मचारी के परिवार का सदस्य माना जाएगा, भले ही उस बेटी की वैवाहिक स्थिति जो भी हो। जस्टिस जेजे मुनीर ने मंजुल श्रीवास्तव नाम की एक महिला द्वारा दायर रिट याचिका पर सुनवाई के बाद पांच जनवरी को यह आदेश पारित किया।
बता दें कि मंजुल श्रीवास्तव ने प्रयागराज जिले के बेसिक शिक्षा अधिकारी के 25 जून, 2020 के आदेश को चुनौती दी थी जिसमें अधिकारी ने प्रदेश सरकार के 1974 के नियमों के तहत अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति के उसके दावे को उसके विवाहित होने के कारण खारिज कर दिया था।
कोर्ट ने कहा कि जब हाईकोर्ट ने मृतक आश्रित सेवा नियमावली के अविवाहित शब्द को लिंग के आधार पर भेद करने वाला मानते हुए असंवैधानिक घोषित कर दिया है तो पुत्री के आधार पर आश्रित की नियुक्ति पर विचार किया जाएगा, इसके लिए नियम में संशोधन की आवश्यकता नहीं है। यदि एक शादीशुदा बेटा अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति के लिए पात्र है तो बेटी की उम्मीदवारी को उसके विवाहित होने के आधार पर खारिज करना भेदभावपूर्ण है।
अदालत ने याद दिलाया कि पहले भी, विमला श्रीवास्तव के मामले में यह व्यवस्था दी गई थी। कोर्ट ने कहा कि अनुकंपा के आधार पर नौकरी के लिए नियमों में ‘परिवार’ की परिभाषा से शादीशुदा बेटियों को बाहर रखना असंवैधानिक है और यह संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन है।
कोर्ट ने याची के विवाहित होने के कारण मृतक आश्रित के रूप में नियुक्ति देने से इनकार करने के बीएसए प्रयागराज के आदेश को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने याची की वैवाहिक स्थिति को कारण न मानते हुए विचार करने और दो महीने के भीतर निर्णय करने का निर्देश दिया।